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देश में बैन होने के बावजूद धड़ल्ले से बिक रहे Vape, सोशल मीडिया पर भी जमकर प्रचार

ई-सिगरेट के प्रोडक्शन और सेल पर रोक लगाने वाले 2019 के कानून में पब्लिक हेल्थ का हवाला दिया गया और कहा गया कि इसका मकसद लोगों को नुकसान से बचाना है. लेकिन वेप्स के समर्थकों और प्रशंसकों का मानना है कि ये इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पारंपरिक सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक हैं.

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देश में लगातार बढ़ रहा वेप कल्चर
देश में लगातार बढ़ रहा वेप कल्चर

कैंडी की तरह रंगबिरंगे और अंडे के आकार में खिलौने जैसे दिखने वाले वेप्स इस साल दक्षिण दिल्ली के सिरी फोर्ट में होली पार्टी में कई लोगों के लिए सबसे जरूरी सामान थे. पूरी तरह से प्रतिबंधित होने के बावजूद में देश वेप कल्चर फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा. इसकी बिक्री आसान है जो ऑनलाइन और ऑफलाइन कारोबार को बढ़ावा दे रही है. नई पीढ़ी के युवाओं को आकर्षित करने के लिए सैकड़ों वेबसाइट और सोशल मीडिया पेज इन आकर्षक डिवाइस को बेच रहे हैं, जिन्हें अक्सर स्मोकिंग का एक हेल्दी ऑप्शन बताया जाता है.

40 से ज्यादा एक्टिव वेबसाइट

इंडिया टुडे की ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस टीम (OSINT) ने यह आकलन किया है कि प्रतिबंधित और फलते-फूलते वेप प्रोडक्ट का बाज़ार कितना बड़ा है. हमारी रिसर्च में कम से कम 157 डोमेन की पहचान की गई है, जिनमें 'Vape' कीवर्ड शामिल है, जिसमें भारत में सक्रिय रूप से वेप बेचने वाली 40 वेबसाइटें भी मिली हैं. 

सिर्फ़ वेबसाइट ही नहीं, इंस्टाग्राम, फ़ेसबुक और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म भी बैन प्रोडक्ट बेचने वाले चैनलों से भरे पड़े हैं. इंडिया टुडे ने कम से कम 633 इंस्टाग्राम पेजों की पहचान की है, जिनके अकाउंट या यूजर नेम में 'Vape' या 'Vapes' है. इनमें से तीन दर्जन से ज़्यादा चैनल भारत में चल रहे थे, 70 से ज़्यादा की वैश्विक पहुंच थी और करीब 200 पेजों ने इस वायरल पफ़िंग डिवाइस का खुलेआम विज्ञापन किया था.

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कम नुकसानदेह मानते हैं यूजर्स

ई-सिगरेट के निर्माण और बिक्री पर रोक लगाने वाले 2019 के कानून में पब्लिक हेल्थ का हवाला दिया गया और कहा गया कि इसका उद्देश्य लोगों को नुकसान से बचाना है. लेकिन वेप्स के समर्थकों और प्रशंसकों का मानना है कि ये इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पारंपरिक सिगरेट की तुलना में कम हानिकारक हैं. दिल्ली स्थित एक प्रोफेशनल ने नाम न उजागर करने पर दावा किया कि वेप ने उन्हें धूम्रपान छोड़ने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए मदद की है.

एसोसिएशन ऑफ वेपर्स इंडिया के सम्राट चौधरी, जो कम हानिकारक तम्बाकू उत्पादों के पक्षधर हैं, कहते हैं कि धूम्रपान की तुलना में वेपिंग काफी कम हानिकारक है. लेकिन धूम्रपान छोड़ने में मदद करने के मामले में यह पारंपरिक निकोटीन गम, पैच आदि की तुलना में दोगुना प्रभावी है, इसके लिए वह वैश्विक वैज्ञानिक सहमति का हवाला देते हैं.

ये भी पढ़ें: ई-सिगरेट की गिरफ्त में युवा आबादी, जानें- कितना बड़ा है कारोबार

हालांकि, पल्मोनोलॉजिस्ट (फेफड़ों के डॉक्टर) वेप्स को क्लीन चिट देने से बचते हैं. ग्रेटर नोएडा के काशवी अस्पताल के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. आशीष जायसवाल कहते हैं कि वेपिंग एक स्वस्थ विकल्प नहीं है. इसमें निकोटीन (जो नशे की लत है) और अन्य संभावित हानिकारक केमिकल होते हैं जो फेफड़ों के स्वास्थ्य और हृदय संबंधी कार्य को प्रभावित कर सकते हैं. उनका कहना है कि वेप्स खासकर इसलिए क्योंकि वे अवैध रूप से बेचे जा रहे हैं, फेफड़ों को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

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20 हजार रुपये तक कीमत

एक औसत उपभोक्ता के लिए वेप्स की कीमत वास्तविक सिगरेट से ज़्यादा होती है. वेपिंग डिवाइस की कीमत ₹650 से शुरू होकर ₹20,000 से ज़्यादा होती है. नोएडा के एक विक्रेता जो 15,000 से ज़्यादा फ़ॉलोअर वाले इंस्टाग्राम पेज पर वेप्स बेचते हैं, ने इंडिया टुडे को बताया कि उनके स्लीक, फ़ैशन-फ़ॉरवर्ड वेप्स की कीमत ₹650 से ₹2,599 के बीच है. इसमें डिलीवरी और पैकेजिंग के लिए एक्स्ट्रा चार्ज शामिल है. डिस्पोजेबल वेप्स उनके सबसे ज़्यादा बिकने वाले उत्पाद की कीमत आम तौर पर ₹1,199 से ₹1,499 के बीच होती है. 6,000 पफ तक का ऑफर देने वाले रिचार्जेबल वेरिएंट की कीमत ₹2,099 से शुरू होती है. विक्रेता का दावा है कि वह खुद प्रोडक्ट तैयार करते हैं.

