
कोरोना महामारी ने सिर्फ आम जनजीवन को ही प्रभावित नहीं किया है, इसकी वजह से लाखों लोगों के व्यापार पर भी बेहद बुरा असर पड़ा है. ऐसी ही एक कहानी है उत्तर प्रदेश के अमरोहा में टोपी कारोबारी मिर्जा नसीम बेग की, जिनका पूरा कारोबार ठप हो गया है. ये मुस्लिम परिवार आजादी के वक्त से ही हाथ से टोपियां बनाकर होली में रंग भरता आ रहा है.
हालांकि जबसे कोरोना फैला है, उनका कारोबार पूरी तरह से बंद है. फिलहाल ये परिवार पाई पाई को मोहताज है और उनकी टोपियों के खरीदार नहीं मिल रहे हैं.
अमरोहा शहर के मोहल्ला बटवाल में जाते ही यहां गंगा-जमुनी तहजीब का अनूठा रंग देखने को मिलता है. अपने खास तरह के आमों की मिठास के लिए मशहूर इस शहर में कई दशकों से नसीम का परिवार होली की टोपियां बना रहा है. करीब छह-सात दशक से ये मुस्लिम परिवार हाथों से होली की टोपियां बनाता है और ये पूरे देश में सप्लाई की जाती हैं.
मिर्जा नसीम बेग ने बताया, यह काम हमारे दादा करते थे, हमारे पापा करते थे, अब मैं करता हूं. हो सकता है मेरे बच्चे भी यही काम करें.
होली से दो माह पहले टोपी तैयार करने का काम शुरू होता है, लेकिन नसीम का कहना है कि इस बार कोरोना ने हमारी कमर तोड़ दी. कोरोना के चलते इस बार होली टोपी की मांग बहुत कम हो गई है. हर साल करीब 10 लाख रुपये का कारोबार होता था, लेकिन इस बार मांग घट गई है. हमने जो टोपियां बनाई भी, उनके ढेर लगे हैं.
पंचायत चुनाव से उम्मीद
नसीम का कहना है कि अब उनको थोड़ी उम्मीद पंचायत चुनाव से है, जिसमें वे चुनाव चिन्ह वाली टोपियां बनाएंगे. नसीम के इस कारोबार से महिलाएं भी जुड़ी हैं. नसीम टोपियों की कटिंग करते हैं और फिर उनको महिलाएं सिलकर तैयार करती हैं. इसमें मार्जिन न के बराबर है लेकिन बुजुर्ग और खाली महिलाओं के लिए काम मिल जाता है. उन्हें 10-20 रुपये का फायदा होता है. लेकिन अब वह भी बंद हो गया.
यहां पर बनी टोपी उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में भेजी जाती है और होली पर लोग पहनकर रंग खेलते हैं. ये टोपियां देखने में काफी आकर्षक होती हैं. मिर्जा कहते हैं, 'इस साल तो बहुत नुकसान हो गया है. लॉकडाउन के बाद कई दुकानदार पैसा लेकर भाग गए. हमारा माल दिल्ली के अलावा लखनऊ, कानपुर सब जगह जाता था. इस बार कहीं नहीं गया. लॉकडाउन में लोगों को सैकड़ों किलोमीटर भागना पड़ा, उसका असर अभी तक है. डर के मारे व्यापारी नहीं आ रहे हैं. मेरे पास ढेर लगे हैं, अब मुसीबत है कि मेरी लागत कैसे आएगी.'
मिर्जा बनाते हैं जय श्रीराम वाली टोपियां
मिर्जा नसीम बेग कहते हैं कि 'होली तो सद्भावना का त्योहार है. मैं होली के अलावा जय श्रीराम वाली टोपियां भी बनाता हूं. फिलहाल इलेक्शन के लिए टोपियां बना रहा हूं. मेरा कई लाख रुपये का नुकसान हुआ है. जो औरतें सिलाई करती हैं, उनको देने के लिए पैसे नहीं हैं. हो सकता है कि इलेक्शन से कुछ मदद मिल जाए.'
मिर्जा बताते हैं कि 'पहले हमारे यहां से टोपियां अजमेर भेजी जाती थीं. फिर हम चुनरी बनाने लगे जो मथुरा और हरिद्वार भेजी जाने लगी. बाद में हम इसे अयोध्या और उज्जैन भी भेजने लगे. हमारी चुनरी मंदिरों में चढ़ती थी. बाद में काम में बदलाव आ गया तो होली की टोपी बनाने लगे. हाल में हम इलेक्शन की टोपी और झंडा भी बनाने लगे.'
यहां टोपी सिलने के काम में लगे तनवीर बेग बताते हैं, 'मैं जब 12-13 की उम्र में था, तबसे ही यह काम शुरू कर दिया था. अब मेरी उम्र लगभग 30 वर्ष हो गई है. मैंने पूरा बचपन इस काम में गुजार दिया पर आज तक ऐसा कभी नहीं देखा, जब पूरा का पूरा साल खराब गया हो.'
टोपी सिलने वाली कनीजा बेगम कहती हैं कि एक जमाना हो गया हमें यह काम करते हुए, यह हमारा खानदानी काम है, लेकिन इस साल बिक्री बहुत कम है. हालांकि, टोपी बेचने वाले दुकानदार अंकित जैन का कहना है कि अमरोहा में बनने वाली टोपी के अलावा यहां राजस्थान में बनने वाली टोपी की भी मांग रहती है. अमरोहा की टोपी भले ही पूरे देश में बिकती हो, लेकिन अब यहां राजस्थानी टोपियां बिकती हैं.
हालांकि व्यापारी सुरक्षा फोरम के जिलाध्यक्ष मनोज टंडन खत्री का कहना है कि अलग-अलग कारोबार की बात अलग-अलग है. मेरे कारोबार में तेजी है. अब बाजार सामान्य हो रहा है. होली और ईद के पहले बाजार गति पकड़ रहा है.