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नक्सलियों ने 14 दिसंबर CNT-SPT संशोधन एक्ट के विरोध में बुलाया झारखंड बंद

दरअसल बीते कुछ समय से नक्सली संगठन अपने आदर्शो को भूल सिर्फ लेवी वसूलनेवाले आपराधिक गिरोह में तब्दील हो गए है, ऐसे में सामाजिक और आर्थिक विषमता को हथियार बनाकर आदिवासियों के बीच पैठ बनानेवाले इन संगठनो की असलियत जनता के सामने आ गयी है.

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नक्सलियों ने बुलाया झारखंड बंद
नक्सलियों ने बुलाया झारखंड बंद

झारखंड में अपने लगातार घट रहे जनाधार से परेशान नक्सलियों ने इसे वापिस पाने के लिए नया हथकंडा अपनाया है. नक्सलियों ने CNT-SPT संशोधन एक्ट के खिलाफ 14 दिसंबर को बंद आह्वान किया है. नक्सलियों के संगठन PLFI ने संशोधन एक्ट को आदिवासियों के खिलाफ बताया और सरकार से इसे वापिस लेने की मांग की है. नक्सलियों ने इसके लिए प्रदेश के सांसदों और विधायकों से उनका साथ देने की मांग की है, ऐसा ना करने पर इनके खिलाफ कारवाई की भी धमकी दी है.

घटते जनाधार का क्या है कारण ?
दरअसल बीते कुछ समय से नक्सली संगठन अपने आदर्शो को भूल सिर्फ लेवी वसूलनेवाले आपराधिक गिरोह में तब्दील हो गए है, ऐसे में सामाजिक और आर्थिक विषमता को हथियार बनाकर आदिवासियों के बीच पैठ बनानेवाले इन संगठनो की असलियत जनता के सामने आ गयी है. वहीं पुलिस और सुरक्षाबलों की मुस्तैदी और ग्रामीण इलाकों में हो रहे विकास ने भी यहां के बेरोजगार नौजवानों को नक्सली आइडियोलॉजी से विमुख करने का काम किया है. दूसरी तरफ नोटबंदी ने इनके आर्थिक तंत्र पर गहरी चोट की है ऐसे में बदलते हालात के मद्देनजर नक्सलियों ने एक बार फिर से अपने आप को सर्वहारा की लड़ाई लड़ने वाले के तौर पर अपने-आप को पुनर्स्थापित करने के लिए बंद को अपना हथियार बनाया है.

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क्या है CNT-SPT संशोधन विधेयक
दरअसल CNT - SPT एक्ट आदिवासियों की भूमि के लिए बनाया हुआ एक कानून है. बीते 3 मई को छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट और संथाल परगना टेनेंसी में संशोधन का प्रस्ताव झारखंड कैबिनेट की बैठक में पास किया गया था. इन दोनों प्रावधानों में संशोधन के तहत जमीन मालिक को अपनी भूमि में परिवर्तन का अधिकार मिलेगा. कृषि के अलावा अपनी जमीन का उपयोग व्यावसायिक कार्यों के लिए भी कर सकेंगे. इससे उनको कारोबारी रेट भी मिलेगा, अब तक आदिवासी अपनी भूमि किसी और को नहीं बेच सकते थे.

वे बस एक थाना क्षेत्र में ही किसी आदिवासी से जमीन की खरीद बिक्री कर सकते हैं. संशोधन के तहत सिर्फ थाने की बंदिश खत्म हो जाएगी. हालांकि जमीन मालिक का मालिकाना हक उसकी जमीन पर बना रहेगा. पहले यह प्रावधान था कि अनुसूचित जनजाति के भूमि का उपयोग खान और उद्योग के लिए किया जाता था और इसके लिए कमिश्नर की मंजूरी जरूरी थी. लेकिन इस बिल के पास होने के बाद अब इस जमीन का उपयोग अन्य योजना जैसे आधारभूत संरचना, सड़क, ऊर्जा के लिए ट्रांसमिशन लाइन, परिवहन, संचार के लिए भी किया जा सकेगा.

अगर किसी काम के लिए अनुसूचित जनजाति की जमीन ली जाती है तो उसका उपयोग पांच साल के अंदर अनिवार्य रूप से करना होगा, अगर ऐसा नहीं हुआ तो वह जमीन जिस परिवार से ली गई है, उसे वापस कर दी जाएगी. साथ ही जमीन के एवज में दिया गया मुआवजा भी वापस नहीं होगा.

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