भीमा कोरेगांव हिंसा की बरसी पर कोरेगांव भीमा विजय स्तंभ के आसपास सुरक्षा व्यवस्था चुस्त कर दी गई है. सरकार ने भी शांति व्यवस्था कायम रखने के लिए कड़े सुरक्षा इंतजाम के निर्देश दिए हैं.
पूरे इलाके में साढ़े आठ हजार पुलिस बलों की तैनाती की गई है. महाराष्ट्र स्टेट रिजर्व पुलिस फोर्स (एसआरपीएफ) की दो यूनिट भी लगाई गई हैं. सभी आईपीएस अधिकारियों को सड़कों पर तैनात रहने का निर्देश दिया गया है. एक अनुमान के मुताबिक, विजय स्तंभ पर तकरीबन 8 लाख लोगों के पहुंचने की उम्मीद है. पिछले दिन से कुछ लोगों ने पहुंचना भी शुरू कर दिया है.
चप्पे- चप्पे पर निगाह रखने के लिए 350 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं जिससे लाइव रिकॉर्डिंग की जाएगी. आसपास के 10 किमी के इलाके में ट्रैफिक डायवर्ट किया गया है और कुछ आवाजाही पर भी प्रतिबंध है. अब तक लगभग 1250 लोगों का प्रवेश रोका गया है. इनमें से कुछ कबीर कला मंच और मिलिंद एकबोटे जैसे संगठन से जुड़े लोग हैं. दोनों पक्षों के लोग हिंसा फैला सकते हैं, इसे देखते हुए अशांत लोगों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जा रही है. भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के प्रवेश पर भी पाबंदी है.
Pune: Security tightened in Bhima Koregaon on the 201st anniversary of the #BhimaKoregaon battle. #Maharashtra pic.twitter.com/39DSbimTUY
— ANI (@ANI) January 1, 2019
पिछले साल 200वीं बरसी पर हिंसा हो गई थी, जिसे देखते हुए इस साल चौकसी बढ़ाई गई है. एक जनवरी को जातीय हिंसा के दौरान 30 वर्षीय एक व्यक्ति की हत्या के मामले में पुणे पुलिस ने अहमदनगर जिले से तीन लोगों को गिरफ्तार किया था.
पुणे जिले में कोरेगांव भीम के नजदीक हुई हिंसा के दौरान राहुल फटांगले की कथित तौर पर हत्या हुई थी. इस मामले में अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया था. फटांगले पर लोगों के एक समूह ने उस समय हमला कर दिया था जब वह घर लौट रहे थे.
पुलिस के मुताबिक, अहमद नगर से तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया और सभी ने फटांगले पर पत्थर और डंडे से हमला करने का अपना अपराध मान लिया. गौरतलब है कि 201 साल पहले 1 जनवरी को ही भीमा-कोरेगांव युद्ध में अंग्रेज़ों ने महाराष्ट्र के महार समाज की मदद से पेशवा की सेना को हराया था और इस जीत का स्मारक बनवाया था. महार समाज इसे हर साल अपनी जीत के तौर पर मनाता है. भीमा कोरेगांव की लड़ाई की बरसी में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं. पिछले साल हिंसा के बाद पुलिस की जांच से गांववाले खासे त्रस्त हुए थे और एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उन्होंने हिंसा के लिए बाहरी लोगों को जिम्मेदार बताया था. इस साल भी बाहरी लोगों की मौजूदगी के बाद पुलिस ने सुरक्षा व्यवस्था चुस्त कर दी है. हिंसा की आशंका को देखते हुए भीमा कोरेगांव में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है.
कोरेगांव हिंसा का इतिहास
भीमा कोरेगांव की लड़ाई 1 जनवरी. 1818 को कोरेगांव भीमा में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और पेशवा सेना के बीच लड़ी गई थी. इस लड़ाई की खास बात यह थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे तले 500 महार सैनिकों ने पेशवा बाजीराव-2 की 25000 सैनिकों की टुकड़ी से लोहा लिया था. उस वक्त महार अछूत जाति मानी जाती थी और उन्हें पेशवा अपनी टुकड़ी में शामिल नहीं करते थे. महारों ने पेशवा से गुहार लगाई थी कि वे उनकी ओर से लड़ेंगे, लेकिन पेशवा ने आग्रह ठुकरा दिया था. बाद में अंग्रेजों ने महारों का ऑफर मान लिया और अंग्रेज-महार मिलकर पेशवा को हराया.