महाराष्ट्र में लगातार गहराते राजनीतिक और संवैधानिक संकट में अब राज्यपाल और विधानसभा स्पीकर (Speaker) की भूमिका अहम होती जा रही है. हालांकि महाराष्ट्र में सरकार चला रहे महा विकास आघाड़ी (MVA) के तीनों मुख्य धड़ों में विश्वास का संकट कहें या राजनीतिक पैंतरेबाजी, दो सालों में स्थायी स्पीकर का चुनाव नहीं हो पाया. कार्यवाहक स्पीकर ही कार्य का निर्वाह कर रहे हैं. यानी कामचलाऊ उपाय वाला जुगाड़ लगा लिया गया.
अब बागी विधायकों का क्या करना है, ये तय करना स्पीकर का काम होगा. काम चलाऊ स्पीकर भी एनसीपी के विधायक हैं. बागी विधायक दल-बदल कानून के तहत आते हैं. उनकी दलीलें स्वीकार करना या ठुकराते हुए अपने विवेक से निर्णय लेते हुए उनकी योग्यता-अयोग्यता पर फैसला लेना अब स्पीकर की जिम्मेदारी होगी. सरकार की अग्नि परीक्षा के साथ-साथ ये स्पीकर की भी अग्नि परीक्षा होगी.
लोकसभा के पूर्व महासचिव ने बताया....
लोकसभा के पूर्व महासचिव जीसी मलहोत्रा ने अपने अनुभव और संवैधानिक प्रावधानों के आधार पर बताया कि अब राज्यपाल और स्पीकर की भूमिका अहम हो गई है. राज्यपाल को ही देखना है कि कैबिनेट का विधान सभा भंग करने की सिफारिश क्या सरकार के अल्पसंख्यक यानी बहुमत खोने के डर से की गई है? सरकार की स्थिति दरअसल क्या है? क्या ऐसी स्थिति में कैबिनेट की सलाह मानी जाए या विधानसभा को सस्पेंशन पार्टिकल की स्थिति में रख कर अन्य विकल्पों को आजमाया जाए. यानी जो गठबंधन सरकार चलाने की कुव्वत रखता हो उसकी तलाश की जाए. शक्ति परीक्षण कराया जाय या फिर परिस्थितियों को भांपते हुए राष्ट्रपति शासन लगाया जाए.
महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की संभावना भी प्रबल...
राष्ट्रपति शासन की संभावना भी प्रबल है, क्योंकि विधानसभा भंग करने का सीधा असर राष्ट्रपति चुनाव पर पड़ेगा, जबकि विधानसभा को लंबित रखते हुए राज्यपाल यानी राष्ट्रपति शासन हो तो विधायक और बागी विधायक भी वोट डाल सकेंगे.
मलहोत्रा ये भी बताते हैं कि अगर स्पीकर ने बागी विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया तो वो अयोग्य हो ही जाएंगे, लेकिन अगर अयोग्य घोषित विधायक हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट चले गए और कोर्ट ने स्पीकर के आदेश पर रोक लगा दी तो ऐसी स्थिति में विधायक वोट कर पाएंगे.
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