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लोहरदग्गा के एसपी अजय को भी मार दिया था नक्सलवादियों ने साल 2000 में

झारखंड में ऐसा पहली बार हुआ है कि नक्सलियों ने किसी आईपीएस को हमलाकर मार दिया हो. इससे पहले साल 2000 के अक्टूबर में नक्सलियों ने झारखंड के लोहरदग्गा जिले के एसपी अजय कुमार सिंह की हत्या कर दी थी. लेकिन तब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था.

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झारखंड में ऐसा पहली बार हुआ है कि नक्सलियों ने किसी आईपीएस को हमलाकर मार दिया हो. इससे पहले साल 2000 के अक्टूबर में नक्सलियों ने झारखंड के लोहरदग्गा जिले के एसपी अजय कुमार सिंह की हत्या कर दी थी. लेकिन तब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था.

4 अक्टूबर 2000 को माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर नाम के आतंकवादी ग्रुप ने लोहरदग्गा के पेशरार गांव में अजय को गोली मार दी थी. 1995 बैच के आईपीएस अजय अपने बेखौफ तेवरों के लिए मशहूर थे और वह बिहार के पहले ऐसे आईपीएस अधिकारी थे, जो वर्दी में नक्सलवादियों से लड़ते हुए शहीद हुए.

फायरिंग की खबर सुनकर गए थे

पेशरार गांव तीन जिलों की सीमा पर स्थित है. लोहरदग्गा, गुमला और पलामू. ये तीनों ही जिले नक्सलियों के बहुत अधिक प्रभाव में माने जाते हैं. यहां पर कुछ दिन पहले माओवादियों ने गांव वालों को डराने के लिए खुलेआम दिन दहाड़े पुलिस पर फायरिंग की थी.

इसी बात को ध्यान में रखकर अजय ने गांव का दौरा करने का फैसला किया. वह अपने ऑफिस से जिप्सी पर सवार होकर निकले. उनके साथ ड्राइवर और बॉडीगार्ड के अलावा बिहार मिलिट्री पुलिस के चार जवान थे. गांव के पास पहुंचकर उन्होंने एक ढाबे पर गाड़ी रुकवाई और उस जगह के बारे में जानकारी हासिल की, जहां फायरिंग हुई थी. गाड़ी कुछ आगे पहाड़ियों की तरफ बढ़ी ही थी कि जोरदार धमाका हुआ.

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अजय के साथ जिप्सी पर सवार एक पुलिसकर्मी बंधन उरांव ने उस वक्त मीडिया को बताया था कि धमाका सुनते ही हमने पोजीशन ले ली. हम फायरिंग शुरू कर पाते उससे पहले ही एक गोली साहब की खोपड़ी चीरते हुए निकल गई. उनकी मौके पर ही मौत हो गई.

बॉडीगार्ड को भी नहीं रहता था पता...

बताया जाता है कि अजय सिंह को पता था कि वह माओवादी ग्रुप के निशाने पर हैं. वह अपनी लोकेशन को लेकर बेहद सतर्क रहते थे और आखिरी मिनट तक कुछ करीबी लोगों को ही इसके बारे में पता होता था. सिंह की मौत के समय उनके बॉडीगार्ड रहे चंद्रमुनि सिंह ने मीडिया को उस वक्त बताया था कि साहेब के अलावा कोई नहीं जानता था कि अगले पल वह क्या करेंगे, कहां जाएंगे.

उस वक्त इस तरह के अंदेशे भी जाहिर किए गए थे कि माओवादियों को किसी करीबी ने ही अजय की लोकेशन बताई. इस मामले में उनके बॉडीगार्ड पर भी सवालिया निशान लगे थे.

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