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'एक क्षेत्र में 12 जीवित लोगों को मृत दिखाया गया...', बिहार SIR पर सिब्बल की दलील, SC ने कहा- वे कोर्ट में क्यों नहीं हैं

बिहार एसआईआर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने आरोप लगाया कि लाखों नाम गलत तरीके से हटाए गए और प्रक्रिया में नियमों का उल्लंघन हुआ. चुनाव आयोग ने इसे ड्राफ्ट रोल बताया और सुधार की प्रक्रिया पर जोर दिया. कोर्ट ने ECI से फॉर्म 4 जारी करने और मृत घोषित किए गए जीवित लोगों पर स्पष्टीकरण मांगा है.

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बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. (File photo)
बिहार में एसआईआर की प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. (File photo)

बिहार में एसआईआर यानी वोटर लिस्ट रिवीजन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई हुई. इस मामले में याचिकाकर्ताओं की तरफ से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलीलें पेश कीं. उन्होंने बताया कि एक छोटे से निर्वाचन क्षेत्र में 12 जीवित लोगों को मृत दिखा दिया गया है और बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) ने काम सही तरीके से नहीं किया. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा कि ये लोग अदालत में क्यों नहीं हैं? इस पर सिब्बल ने कहा कि वे अदालत में मौजूद हैं और कुछ याचिकाओं में शामिल हैं. उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया सवालों के घेरे में है.

वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि मृतक को जीवित दिखाने की जानकारी चुनाव आयोग को दी गई थी, पत्नी ने बताया और इसका वीडियो भी है. उन्होंने तर्क दिया कि मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण में नियमों के अनुसार सूची दोबारा तैयार होनी चाहिए, लेकिन मसौदा जारी करने से पहले न तो फॉर्म 4 घर-घर भेजा गया, न दस्तावेज लिए गए. इससे नियम 10 और नियम 12 का उल्लंघन हुआ. उन्होंने यह भी कहा कि नियम 13 के तहत दी गई आपत्तियों में भी खामियां हैं.

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कपिल सिब्बल ने कहा कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम स्पष्ट कहता है कि मतदाता सूची से किसी का नाम हटाने के लिए सबूत देने का दायित्व उसी व्यक्ति पर है जो आपत्ति उठा रहा है. उसे मृत्यु, पता बदलने, नागरिक न होने आदि का प्रमाण देना होगा. आप मुझसे मेरे दस्तावेज नहीं मांग सकते, क्योंकि सबूत देने की जिम्मेदारी आपत्ति करने वाले की है.

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आप नागरिक नहीं ये साबित करने की जिम्मेदारी अथॉरिटी की है- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि नियम 10 प्रारूप मतदाता सूची तैयार करने के लिए है. अगर किसी का नाम शामिल नहीं किया गया है तो वह फॉर्म 6 के तहत आवेदन कर सकता है. वहां आप सही हैं कि अगर आपका नाम गलत तरीके से हटा दिया गया है, तो यह साबित करने की जिम्मेदारी प्राधिकरण की है कि आप नागरिक नहीं हैं, लेकिन क्या चुनाव आयोग (ECI) ने BLOs के माध्यम से वैध फॉर्म 4 जारी किया है? यह एक वैध तर्क का आधार हो सकता है.  इस पर सिब्बल ने कहा कि बिना सर्वे प्रक्रिया के ही ड्राफ्ट सूची जारी कर दी गई है.

संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी हुई, BLO मनमानी कर रहे हैं- कपिल सिब्बल

याचिकाकर्ता पक्ष के वकील गोपाल शंकर नारायण ने कहा कि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि अगर मास एक्सक्लूजन होगा तो कोर्ट दखल देगा. ड्राफ्ट रोल से पता चलता है कि 65 लाख लोगों का नाम हटाया गया है, लेकिन आयोग ने इसकी कोई सूची नहीं दी. वहीं कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि SIR के दौरान संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी करते हुए BLO और अन्य अधिकारियों ने मनमानी की. उन्होंने कहा कि नए वोटर का नाम जोड़ने के लिए फॉर्म 6 में जन्मतिथि के दस्तावेज के रूप में आधार कार्ड सूची में दूसरे नंबर पर है, लेकिन SIR में चुनाव आयोग आधार स्वीकार नहीं कर रहा है.

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इतने बड़े प्रोसेस में कुछ न कुछ त्रुटियां होंगी- चुनाव आयोग

चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने जवाब में कहा कि यह ड्राफ्ट रोल है और जिन लोगों को आपत्ति है, वे आपत्ति दर्ज कर सुधार के लिए आवेदन कर सकते हैं. ड्राफ्ट रोल में कुछ कमियां होना स्वाभाविक है, इसलिए सुधार की प्रक्रिया और अवधि तय की गई है. उन्होंने कहा कि इतने बड़े प्रोसेस में कुछ न कुछ त्रुटियां होंगी ही.

जीवित हैं लेकिन मृत घोषित किया गया तो उन्हें कोर्ट में लाएं- जस्टिस सूर्यकांत

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर कोई जीवित व्यक्ति मृत घोषित कर दिया गया है, तो उसे अदालत में लाया जाए और त्रुटि को ठीक किया जाए. इस पर सिब्बल ने कहा कि यही स्थिति लगभग हर बूथ पर है और यह संभव नहीं कि सभी को कोर्ट में लेकर आएं. सुप्रीम कोर्ट ने कपिल सिब्बल से पूछा कि क्या आप SIR के अस्तित्व पर ही सवाल उठा रहे हैं या आप सिर्फ अपनाई गई प्रक्रिया को चुनौती दे रहे हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया कि हम कह रहे हैं कि मतदाता सूची तैयार करने के चरण में आप दस्तावेज नहीं मांग सकते.

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