ऑनलाइन साइट्स पर 10 हजार पफ तक का ऑफर देने वाले वेप्स की कीमत लगभग ₹10,000 है. कई जेनरेशन Z खरीदारों को आकर्षित करने के लिए 'द मदरपफर', 'ब्रेन फ़्रीज़' और 'एस्ट्रोनॉट प्रोजेक्टर' जैसे नामों के साथ ये आकर्षक ब्रांडिंग में आते हैं. 30 हजार पफ तक का ऑफर देने वाले हाई क्वालिटी वेरिएंट ₹5,000 और ₹21,000 के बीच बेचे जाते हैं.

सोशल मीडिया पर बढ़ रहा वेप कल्चर

साल 2019 से भारत सरकार ने पूरे देश में ई-सिगरेट के उत्पादन, निर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, बिक्री, वितरण, भंडारण और विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा दिया है. ई-सिगरेट निषेध अधिनियम के अनुसार, इन उत्पादों को रखने वाले व्यक्तियों को कानून लागू होने के 90 दिनों के भीतर इनका ब्योरा देना और उन्हें सरेंडर करना जरूरी था. वेप्स की व्यापक बिक्री और खपत कानून की विफलता का सबूत है.

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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी प्रतिबंधित उत्पादों के संबंध में अपनी नीतियां हैं. उदाहरण के लिए इंस्टाग्राम की 'प्रतिबंधित वस्तुओं और सेवाओं' पर नीति प्लेटफॉर्म पर वेप्स की बिक्री या खरीद को प्रतिबंधित करती है. इंस्टाग्राम वेपिंग उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने वाली सामग्री पर प्रतिबंध नहीं लगाता है, लेकिन यह ऐसे पोस्ट को अन्य लोगों को सुझाने पर भी विचार नहीं करता है. पेड प्रमोशन पूरी तरह से वर्जित हैं.

भारत में वेप कल्चर फल-फूल रहा है, खास तौर पर इंस्टाग्राम पर, जहां वेप पीते हुए युवाओं के शॉर्ट वीडियो या रील्स को अक्सर अन्य प्रकार के पोस्ट की तुलना में ज्यादा बार देखा जाता है. उदाहरण के लिए इंस्टाग्राम पर 5,000 से अधिक फॉलोअर्स वाले एक युवा को आमतौर पर उसके रील्स पर 10,000-12,000 व्यूज मिलते हैं, लेकिन वेप्स वाले रील पर यह संख्या 19 लाख तक पहुंच गई. वेप्स अक्सर पॉपुलर क्रिएटर्स के सोशल मीडिया पोस्ट में दिखाई देते हैं, जो इसके उपयोग को और अधिक सामान्य बनाता है और डिवाइस में 'कूलनेस' की धारणा जोड़ता है.

छोटे शहरों तक बनाई पहुंच

इंटरनेट पर्सनालिटी ओरी को नवंबर में एक अवॉर्ड सेरेमनी में विनर का ऐलान करते समय कथित तौर पर वेप का इस्तेमाल करते हुए देखा गया था, जहां अपूर्वा मुखीजा और रिदा थराना जैसे प्रभावशाली लोग भी मौजूद थे. अन्य लोगों को वेप की वैधता के बारे जानकारी नहीं है और अक्सर अपने कंटेंट में उत्पाद का दिखावा करते हैं. ऐसे ही एक वीडियो में झारखंड की एक क्रिएटर अपनी मां से वेप की पहचान करने के लिए कहती है, जिसे वह पावर बैंक बताती है. इस वीडियो को 2.7 करोड़ बार देखा जा चुका है.

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वेप्स पर पाबंदी लगाने की कोशिश सफल न होने की वजह से खराब गुणवत्ता वाले उत्पादों के निर्माण की पूरी गुंजाइश बनी रहती है और यूजर्स को होने वाले किसी भी नुकसान के मामले में जवाबदेही भी सुनिश्चित नहीं हो पाती. वेप को सपोर्ट करने वाले सम्राट चौधरी कहते हैं कि ई-सिगरेट अब हर दूसरे तंबाकू विक्रेता के यहां बेची जा रही है, यहां तक कि टियर II और III शहरों में भी ऑनलाइन बिक्री हो रही है. समस्या यह है कि ये प्रोडक्ट न केवल टैक्स चोरी और गुणवत्ता की जांच से परे हैं, बल्कि किशोरों तक इसकी पहुंच में भी वृद्धि हुई है क्योंकि तस्करों को इस बात की परवाह नहीं है कि वे किसे बेच रहे हैं.


 

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