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पॉलिटिकल डेमोक्रेसी के लिए 'सामाजिक लोकतंत्र' जरूरी... जस्टिस गवई ने भारत की तरक्की के लिए की 'भीमस्मृति' की प्रशंसा

भारत के अगले चीफ जस्टिस बनने जा रहे जस्टिस बी आर गवई ने संविधान सभा के सदस्य के.एम. जेधे के भाषण का भी हवाला दिया, जिन्होंने बताया था कि अनुसूचित जातियों के नेता के रूप में अंबेडकर की स्थिति के कारण, कुछ लोगों ने संविधान को "भीमस्मृति" कहा था.

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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई. (Photo: PTI/File)
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई. (Photo: PTI/File)

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई ने संविधान निर्माता बी आर आम्बेडकर के बयानों का जिक्र करते हुए कहा है कि वे कहा करते थे कि देश में सामाजिक लोकतंत्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र टिक नहीं सकता है. बाबा साहेब की 135वीं जयंती पर जस्टिस गवई ने भारत निर्माण में उनके योगदान को विस्तार से याद किया. 

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बी आर गवई ने 'भीमस्मृति' शब्द का जिक्र किया और कहा कि चूंकि बी आर आम्बेडकर अनुसूचित जाति से थे इसलिए कुछ लोग संविधान को 'भीमस्मृति' कहते थे. लेकिन इसी भीमस्मृति के तहत भारत जोरदार सामाजिक प्रगति की. 

भारत के मुख्य न्यायाधीश के बाद सुप्रीम कोर्ट के सबसे सीनियर न्यायाधीश जस्टिस गवई डॉ अंबेडकर अंतर्राष्ट्रीय केंद्र में आयोजित पहले 'डॉ अंबेडकर स्मृति व्याख्यान' में बोल रहे थे. जस्टिस गवई ने कहा कि अंबेडकर "देश के सबसे महान सपूतों में से एक" और एक "महान दूरदर्शी" थे, जिन्होंने अर्थशास्त्री, समाज सुधारक और शिक्षाविद् के रूप में विभिन्न क्षेत्रों में योगदान दिया. 

उन्होंने कहा कि संविधान के सभी अंगों यानी विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका द्वारा पिछले 75 वर्षों में काम करने की यात्रा संतोषजनक रही है. जस्टिस गवई ने कहा, "मेरे विचार में यह कहना कि 75 वर्षों की यात्रा संतोषजनक नहीं रही है, संविधान निर्माताओं, कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के प्रयासों के साथ अन्याय होगा."

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उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान समय की कसौटी पर खरा उतरा है और इसने देश को मजबूत, स्थिर और एकजुट बनाया है.

जस्टिस बीआर गवई ने बाबासाहेब के भाषणों से उदारतापूर्वक उद्धरण देते हुए बताया कि संविधान के 75 वर्षों में भारत कितनी दूर तक आगे बढ़ चुका है और आम्बेडकर के अपने जीवन के अनुभवों और दृष्टि ने संविधान को कैसे आकार दिया.

गवई ने अपने भाषण में कहा, "उन्होंने भारतीय इतिहास का हवाला देते हुए बताया कि कितनी बार हम पर आक्रमण किया गया और कितनी बार हमने अपनी स्वतंत्रता खोई, और उन्होंने हमें चेतावनी दी कि हमें जो स्वतंत्रता मिली है और जो लोकतंत्र हमने खुद को इतनी उदारता से दिया है, उसे फिर से छीनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जैसा कि अतीत में हुआ है. और, इसलिए, उन्होंने कहा कि हमें जो करना चाहिए वह यह है कि हम केवल राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट न हों. डॉ. अंबेडकर का मानना ​​था कि राजनीतिक लोकतंत्र तब तक नहीं टिक सकता जब तक कि उसके आधार में सामाजिक लोकतंत्र न हो." 

अपनी कहानी बताते हुए जस्टिस गवई ने कहा,"मैं अपने बारे में कहूं तो मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे पिता ने डॉ. अंबेडकर के साथ मिलकर काम किया और सामाजिक और आर्थिक न्याय की लड़ाई में एक योद्धा के रूप में काम किया. मैं यहां केवल डॉ. अंबेडकर और भारत के संविधान की वजह से हूं."

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भारत के अगले चीफ जस्टिस बनने जा रहे गवई ने संविधान सभा के सदस्य के.एम. जेधे के भाषण का भी हवाला दिया, जिन्होंने बताया था कि अनुसूचित जातियों के नेता के रूप में अंबेडकर की स्थिति के कारण, कुछ लोगों ने संविधान को "भीमस्मृति" कहा था.

जस्टिस बी आर गवई ने कहा, "जेधे ने कहा कि डॉ. अंबेडकर को बधाई देते हुए कुछ सदस्यों ने उन्हें मनु कहा और डॉ. अंबेडकर को मनु से बहुत नफरत थी. उन्होंने कहा कि वे उन्हें भीम कहते हैं और जनता को बताते हैं कि उन्होंने भीमस्मृति को गढ़ा है. मैं भी इसे भीमस्मृति कहता हूं, हालांकि मैं स्पृश्य वर्ग से हूं."

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस गवई ने अंबेडकर की दूरदृष्टि से प्रेरित भारतीय संविधान के अलग अलग प्रावधानों के कारण भारत की सामाजिक संरचना में आए बदलावों की भी प्रशंसा की. 

जस्टिस गवई ने कहा,"हम देखते हैं कि पिछले 75 वर्षों में, जो देश पहले जाति, पंथ, धर्म से ग्रस्त था, हमने इस देश को दो राष्ट्रपति दिए हैं जो अनुसूचित जाति से थे, अर्थात के.आर. नारायणन और राम नाथ कोविंद. देश ने हमें दो महिला राष्ट्रपति दिए हैं, पहली प्रतिभा पाटिल और दूसरी द्रौपदी मुर्मू, जो पहली अनुसूचित जनजाति की राष्ट्रपति भी रही हैं. देश ने दो स्पीकर दिए हैं जो अनुसूचित जाति से हैं, बालयोगी और मीरा कुमार."

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"हमारे पास भारत के दलित मुख्य जस्टिस न्यायमूर्ति केजी बालाकृष्णन हैं. देश को एक ऐसा प्रधानमंत्री मिल रहा है, जो पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक सामान्य पृष्ठभूमि से आता है और जो यह कहने में गर्व महसूस करता है कि यह भारत के संविधान की वजह से है कि वह भारत का प्रधानमंत्री बन सका."

जस्टिस गवई ने आगे कहा कि पिछले वर्षों में देश ने अलग-अलग बाहरी आक्रमणों और आंतरिक गड़बड़ियों का सामना किया, फिर भी यह एकजुट और मजबूत रहा और समय-समय पर बदलती जरूरतों के अनुकूल संविधान में संशोधन किया गया. उन्होंने बताया कि जब हम पड़ोसी देशों से अपनी तुलना करते हैं, तो हम पाते हैं कि उनके (अंबेडकर के) प्रस्ताव कितने प्रासंगिक थे. हमने देखा है कि पिछले 75 वर्षों में संविधान में समय-समय पर बदलती जरूरतों के अनुकूल संशोधन किया गया है क्योंकि संविधान कोई जड़ दस्तावेज नहीं है; यह समय के साथ जीवंत और लचीला बना रहता है."

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