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बेघर, भिखारी भी देश के लिए करें काम, राज्य सबकुछ नहीं दे सकता: बॉम्बे HC

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बेघर लोगों को भी देश के लिए काम करना चाहिए. राज्य द्वारा सबकुछ नहीं दिया जा सकता है. यह याचिका सिर्फ समाज के इस वर्ग की आबादी को बढ़ा रही है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 'बेघरों को भी देश के लिए काम करना चाहिए'
  • हाई कोर्ट बोला- राज्य ही सबकुछ नहीं दे सकता है
  • पीआईएल की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने की टिप्पणी

बॉम्बे हाई कोर्ट ने बेघरों और भिखारियों को लेकर शनिवार को अहम टिप्पणी की है. कोर्ट ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए कहा कि बेघर लोगों को भी देश के लिए काम करना चाहिए. राज्य द्वारा सबकुछ नहीं दिया जा सकता है. याचिका सिर्फ समाज के इस वर्ग की आबादी को बढ़ा रही है.

जनहित याचिका 'पहचान' नामक एक एनजीओ के संस्थापक व अध्यक्ष बृजेश आर्य द्वारा दायर की गई थी. अपनी याचिका में उन्होंने बेघर और शहरी गरीबों के लिए मुफ्त आश्रय, दिन में तीन बार पौष्टिक भोजन, स्वच्छ सार्वजनिक शौचालय और बाथरूम, पीने योग्य पानी और महिलाओं के लिए सैनिटरी नैपकिन की मांग की थी.

इससे पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) से जानना चाहा था कि हर वॉर्ड में शेल्टर होम्स क्यों नहीं बनाए जा सकते? बीएमसी ने शनिवार को मुंबई में बेघर लोगों को उसके साथ-साथ विभिन्न एनजीओ द्वारा दिए जा रहे भोजन के पैकेटों की संख्या पर डेटा दिया है. इसके अलावा, बीएमसी ने 1,300 बेघर महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन बांटे जाने के बारे में भी जानकारी दी. नगर निगम की ओर से कहा गया है कि कुछ और परियोजनाएं पाइपलाइन में हैं जो बेघर लोगों को और समाधान प्रदान करेंगी.

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कोर्ट ने महामारी से निपटने में शामिल उपायों समेत अन्य सुविधाओं को दिए जाने के अधिकारियों के प्रयासों को लेकर उनकी सराहना की. चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की बेंच ने कहा, "सरकार और निगम अपनी क्षमता की सीमा के अंदर पानी, नैपकिन आदि के लिए सही दिशा में कदम उठा रहे हैं और अभी इस कोर्ट से वितरण बढ़ाने के लिए किसी निर्देश के दिए जाने की जरूरत नहीं है.''

कोर्ट ने आगे याचिकाकर्ता की ओर इशारा करते हुए कहा, "आप (याचिकाकर्ता) समाज के इस वर्ग की आबादी को बढ़ा रहे हैं." अदालत ने आगे कहा कि याचिका में मांगी गई सभी मांगों को स्वीकार करना लोगों को काम न करने का निमंत्रण जैसा होगा.

हालांकि, कोर्ट ने आदेश पारित करते हुए कहा कि सार्वजनिक शौचालय इस्तेमाल के लिए न्यूनतम राशि लेते हैं और महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह बेघर व्यक्तियों को इस तरह की सुविधा का फ्री में इस्तेमाल करने की अनुमति देने पर विचार करे. बेंच ने कहा, ''हम राज्य सरकार को यह देखने का निर्देश देते हैं कि क्या बेघर व्यक्ति इन शौचालयों का नि:शुल्क उपयोग कर सकते हैं?''

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