रांची के बेड़ो इलाके में उनकी पहचान हरित क्रांति के पुरोधा के रूप में है और गांव वाले उन्हें अपना भगवान मानते हैं. कैंब्रिज के छात्र उनके कार्यों पर शोध करते हैं और पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण विकास की थिसिस में उनके प्रयासों की चर्चा करते हैं. इस बुजुर्ग आदिवासी का नाम शिमोव उरांव उर्फ शिमोन बाबा है.
उम्र के आठवें दशक में भी शिमोन अपने मिशन में लगे हैं. उनका प्रयास ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का है ताकि लोगों को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया जा सके.
शिमोन ने इस इलाके में सबसे पहले नवपतरा में बांध बनाया. इसके बाद दूसरा बांध अंतबलु में और तीसरा बांध खरवागढ़ा में बनाया. उनके प्रयासों के चलते आज यहां दो फसलों की खेती हो पा रही है.
शिमोन बताते हैं कि जब उन्होंने बांध और नहर बनाने का काम शुरू किया, तो कई समस्याओं का सामना करना पड़ा. शिमोन उरांव ने क्षेत्र में घूम कर यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर कैसे बांध खोदा जाए कि वह बहे नहीं.
उन्होंने अनुमान लगाया कि यदि बांध को 45 फीट पर बांधा जाए और नाले की गहराई 10 फीट रखें, तो फिर वह बरसात के पानी को झेल लेगा. शिमोन ने इसी सोच को मूर्त रूप दिया और 5500 फीट लंबी नहर तैयार कर दी. उनकी कोशिशों से तीन बांध और पांच तालाब तैयार हुए. उनके प्रयासों से सात गांवों को पानी मिल रहा है.
जीवन के आठ बसंत की यात्रा शिमोन के लिए मुश्किलों भरी रही है. युवावस्था में शिमोन के लिए गरीबी सुरसा की तरह थी. अंग्रेज चले गए और भारतीयों के हाथ सत्ता आई लेकिन यह शासन फिरंगियों से ज्यादा पीड़ादायक था.
गांव के जंगल पर वन विभाग ने दावा कर दिया. ठेकेदार को वन कटाई के ठेके दिये जाने लगे और यह तर्क दिया गया कि जब पुराने पेड़ कटेंगे, तो उस जगह नये पौधे जन्म लेंगे.
शिमोन उरांव को यह बात नहीं जंची. उनका स्पष्ट मानना था कि जंगल पर गांव के लोगों का अधिकार है. उन्होंने ग्रामीणों के समर्थन के साथ ऐलान कर दिया वे इस कानून को नहीं मानेंगे. जमीन पर गांव वालों का अधिकार है. बरखा, पानी, जंगल-झाड़ ईश्वर देते हैं. जंगल की कटाई का विरोध करने के लिए उन्होंने तीर-कमान उठा लिया. लिहाजा 1952-53 में उन पर केस हो गया. शिमोन उरांव को दो बार जेल जाना पड़ा.
शिमोन बाबा ने गांव वालों के लिए नियम बनाया है कि 'एक पेड़ काटो, तो पांच पेड़ लगाओ.' वन रक्षा के लिए बीसियों गांव के ग्रामीणों को इकट्ठा किया. हर गांवों के 10-10 लोगों को जंगल रक्षा की जिम्मेवारी दी है. रक्षा करने वालों को 20 पैला सालाना चावल देने का फैसला लिया गया है. और जलावन के लिए, घर बनाने के लिए लकड़ी की कटाई पर दो रुपये का शुल्क तय किया है.
शिमोन को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में किए गए उल्लेखनीय कार्यों के लिए कई सम्मान भी मिले हैं. उन्हें अमेरिकन मेडल ऑफ ऑनर लिमिटेड स्ट्रॉकिंग पुरस्कार 2002 के लिए चुना गया. साथ ही अमेरिका के बायोग्राफिक इंस्टीटय़ूट ने शिमोन के काम को सराहा. झारखंड सरकार ने भी 2008 में स्थापना दिवस के अवसर पर शिमोन को सम्मानित किया.