
महाराष्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा इलाके ऐसे हैं, जहां किसानों की आत्महत्याओं के केस बड़ी संख्या में सामने आते हैं. देश के सबसे ज्यादा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में भी इन इलाकों का शुमार होता है. लेकिन यहां सितंबर जैसे महीने में होने वाली भारी बारिश भी किसानों को फायदे की जगह नुकसान अधिक पहुंचा जाती है. लेकिन कहते हैं न इनसान कुछ ठान ले तो क्या नहीं कर सकता. ऐसी ही कुछ कहानी है विदर्भ के वर्धा के पास गांव से ताल्लुक रखने वाले राहुल सुपारे नाम के नौजवान की.
30 वर्षीय राहुल सुपारे इलेक्ट्रॉनिक एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियर हैं और ढाई-तीन साल पहले तक जॉब कर रहे थे. किसान परिवार से ताल्लुक रखने की वजह से राहुल खेती की बारीकियों से परिचित हैं. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वो बचपन से पिता के साथ खेतों में जाते रहे थे. पिछले कुछ साल से राहुल के पिता हल्दी की खेती कर रहे हैं. हल्दी की प्रोसेसिंग कर बाजार में बेची जाती है.
राहुल ने नौकरी छोड़ने के बाद परिवार के हल्दी के काम को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया पुणे में मार्केटिंग के लिए उन्होंने इसके लिए एक सेंटर भी बना लिया. बहुत कोशिश करने के बाद राहुल जैसा चाहते थे, उस हिसाब से कारोबार नहीं चल रहा था. ऐसे में राहुल के दिमाग में यही उधेड़बुन चलती रही कि इस स्थिति का क्या तोड़ निकाला जाए.

राहुल को जानकारी थी कि वर्धा इलाके में वायगांव हल्दी का उत्पादन होता है जिसकी हेल्थ और फार्मा सेक्टर में बहुत मांग है. दरअसल, हल्दी से कुरकुमा लोंगा की प्रचलित होम्योपैथिक दवा का निर्माण होता है. दो तरह की हल्दी ज्यादा प्रचलित हैं सलेम और वायगांव. जहां सलेम हल्दी में कुरकुमा लोंगा की मात्रा 2-3% होती है वही वायगांव हल्दी में यह 4-5% होती है. वायगांव हल्दी का थोक भाव 13 हजार रुपये प्रति क्विंटल है, यानि 130 रुपये प्रति किलो. प्रोसेसिंग और पाउडर करने के बाद वायगांव हल्दी को 260 रुपए किलो बाजार भाव मिलता है.

राहुल सुपारे ने हल्दी की मेडिसिनल संभावनाओं को भांपते हुए वर्धा इलाके में 20 किसानों का एक ग्रुप बनाया. इस ग्रुप का नाम श्री हरी किसान शेतकरी उत्पादक एवं विक्रेता गट रखा गया. इस ग्रुप को बोनिका फार्म्स एलएलपी कपनी के साथ जोड़ दिया. ग्रुप में फिर 50 से 60 किसान और किजुड़ गए. ये सारे किसान 100 एकड़ खेती में सिर्फ वायगांव हल्दी का उत्पादन कर रहे है. इस लॉक डाउन के दौरान 100 टन हल्दी का उत्पादन किया गया. कुछ हल्दी बिना प्रोसेसिंग खुले बाजार में बेच दी गई और 25 टन हल्दी को प्रोसेस करके बेचा गया. इससे करीब एक करोड़ रूपये का बिज़नेस हुआ. वही पिछले साल तक़रीबन 60 लाख रुपये का टर्नओवर किया था.

कोरोना महामारी की वजह से लॉकडाउन हुआ तो शुरू में राहुल और उनके ग्रुप के किसानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ा. क्योंकि हल्दी के प्रचलित बाजार में उसकी डिमांड घट गई. लेकिन राहुल को इस विपत्ति में भी बड़ा अवसर दिखाई दिया. कोरोना के इलाज में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए पारंपरिक औषधियों की मांग बढ़ी तो राहुल को वायगांव हल्दी के लिए सोशल मीडिया पर जोरशोर से मार्केटिंग करने का फैसला किया. ऐसे में तक़रीबन 80 से 100 बडी आर्गेनिक कंपनियों तक पहुंचने में राहुल को सफलता मिली. राहुल हल्दी बेचने तक ही सीमित नहीं रहे उन्होंने इम्युनिटी बढ़ाने वाली हल्दी टेबलेट्स, बच्चों के लिए टर्मेरिक लाइट जैसे उत्पाद भी बाजार में उतारे. इसी दौरान उन्होंने हल्दी आचार भी इंट्रोड्यूस किया. जाहिर है इम्युनिटी बढ़ाने वाले उत्पादों की डिमांड हाल में बढ़ने की वजह से इन हल्दी प्रोडक्ट्स को भी हाथों हाथ लिया गया.

खास बात ये है कि किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के मकसद से हल्दी के उत्पादन में साथ जुटे किसानों को उनके पूरे पैसे साथ नहीं दिए जाते. हल्दी बेचकर कमाया हुआ आधा पैसा किसानों के अकाउंट में जमा किया जाता है. साथ ही हर किसान को 20 हजार रुपये से 40 हजार रुपये तक हर महीने वेतन दिया जाता है. ये व्यवस्था इसलिए की गई है कि किसान एक साथ पैसे न खर्च करें और उनकी निरंतर आय का जरिया बना रहे.
(वर्धा से सुरेंद्र रामटेके के इनपुट्स के साथ)