उपराष्ट्रपति चुनाव की बिसात बिछ चुकी है. बीजेपी ने रविवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन को एनडीए उम्मीदवार बनाया है, जिनके नाम पर सहमति बनाने की क़वायद भी शुरू हो गई है. जगदीप धनखड़ के इस्तीफ़ा देने के बाद बीजेपी नेतृत्व उपराष्ट्रपति पद पर ऐसे व्यक्ति की तलाश में था, जो वैचारिक रूप से संघ और बीजेपी के प्रति समर्पित हो. इसी लिहाज़ से बीजेपी ने राधाकृष्णन पर भरोसा जताया है.
बीजेपी ने इस बार वैचारिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए उपराष्ट्रपति के उम्मीदवार का चयन किया है. सीपी राधाकृष्णन आरएसएस के कार्यकर्ता से लेकर तमिलनाडु बीजेपी के अध्यक्ष और महाराष्ट्र के राज्यपाल तक राजनीतिक सफ़र तय कर चुके हैं. अब बीजेपी ने उन्हें देश के अगले उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए एनडीए का उम्मीदवार बनाया है.
बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन के नाम पर दांव खेलकर सियासी लिहाज़ से बड़ा कदम उठाया है. राधाकृष्णन तमिलनाडु के तिरुपुर ज़िले से हैं और पिछड़ी जाति से आते हैं. इस तरह से बीजेपी ने जातिगत, सामाजिक और क्षेत्रीय सभी समीकरणों को साधने के साथ-साथ इस संवैधानिक पद पर ग़ैर-विवादास्पद चेहरे को बैठाने का दांव चला है.
राधाकृष्णन पर क्यों जताया भरोसा?
जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद 'दूध की जली बीजेपी छाछ भी फूंक-फूंक कर पीना चाहती है'. यही कारण है कि बीजेपी आलाकमान यह संदेश देना चाहता है कि देश के सबसे बड़े चुनावी और संवैधानिक पदों पर वो संघ की विचारधारा से जुड़े स्वयंसेवक और बीजेपी के मूल कार्यकर्ता को देखना चाहती है. सीपी राधाकृष्णन पार्टी की इस लाइन के लिए सबसे उपयुक्त उम्मीदवार हैं.
सीपी राधाकृष्णन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि से आते हैं और जनसंघ में रहे हैं. राधाकृष्णन बीजेपी के उन चुनिंदा नेताओं में से एक हैं, जिनकी छवि साफ़-सुथरी और सम्मानजनक मानी जाती है. चार दशक से भी ज़्यादा लंबे समय से वे राजनीति में हैं, लेकिन किसी भी विवाद में उनका नाम नहीं आया. वे दो बार लोकसभा सदस्य रहे हैं और राज्यपाल के पद पर भी ढाई साल से हैं. इस तरह से उनके पास संसदीय परंपरा का भी निर्वहन करने का लंबा अनुभव है. राज्यपाल के पद पर रहने के दौरान भी उनका कोई सियासी टकराव देखने को नहीं मिला.
'धनखड़ फैक्टर' ने कैसे किया काम
जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद से एक बात साफ़ थी कि बीजेपी इस बार के चुनाव में पिछली बार जैसा राजनीतिक प्रयोग क़तई नहीं दोहराएगी. धनखड़ का सियासी बैकग्राउंड और विचार बीजेपी से नहीं आते थे. उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत जनता दल से की थी और फिर कांग्रेस में भी रहे. उसके बाद वे बीजेपी में शामिल हुए. केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया था.
राज्यपाल रहते जगदीप धनखड़ का पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ लगातार सियासी टकराव रहा. इसके बाद धनखड़ उपराष्ट्रपति बने तो उनके पूरे कार्यकाल के दौरान विपक्ष से टकराव की कई घटनाएँ सामने आई थीं. बीजेपी अब उस ग़लती को दोहराना नहीं चाहती. ऐसे में संवैधानिक पद पर बीजेपी ने सीपी राधाकृष्णन के नाम पर मुहर लगाई है, जो पार्टी और संघ की विचारधारा के प्रति समर्पित होने के साथ-साथ संसदीय परंपरा का भी निर्वहन करना बख़ूबी जानते हैं.
राधाकृष्णन संघ की विचारधारा में पले-बढ़े हैं, इस वजह से माना जा रहा है कि बीजेपी ने उनके चुनाव के ज़रिए अपने पैतृक संगठन को भी यह संदेश देने की कोशिश की है कि राजनीतिक फ़ैसलों में उसकी पूरी अहमियत है.
बीजेपी की कसौटी पर खरे उतरेंगे?
