बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की खंडपीठ ने महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम से कहा है कि 'हमारी चिंता यह है कि आप कितने साल तक टोल जमा करेंगे. क्या आपने निर्माण लागत नहीं वसूल की है?'
ये सवाल खंडपीठ द्वारा 2019 में दायर की गई चार याचिकाओं की सुनवाई के दौरान किया. वहीं 2020 में एक जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें कहा गया था कि टोल वसूली का अधिकारी महिस्कर इंफ्रॉस्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को 15 साल के लिए दिया गया था, जो 2004 तक था.
याचिका में बताया गया है कि 15 वर्षों में टोल से वसूली गए राजस्व की राशि 4 हजार 330 करोड़ रुपये थी. हालांकि वास्तविक राजस्व वसूली का अनुमान 6 हजार 773 करोड़ का लगाया जा रहा है. इसके बाद भी कंपनी द्वारा टोल वसूली की प्रक्रिया को जारी रखा है. पीआईएल में दावा किया गया है कि कंपनी द्वारा 10 अगस्त, 2019 के बाद एकत्र किए गए टोल को अवैध घोषित किया जाना चाहिए.
2030 तक टोल वसूली की दी दलील
महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) की ओर से अधिवक्ता प्रशांत चव्हाण ने दलील दी कि हाइवे के रखरखाव और उसके विस्तार को लेकर खर्चा बढ़ा, जिसके चलते टोल वसूली का संग्रह कंपनी के लिये वर्ष 2030 तक बढ़ाया गया. वहीं याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता प्रवीण वाटेगांवकर ने कहा कि हाइवे की लागत का कुल राजस्व वसूला जा चुका है. प्रवीण वाटेगांवकर, संजय शिरोडकर, विवेक वेलंकर और श्रीनिवास घानेकर ने कहा कि एक्सप्रेसवे की परियोजना लागत का लगभग 49 प्रतिशत सड़क से सटी भूमि के व्यावसायिक उपयोग से वसूल किया जाना है, जो राज्य सरकार ने MSRDC को दिया है.
दो सप्ताह में मांगा जवाब
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जनहित याचिका के जवाब में महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) से दो सप्ताह में इस मामले को लेकर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है. वहीं इस मामले में अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी. हाईकोर्ट ने कहा कि अच्छी सड़कें उपलब्ध करना सरकार का कर्तव्य है.