scorecardresearch
 

Explainer: क्या है POCSO एक्ट का सेक्शन-8, बॉम्बे HC के फैसले से उठे सवाल?

ध्यान देने वाली बात यह है कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस तरह के कृत्य को अपराध की श्रेणी से मुक्त नहीं किया है. अदालत ने माना कि ये गलत है , अपराध है. लेकिन POCSO कानून के तहत नहीं, बल्कि IPC की धारा 354 के तहत.

Advertisement
X
प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अदालत ने दोषी को पॉक्सो कानून की धारा से बरी किया
  • आरोपी आईपीसी के तहत दोषी करार
  • न्यायालय ने 'सेक्सुअल असॉल्ट' की व्याख्या की

बॉम्बे हाई कोर्ट ने यौन हमले (sexual assault) से जुड़े एक मामले में एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसका छेड़छाड़, छेड़छाड़ की कोशिश, यौन हमला जैसे केस में व्यापक असर हो सकता है. 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि कपड़े के ऊपर से बच्ची का सीना दबाना और इस दौरान शारीरिक संपर्क न होना, यानी कि 'स्किन का स्किन से न छूना पॉक्सो कानून ( Protection of Children from Sexual Offences act) के तहत यौन हमले की श्रेणी में नहीं आता है. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने इस मामले में आरोपी को बरी कर दिया है. 

बॉम्बे हाई कोर्ट के इस फैसले से सामाजिक, राजनीतिक और कानूनी हलके में एक बहस छिड़ गई है. सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने फैसले की आलोचना की है. इसके अलावा इसे लेकर कई विचार सामने आए हैं.

किस केस में जज साहिबा ने सुनाया फैसला

ये मामला 2016 का है. दोषी सतीश बंदू रागड़े 12 साल की बच्ची को अपने घर ले गया था और उसने बच्ची का सीना दबाया. रिपोर्ट के मुताबिक बच्ची एक काम के सिलसिले में घर से बाहर गई थी, काफी देर तक जब वो नहीं लौटी तो उसकी मां उसे ढूंढ़ने के लिए निकली. मां ने बच्ची को रागड़े के ऊपरी मंजिल पर पाया था.

Advertisement

कमरा बाहर से बंद था. हालांकि रागड़े ने पहले बच्ची की जानकारी होने से इनकार किया था. जब मां सीढ़ियों से नीचे आ रही थी तो उसने अपनी बेटी के बारे में रागड़े से पूछा. रागड़े ने इस बारे में जानकारी से इनकार किया. 

डरी-सहमी बच्ची ने मां को बताया कि रागड़े उसे अमरूद देने के बहाने से अपने घर ले गया था और उसने उसका सीना दबाया और उसका सलवार उतारने की कोशिश की. इसी वक्त उसकी मां वहां पहुंच गई थी. 

निचली अदालत का फैसला

इस मामले में बच्ची की मां ने तुरंत पुलिस में केस दर्ज करवाया. निचली अदालत ने इस मामले में 39 साल के आरोपी को POCSO एक्ट के तहत सेक्सुअल असॉल्ट और IPC की धारा 354 (महिला की मर्यादा को भंग करने के लिए उस पर हमला या जोर जबरदस्ती) धारा-363 (अपहरण के लिए सजा) और धारा- 342 (गलत तरीके से कैद करना)   के तहत दोषी करार दिया था. 

दोषी ने बॉम्बे हाई कोर्ट में सजा को दी चुनौती

अभियुक्त रागड़े निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट चला गया. अदालत में सरकारी वकील एमजे खान ने कहा कि पॉक्सो एक्ट के तहत सीना दबाना सेक्सुअल असॉल्ट की परिभाषा के दायरे में आता है.  

Advertisement

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला

19 जनवरी को जस्टिस पुष्पा वी गनेडियावाला ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हाई कोर्ट ने इस तरह के कृत्य को अपराध की श्रेणी से मुक्त नहीं किया है. अदालत ने माना कि ये गलत है , अपराध है. लेकिन POCSO कानून के तहत नहीं, बल्कि IPC की धारा 354 के तहत. बता दें कि  POCSO एक्ट की धारा 8 के तहत ऐसे अपराध की सजा 3-5 साल है, जबकि IPC की धारा 354 के तहत एक से 2 साल तक की सजा का प्रावधान है.

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "जैसा कि इस मामले में सीधा शारीरिक संपर्क नहीं हुआ है मतलब कि स्किन से स्किन टच नहीं हुई है. न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की कि 'किसी भी महिला/बच्ची की गरिमा को भंग करने के उद्देश्य से उसका सीना दबाना आपराधिक कृत्य हो सकता है.  

देखें: आजतक TV LIVE

अदालत ने अपने फैसले में कहा कि जैसा कि सरकारी वकील भी कह रहे हैं कि अपीलकर्ता यानी कि दोषी ने पीड़िता का टॉप उठाकर सीना नहीं दबाया. 

कोर्ट ने कहा कि बिना किसी विशेष डिटेल के अभाव में जबकि ये स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि 12 साल की बच्ची के कपड़े को हटाकर सीना दबाया गया था, या फिर अपीलकर्ता ने टॉप के अंदर अपना हाथ डाला था और बच्ची के सीने को दबाया था, ये मामला पॉक्सो एक्ट के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की श्रेणी में नहीं आएगा.    
 
आईपीसी ने इस मामले को आईपीसी की धारा 354 के दायरे में माना, जो स्त्रियों की गरिमा के साथ खिलवाड़ करने से जुड़ा है.

Advertisement

POCSO Act की धारा 8 के तहत बरी

अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि उपरोक्त चर्चाओं के बाद कोर्ट अपीलकर्ता को POCSO Act की धारा 8 के तहत लगाए गए आरोपों से बरी करता है, और उसे आईपीसी की धारा 354  के तहत दोषी ठहराया जाता है. 

पॉक्सो कानून के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की व्याख्या

पॉक्सो कानून के तहत सेक्सुअल असॉल्ट की व्याख्या करते हुए जज ने कहा कि इस परिभाषा के अनुसार ऐसे अपराध में निम्न अहम बिंदु होने चाहिए. ये कृत्य यौन इरादे से किया गया हो, इस कृत्य में बच्ची/बच्चे के यौन अंगों को छुआ गया हो, या फिर बच्चे/बच्ची को किसी दूसरे व्यक्ति या फिर आरोपी के जननांगों को छूने पर मजबूर किया गया हो. या फिर कोई ऐसा कृत्य हो जो यौन इरादे से किया गया हो जिसमें संपर्क स्थापित हुआ हो, लेकिन पेन्ट्रेशन नहीं हुआ हो. 

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का मूल सिद्धांत यह है कि अपराध की सजा अपराध की गंभीरता के अनुपात में होगी.

 

Advertisement
Advertisement