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक़, बीजेपी इस बार के उपराष्ट्रपति पद के लिए ऐसे चेहरे की तलाश में थी जो विवादों से दूर हो और संसद के ऊपरी सदन (राज्यसभा) में शांति बनाकर चल सके. राधाकृष्णन आरएसएस से लंबे समय तक जुड़े हुए हैं. जनसंघ से लेकर बीजेपी तक कई दशकों तक सक्रिय रहे हैं. वे दो बार कोयंबटूर से बीजेपी के सांसद रह चुके हैं और पार्टी के तमिलनाडु प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं.
फ़रवरी 2023 में राधाकृष्णन को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था. झारखंड के राज्यपाल रहते हुए उन्हें तेलंगाना के राज्यपाल और पुदुच्चेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया था. इसके बाद जुलाई 2024 में वे महाराष्ट्र के राज्यपाल बने. झारखंड और महाराष्ट्र में राज्यपाल के तौर पर उनके कार्यकाल में कोई ख़ास विवाद नहीं हुआ.
वहीं, बिहार के राज्यपाल आरीफ़ मोहम्मद ख़ान का केरल के गवर्नर रहते हुए राज्य सरकार के साथ सियासी टकराव बना रहा. तमिलनाडु के गवर्नर एन रवि की स्टालिन सरकार के साथ सियासी तनातनी लगातार बनी हुई है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया था. ऐसे में राधाकृष्णन का झारखंड-महाराष्ट्र के राज्यपाल रहते हुए सियासी टकराव की स्थिति नहीं बनी. वे ढाई साल से संवैधानिक पद पर हैं और उनका कोई भी विवाद विपक्ष या फिर सरकार के साथ नहीं रहा.
राधाकृष्णन को विपक्ष का साथ
महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के ख़िलाफ़ विपक्षी दलों की सियासी खुन्नस पूरा देश जानता है, लेकिन जब से राधाकृष्णन प्रदेश के गवर्नर बने हैं, उनको लेकर विपक्ष से शिकायतें सुनने को नहीं मिली हैं. यही वजह है कि जब एनडीए ने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के रूप में उनका नाम लिया तो उद्धव ठाकरे की पार्टी के नेता और सांसद संजय राउत भी मुरीद नज़र आ रहे हैं. संजय राउत ने कहा कि सीपी राधाकृष्णन का व्यक्तित्व बहुत अच्छा है, वे ग़ैर-विवादास्पद व्यक्तित्व वाले हैं और उनके पास काफ़ी अनुभव है. मैं उन्हें शुभकामनाएँ देता हूँ.
सीपी राधाकृष्णन तमिलनाडु के मंझे हुए राजनेता रहे हैं. उन्होंने अपनी लंबी सियासी पारी में तमिलनाडु में बीजेपी को स्थापित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है. 2007 में, जब वे तमिलनाडु के प्रदेश अध्यक्ष थे, उन्होंने राज्य में 93 दिनों की 19000 किलोमीटर लंबी 'रथ यात्रा' की थी. इस यात्रा में उन्होंने मुख्य रूप से नदी जोड़ो, आतंकवाद, समान नागरिक संहिता, अस्पृश्यता और नशे के दुष्परिणाम जैसे मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया. उनका व्यक्तित्व ऐसा है, जो डीएमके को भी खटक नहीं रहा है. यही वजह है कि डीएमके ने भी उन्हें उपराष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने को एनडीए का अच्छा फ़ैसला बताया है.
पीएम मोदी भी राधाकृष्णन के मुरीद
तमिलनाडु में पार्टी के पिछले अध्यक्ष अन्नामलै जिस समुदाय से आते हैं, उसी समाज से राधाकृष्णन भी हैं. पिछले दिनों जब अन्नामलै को बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया तो इस तबके में बीजेपी के प्रति एक असंतोष देखने को मिल रहा था. इस तरह राधाकृष्णन का चयन ओबीसी समाज को साधने के साथ-साथ दक्षिण भारत में पकड़ मज़बूत करने की कोशिश का भी हिस्सा है. आर वेंकटरामन के बाद उपराष्ट्रपति बनने वाले वे तमिलनाडु के पहले नेता होंगे.
प्रधानमंत्री मोदी ने राधाकृष्णन को एनडीए का उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार चुने जाने पर बधाई दी है. उन्होंने कहा कि राधाकृष्णन ने अपने राजनीतिक जीवन में हमेशा समाज की ज़मीनी समस्याओं को सुलझाने का प्रयास किया. उन्होंने ख़ासकर तमिलनाडु में बड़े स्तर पर काम किया है. एनडीए परिवार ने जब उन्हें उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनाने का फ़ैसला लिया तो यह स्वाभाविक माना गया, क्योंकि उन्होंने विभिन्न ज़िम्मेदारियों में हमेशा ख़ुद को सिद्ध किया. मोदी ने विश्वास जताया कि वे उपराष्ट्रपति के रूप में प्रेरणादायी भूमिका निभाएंगे.