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औरंगाबाद हादसाः पैकेटों में पहुंचे मजदूरों के शवों के टुकड़े, सभी एक साथ दफनाए गए

औरंगाबाद रेल हादसे के शिकार मजदूरों के शरीर टुकड़े-टुकड़े हो गए थे. टुकड़े-टुकड़े हो चुके शरीर के अंगों को जोड़कर पैकेट में सिल दिया गया, हर पैकेट को एक नाम दे दिया गया. बस उपर लगे टैग उनकी पहचान बन गए.

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घर लाए गए मजदूरों के शव (फोटो-PTI)
घर लाए गए मजदूरों के शव (फोटो-PTI)

  • औरंगाबाद रेल हादसे में 17 मजदूरों की मौत
  • 9 मजदूरों की लाश कल पहुंची अंतौली गांव

औरंगाबाद रेल हादसे के शिकार मजदूरों के शव उनके गांव पहुंचे तो हर किसी की आंखें नम हो गई. मध्य प्रदेश के शहडोल में रविवार को 9 पैकेट पहुंचे. इन पैकेटों में मजदूरों के शरीर के टुकड़े थे. किसी ने पैकेट को खोलने की हिम्मत नहीं की. गांव के एक मैदान में सभी लाशों को एक साथ दफना दिया गया.

गौरतलब है कि औरंगाबाद रेल हादसे के शिकार मजदूरों के शरीर टुकड़े-टुकड़े हो गए थे. टुकड़े-टुकड़े हो चुके शरीर के अंगों को जोड़कर पैकेट में सिल दिया गया, हर पैकेट को एक नाम दे दिया गया. बस उपर लगे टैग उनकी पहचान बन गए. मजदूरों के शव गांव पहुंचे तो परिजनों की पथराई आंखों से फिर आंसू फूट पड़े. गांव में मौजूद हर किसी की आंखें बहने लगी.

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मांस के लोथड़ों को समेट कर बनाये गए पैकेटों को खोलने का कोई भी साहस नहीं कर सका. परिजनों की ख्वाहिश थी कि घर में मिट्टी आ जाए. सरकार से भोले-भाले आदिवासियों ने कुछ नहीं मांगा था. बस कहते कि चले तो गए, अब बस गांव की मिट्टी मिल जाए. मृतक शिवदयाल के पति गजराज सिंह गोंड़ ने भी यही मांग की.

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अंतौली गांव के सभी मृतक हिंदू थे. परंपराओं के अनुसार उनका दाह संस्कार होना था, लेकिन हुआ नहीं. शवों को घर तक ले जाने नहीं दिया गया. ढलते सूरज के साथ प्रशासन को भी जल्दी थी. अंतिम संस्कार करने के लिए जेसीबी मशीन से 9 गड्ढे खुदवा कर लाशों को दफना दिया गया.

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गांव के उसी मैदान में सभी 9 मजदूरों को हमेशा के लिए सुला दिया गया, जहां खेलकर यह बड़े हुए थे. गड्ढों में लाशें रखकर मशीन से मिट्टी भर दी गई, जिसने भी यह मंजर देखा उसका दिल फट गया.

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