भारत के ड्रग कंट्रोलर जनरल (औषधि महानियंत्रक) ने विदेशी दवाओं को लेकर बड़ा फैसला लिया है. औषधि महानियंत्रक ने कई विदेशी दवाओं और औषधियों के स्थानीय क्लिनिकल ट्रायल की अनिवार्यता को खत्म कर दिया है. लिहाजा अब विदेशी दवाएं भारत के बाज़ार में इस्तेमाल के लिए आवेदन करने पर सीधे इस्तेमाल के लिए परमिशन हासिल कर सकेंगी. इसके लिए उन्हें भारत में किए गए किसी भी क्लिनिकल ट्रायल की स्टडी पेश करने की जरूरत नहीं होगी.
नए नियम 101 के तहत अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे देशों को चैप्टर 10 के अनुसार नई दवाओं के अप्रूवल के लिए स्थानीय क्लीनिकल ट्रायल की छूट पर विचार करने और चैप्टर 5 के तहत क्लीनिकल ट्रायल की अनुमति देने की परमिशन दी गई है. लिहाजा अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और ईयू में किसी दवा का सफल क्लीनिकल ट्रायल होता है और इन दवाओं को उन देशों के नियामक से परमिशन मिल जाती है तो ऐसी मेडिसिन को भारत में क्लीनिकल ट्रायल की जरूरत नहीं होगी.
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि वर्तमान में अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन जैसी रेग्युलेटरी अथॉरिटी से अनुमोदित कई दवाएं ड्रग्स और कॉस्मेटिक एक्ट के तहत रेग्युलेटरी की वजह से भारत में उपलब्ध नहीं हैं. क्योंकि भारत के बाजार में इन दवाओं को उपयोग की अनुमति दिए जाने से पहले स्थानीय क्लीनिकल ट्रायल की जरूरत होती है.
क्यों उठाया गया कदम?
ये कदम इसलिए उठाया गया है, क्योंकि सरकार को लगता है कि भारत में कई जीवन रक्षक दवाओं को लॉन्च करने में देरी हो रही है. भारत में क्लीनिकल ट्रायल से छूट के लिए इन कैटेगरी की दवाओं का प्रस्ताव किया गया है.
- दुर्लभ बीमारियों के लिए दवाएं
- जीन और सेलुलर थेरेपी प्रोडक्ट
-महामारी की स्थिति में इस्तेमाल की जाने वाली नई दवाएं
- विशेष रक्षा उद्देश्य के लिए इस्तेमाल की जाने वाली नई दवाएं
सार्वजनिक खरीद की कीमतों को कम करने में सहायक होगा फैसला
आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि अब सबसे ज्यादा डिमांड वाली और नई दवाएं जो कैंसर जैसी बीमारियों के साथ ही स्पाइनल मस्क्युलर एट्रोफी जैसी दुर्लभ बीमारियों के इलाज में मदद करेंगी और भारत में तेज़ी से उपलब्ध होंगी. ये फैसला राज्य सरकारों, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के तहत सार्वजनिक खरीद की कीमतों को कम करने में सहायक होगा. उदाहरण के लिए ब्रेस्ट कैंसर टाइप-3 के लिए एक दवा जो भारत में उपलब्ध नहीं है, अब बाजार उपयोग प्राधिकरण की त्वरित स्वीकृति के बाद मार्केट में उपलब्ध हो सकेगी. इससे इन दवाओं को सिर्फ चुनिंदा देशों से आसानी से भारत में लाने का रास्ता साफ हो गया है.
वजन घटाने वाली दवाओं की मांग बढ़ी
अमीर भारतीयों के बीच वजन घटाने वाली दवाओं की मांग काफी बढ़ रही है. लिहाजा डेनमार्क के नोवो नॉर्डिस्क की ओज़ेम्पिक और अमेरिका के एली लिली की मौनजारो जैसी दवाएं रेग्युलेटरी जांच को दरकिनार करते हुए अवैध रूप से भारतीय फ़ार्मेसियों में एंट्री कर रही हैं. अमेरिकी दवा नियामक ने 2017 में डायबिटीज के इलाज के लिए ओज़ेम्पिक को मंजूरी दी थी, जबकि मोटापे के इलाज के लिए 2021 में वेगोवी ब्रांड के तहत हाई डोज वाले वर्जन को मंजूरी दी गई थी. हालांकि डायबिटीज के लिए स्वीकृत मौनजारो का अक्सर वजन घटाने के लिए ऑफ-लेबल इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन मोटापे के रोगियों के इलाज के लिए डॉक्टरों द्वारा रिकमंड किए जाने के बाद ये दोनों दवाएं भारत में उपलब्ध नहीं हैं.