राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने विकसित भारत रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) (VB-G RAM G) बिल, 2025 को मंज़ूरी दे दी है. इसके साथ ही, दो दशक पुराना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) अब एक नए कानूनी ढांचे से बदल दिया गया है. केंद्र सरकार का दावा है कि नया कानून विकसित भारत 2047 विज़न के साथ जुड़ा हुआ है.
नए कानून के तहत ग्रामीण परिवारों के लिए हर फाइनेंशियल साल में कानूनी रोज़गार गारंटी को 100 दिन से बढ़ाकर 125 दिन करना, सबसे बड़े बदलावों में से एक है.
अंग्रेजी अखबार द हिंदू के लिए लिखे एक आर्टिकल में कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मनरेगा कानून को खत्म करने और महात्मा गांधी का नाम हटाने को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है.
'नौकरशाही वाले नियमों का एक सेट...'
सोनिया गांधी लिखती हैं, "पिछले कुछ दिनों में, नरेंद्र मोदी सरकार ने बिना किसी चर्चा, सलाह-मशविरे, या संसदीय प्रक्रियाओं या केंद्र-राज्य संबंधों का सम्मान किए बिना MGNREGA को खत्म करने की कोशिश की. महात्मा का नाम हटाना तो बस शुरुआत थी. MGNREGA का पूरा ढांचा, जो इसके असर के लिए बहुत ज़रूरी था, उसे खत्म कर दिया गया है."
उन्होंने आगे लिखा, "यह याद रखना चाहिए कि मनरेगा दुनिया की सबसे बड़ी सोशल सिक्योरिटी पहल रहा है और जिसका सबसे ज़्यादा अध्ययन और मूल्यांकन भी किया गया है. मोदी सरकार ने अपने नए कानून में कानूनी गारंटी के पूरे आइडिया को ही खत्म कर दिया है, जो सिर्फ़ नौकरशाही वाले नियमों का एक सेट है."
"MGNREGA ने पूरे ग्रामीण भारत में काम के अधिकार को लागू किया था. मोदी सरकार के नए बिल ने इस स्कीम के दायरे को सिर्फ़ उन ग्रामीण इलाकों तक सीमित कर दिया है, जिन्हें केंद्र सरकार अपनी मर्ज़ी से नोटिफ़ाई करेगी."
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सोनिया गांधी आगे लिखती हैं, "पूरे साल रोज़गार की गारंटी खत्म कर दी गई है. राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे खेती के पीक सीज़न के दौरान 60 दिन ऐसे चुनें जब कोई काम नहीं किया जाएगा. MGNREGA का सबसे बड़ा असर यह था कि इसने ग्रामीण भारत में भूमिहीन गरीबों की मोलभाव करने की ताकत को बढ़ाया, जिससे खेती की मज़दूरी बढ़ी. नए कानून के तहत यह मोलभाव करने की ताकत साफ तौर से कम हो जाएगी. मोदी सरकार मज़दूरी में बढ़ोतरी को दबाने की कोशिश कर रही है."
"खर्च का एक बड़ा हिस्सा राज्यों पर डालकर, मोदी सरकार राज्यों को इस स्कीम के तहत काम देने से हतोत्साहित कर रही है. राज्यों की फाइनेंसियल हालत, जो पहले से ही बहुत ज़्यादा दबाव में है, और भी खराब हो जाएगी."
'झूठे दावे कर रही मोदी सरकार...'
सोनिया गांधी लिखती हैं, "मोदी सरकार ने इस स्कीम के डिसेंट्रलाइज्ड नेचर को भी खत्म कर दिया है. 73वें संवैधानिक संशोधन के मुताबिक, MGNREGA में ग्राम सभा को कामों की प्लानिंग करने के साथ-साथ स्कीम की मुख्य इम्प्लीमेंटेशन अथॉरिटी बनने का भी प्रावधान था. लोकल सेल्फ-गवर्नेंस के इस संवैधानिक विज़न को एक टॉप-डाउन PM गतिशक्ति नेशनल मास्टर प्लान (PMGS-NMP) से बदल दिया जाएगा, जो लोकल ज़रूरतों के बजाय केंद्र सरकार की प्राथमिकताओं को ही दिखाएगा. यह पूरी तरह से केंद्रीकरण है."
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सोनिया गांधी लिखती हैं, "मोदी सरकार झूठे दावे कर रही है कि उसने रोज़गार गारंटी को 100 दिन (मनरेगा के तहत) से बढ़ाकर 125 दिन कर दिया है. ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा. असल में, मोदी सरकार के इरादों की असली सच्चाई मनरेगा को खत्म करने के उसके दस साल के ट्रैक रिकॉर्ड से समझी जा सकती है. इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री के सदन में इस योजना का मज़ाक उड़ाने से हुई और फिर 'हज़ार छोटे-छोटे वार करके खत्म करने' की रणनीति के तहत यह तेज़ी से आगे बढ़ा- जैसे कि बजट में कोई बढ़ोतरी न करना, लोगों को अधिकार से वंचित करने वाली टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल और मज़दूरों को पेमेंट में देरी."
'अधिकार पर हमला...'
सोनिया गांधी लिखती हैं, "काम के अधिकार को खत्म करने को अकेले नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सत्ताधारी सरकार द्वारा संविधान और देश के लिए उसके अधिकार-आधारित नजरिए पर लंबे वक्त से हो रहे हमले के हिस्से के रूप में देखा जाना चाहिए. वोट देने का सबसे मौलिक अधिकार अभूतपूर्व हमले की चपेट में है. सूचना के अधिकार को ऐसे कानूनी बदलावों से कमज़ोर किया गया है, जो सूचना आयुक्तों की स्वायत्तता को कमज़ोर करते हैं, और अस्पष्ट 'व्यक्तिगत जानकारी' डेटा के लिए अधिनियम से थोक छूट दी गई है. शिक्षा के अधिकार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 द्वारा कमज़ोर किया गया है, जिसने देश भर में लगभग एक लाख प्राइमरी स्कूलों को बंद करने को वैध ठहराया है. वन अधिकार अधिनियम, 2006 को वन (संरक्षण) नियम (2022) द्वारा काफी कमज़ोर कर दिया गया, जिसने वन भूमि के डायवर्जन की अनुमति देने में ग्राम सभा की किसी भी भूमिका को खत्म कर दिया. भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवज़े और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 को काफी कमज़ोर कर दिया गया है. राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम, 2010 पारित होने के बाद अक्टूबर 2010 में स्थापित राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण को कमज़ोर कर दिया गया है. तीन काले कृषि कानूनों के ज़रिए, सरकार ने किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य के अधिकार से वंचित करने की कोशिश की. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, शायद अगला निशाना हो सकता है."
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सोनिया गांधी आखिरी हिस्से में लिखती हैं, "MGNREGA ने महात्मा गांधी के सर्वोदय ('सभी का कल्याण') के सपने को साकार किया और काम के संवैधानिक अधिकार को लागू किया. इसका खत्म होना हमारी सामूहिक नैतिक विफलता है, जिसके आने वाले सालों में भारत के करोड़ों कामकाजी लोगों के लिए आर्थिक और मानवीय नतीजे होंगे. अब पहले से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि हम एकजुट हों और उन अधिकारों की रक्षा करें जो हम सभी की रक्षा करते हैं."