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दशकों से सरकारी आवास पर कब्जा जमाए बैठे बिहार के पूर्व विधायक को सुप्रीम कोर्ट से झटका

चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व विधायक को ब्याज के साथ किराया चुकाने का आदेश दिया है.

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बिहार के पूर्व विधायक को सुप्रीम कोर्ट से झटका (File Photo: ITG)
बिहार के पूर्व विधायक को सुप्रीम कोर्ट से झटका (File Photo: ITG)

सरकारी आवास में रहना जारी रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व विधायक अविनाश कुमार सिंह पर नाराजगी जताई है. कोर्ट कहा कि पटना हाइ कोर्ट के फैसले में उन्हें कुछ भी गलत नहीं लगा, क्योंकि किसी को भी सरकारी आवास पर अंतहीन रूप से कब्ज़ा नहीं रखना चाहिए, चाहे वो कोई भी हो. सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक की याचिका पर सुनवाई से मना करते हुए कहा कि सरकार कानून सम्मत कदम उठाने के लिए स्वतंत्र है. इसके उन्होंने अपनी याचिका वापस ले ली.

चीफ जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व विधायक को ब्याज के साथ किराया चुकाने का आदेश दिया है.

'नेता जी' चुकाएंगे 21 लाख रुपए...

हाई कोर्ट ने बिहार के पूर्व विधायक को सरकारी आवास का करीब 21 लाख रुपये बकाया किराया चुकाने के सरकारी आदेश को बरकरार रखा था. इस सरकारी आवास में वे निर्धारित अवधि से ज्यादा वक्त तक रहे थे.

दरअसल, पटना हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने सिंगल बेंच के समक्ष याचिका दायर की थी, जिसमें 20 लाख रुपये की राशि की कटौती के सरकारी आदेश को रद्द करने की मांग की गई थी.

सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 20 लाख से ज्यादा का किराया वसूलने के पटना हाई कोर्ट के आदेश को सही ठहराया है. याचिकाकर्ता को उक्त राशि पर 24.08.2016 से भुगतान की तारीख तक 6 फीसदी वार्षिक ब्याज भी देना होगा, क्योंकि उन्होंने स्पष्ट आदेशों के बावजूद आवास खाली नहीं किया और किराया नहीं चुकाया.

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2006 में मिला था आवास

बिहार विधान सभा के सदस्य के रूप में आवंटित सरकारी आवास में निर्धारित अवधि से ज्यादा वक्त तक रहने के आधार पर 20,98,757 रुपये मकान किराया वसूलने का आदेश किया गया. याचिकाकर्ता को 2006 में विधायक के रूप में फिर से निर्वाचित होने पर सरकारी आवास/क्वार्टर आवंटित किया गया था. जिस पर वे 2015 तक बने रहे.

नवंबर 2015 में, सरकार ने उन्हें आवास खाली करने के लिए कहा क्योंकि यह एक मंत्री को आवंटित किया जाना था. हालांकि, हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका जनवरी 2016 में बिना शर्त वापस ले ली गई. जबरन बेदखली के खिलाफ दायर सिविल मुकदमा भी वापस ले लिया गया. इसके बाद याचिकाकर्ता को अगस्त 2016 में उनके खिलाफ देय मकान किराया राशि का नोटिस दिया गया.

इसके बाद याचिकाकर्ता ने एक और रिट याचिका दायर की, जिसे बाद में जनवरी 2021 में पीठ ने खारिज कर दिया. इस आदेश के खिलाफ, याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की. बेंच ने भी मकान किराए से संबंधित आदेश को बरकरार रखा और याचिकाकर्ता के आचरण की निंदा की.

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