देश में इस वक्त विपक्षी एकजुटता का मुद्दों जोरों पर है. पहले पटना फिर बेंगलुरु में कई दलों के जुटान के बाद राजनीतिक हवा बदलने का अनुमान लगाया जा रहा है. देश में विपक्षी दलों को जोड़ने की एक बैठक आज बेंगलुरु में हुई, इसमें तय हुआ कि तीसरे चरण की बैठक मुंबई में होगी. ऐसे में वो वक्त भी याद करना जरूरी है जब देश ने विपक्षी एकजुटता देखी थी और सरकार तक बदल गई थी.
ये साल 1975 की बात है. इंदिरा गांधी ने भारत में आपातकाल की घोषणा की थी, जिससे उन्हें तानाशाही शक्तियां मिल गईं थीं. 1975 और 1977 के बीच मोरारजी देसाई और जयप्रकाश नारायण सहित कई विपक्षी नेताओं और कई कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया और जेल में डाल दिया गया. आपातकाल की स्थिति ने प्रेस की स्वतंत्रता और नागरिक स्वतंत्रता पर सीमाएं लगा दी थीं और कांग्रेस के राजनीतिक विरोधियों पर कार्रवाई तेज कर दी थी.
तब हुआ था बड़ा विपक्षी जुटान
मार्च 1977 में आपातकाल हटाए जाने से पहले, इंदिरा गांधी ने जनवरी 1977 में नए सिरे से चुनाव का आह्वान किया तो उन्होंने अन्य विपक्षी नेताओं को भी जेल से रिहा करने का आदेश दिया था. इसकी पृष्ठभूमि में जनवरी 1977 में नई दिल्ली में जनता पार्टी की स्थापना हुई जिसके अध्यक्ष मोरारजी देसाई और उपाध्यक्ष चरण सिंह थे. भारतीय जनसंघ, भारतीय लोक दल, कांग्रेस (ओ), और सोशलिस्ट पार्टी उन समूहों में से थे जो पार्टी की स्थापना के लिए एक साथ आए थे.
विपक्षी एकता को मिली सफलता
मार्च 1977 में चुनाव के लिए मतदान हुआ. जनता गठबंधन ने इंदिरा गांधी को अपमानजनक हार दी. इसमें सभी विपक्षी दल शामिल थे और इसका एकमात्र लक्ष्य कांग्रेस शासन को उखाड़ फेंकना था.

विपक्षी दल एक साथ क्यों आए?
लोकतंत्र को बचाए रखने की लड़ाई 1977 के चुनावों का मुख्य एजेंडा था. जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने के मकसद से चुनाव लड़ा. उनका अभियान कांग्रेस शासन के गैर-लोकतांत्रिक चरित्र और उस दौरान सत्तारूढ़ शासन द्वारा विभिन्न ज्यादतियों पर केंद्रित था. उन्होंने कई मुद्दे उठाए जिनमें घरेलू मुद्दे, आपातकाल के दौरान प्रतिबंधित नागरिक स्वतंत्रता, प्रेस पर सेंसरशिप और उस समय की गई जबरन नसबंदी शामिल थी. वे देश में लोकतंत्र बहाल करने के वादे के साथ लोगों से जुड़ने में सक्षम थे.
इंदिरा हटाओ देश बचाओ का नारा आम चुनाव के लिए जयप्रकाश नारायण ने दिया था. इस नारे ने आपातकाल के दौर में कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर फेंका और देश में जनता पार्टी के शासन की शुरुआत हुई. सत्ता हासिल करने के अपने अभियान में, कांग्रेस ने एक शक्तिशाली केंद्र सरकार की आवश्यकता पर जोर दिया.

स्वतंत्र भारत में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी
भारत की आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस ने लोकसभा में अपना बहुमत खो दिया. 41.32 प्रतिशत वोट शेयर के साथ, जनता पार्टी ने भारी जीत हासिल की और 405 सीटों में से 295 सीटों पर कब्जा कर लिया. कुल 542 सीटों में से जनता पार्टी और उसके सहयोगियों ने 330 सीटें जीतीं.
चुनावी नतीजों का नया पैटर्न
इन्हीं चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 492 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन 34.52 प्रतिशत वोटों के साथ केवल 154 सीटों पर जीत हासिल की. चुनाव के नतीजों ने कुछ दिलचस्प भौगोलिक मतदान पैटर्न पेश किए. जनता पार्टी को भारत के दक्षिण में बहुत कम सीटें ही हासिल हुईं. इसके विपरीत, कांग्रेस के 154 सदस्यों में से केवल दो उत्तर में हिंदी पट्टी से थे, और उनमें से 92 सासंद चार दक्षिणी राज्यों से आए थे.
कांग्रेस पार्टी उत्तर भारतीय राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में एक भी सीट जीतने में असमर्थ रही थी. जनता पार्टी, विपक्षी दलों का एक संयोजन, जिसने बीएलडी, भारतीय लोक दल के प्रतीक पर चुनाव लड़ा था, ने कांग्रेस को बुरी तरह हराया और देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार की स्थापना की. कांग्रेस की विनाशकारी हार के बाद, 21 मार्च, 1977 को आपातकाल हटा लिया गया और इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई के लिए जगह बनाने के लिए प्रधान मंत्री के रूप में अपना पद छोड़ दिया, जिन्होंने 24 मार्च को पद की शपथ ली और भारत के पहले गैर-कांग्रेस प्रधानमंत्री बने.