कश्मीर में 400 से अधिक हिंदू युवा सरकारी नौकरियों के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं. उन्हें जब कहीं से भी उम्मीद की किरण नजर नहीं आई तो वो विरोध-प्रदर्शन पर उतर आए हैं. उनका ये प्रदर्शन हाई कोर्ट के दखल के बावजूद हो रहा है. कई साल से इंतजार कर रहे इन कश्मीरी पंडितों में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की नियुक्ति के बाद आस जगी है.
घाटी में रह रहे हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करनी वाली कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने बढ़ती बेरोजगारी को लेकर सरकार से दखल देने के मांग की है. समिति ने मांगें पूरी न होने पर आमरण अनशन करने की धमकी दी है.
समिति के अध्यक्ष संजय टिकू ने कहा कि हम मानसिक यातना का सामना करते हैं. वर्षों से चली आ रही सरकारी लापरवाही और अब लॉकडाउन से युवाओं को काफी दिक्कतें हुई हैं. लगभग 500 लोग अभी भी सरकारी नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं, हालांकि उच्च न्यायालय ने 2019 में इसके लिए मंजूरी दे दी है.
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उन्होंने कहा कि कश्मीर में रह रहे पंडित दो राहे पर हैं. हमारी संख्या घट रही है. किसी विशेष पैकेज की घोषणा नहीं की गई है. यहां तक कि नौकरी भी नहीं दी गई है. हमारा अस्तित्व खतरे में है. उन्होंने कहा कि सरकार को भेजने के लिए एक आधिकारिक पत्र का मसौदा तैयार किया जा रहा है.

क्या है मांग
- 500 बेरोजगार शिक्षित युवाओं के लिए नौकरियों की सिफारिश गृह मंत्रालय और उच्च न्यायालय ने की थी.
- कश्मीर घाटी में रह रहे 808 परिवारों के लिए मासिक नकद राहत.
- कश्मीर में सभी मंदिरों, पवित्र झरनों और श्मशान घाटों का संरक्षण और नवीनीकरण.
राहुल टिकू 28 साल के हैं और बेरोजगार हैं. उन्होंने बीबीए किया है. वह अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग में रहते हैं. राहुल कहते हैं कि मैं अपने माता-पिता का इकलौता बेटा हूं. हर रोज मैं जॉब के लिए कॉल का इंतजार करता हूं. अब, यह हमारे खिलाफ एक साजिश की तरह लगता है, क्योंकि इंतजार लंबा होता जाता रहा है.
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राहुल ने कहा कि कुछ साथी मित्रों ने परीक्षाएं भी पास कर लीं, लेकिन उन्हें ज्वाइनिंग लेटर देने से मना कर दिया गया. क्यों? यह हमारे समुदाय के खिलाफ एक सोची समझी साजिश की तरह लग रहा है.

स्थानीय कार्यकर्ताओं के मुताबिक, कश्मीर में पंडितों की आबादी घटकर 808 परिवारों की हो गई है. यह संख्या हर साल कम हो रही है. राहुल टिकू ने कहा कि बेरोजगारी के कारण शादी नहीं होती है. कई लोग घाटी से बाहर जाने को मजबूर हैं.
2011 की जनगणना के अनुसार, कश्मीर घाटी के ज्यादातर इलाकों में हिंदुओं की जनसंख्या 2 फीसदी से भी कम है और ये संख्या लगातार कम हो रही है. 30 वर्षीय संदीप कौल ने सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. वो काम करने के लिए अपने जन्मस्थान लौट आए, लेकिन यहां भी उनको इंतजार करना पड़ा. उन्होंने अदालत का रुख किया और कश्मीर में पंडितों के लिए नौकरियों की मांग की.
उच्च न्यायालय ने माना कि खाली पदों में 500 युवाओं की भर्ती की जाए, लेकिन नौकरशाही में इसको लेकर कोई भी गंभीरता नहीं दिखी. संदीप कौल कहते हैं कि मैं वर्तमान में एक निजी कंपनी से जुड़ा हुआ हूं. कोरोना वायरस और लॉकडाउन के बाद से मुझे भारी वित्तीय झटका लगा है.
उन्होंने पूछा कि क्या घाटी में रह रहे हिंदू विशेष ध्यान पाने के हकदार नहीं है. हम गोलियों के बीच जीवित रह रहे हैं. क्या हम कश्मीर में वापस रहने की कीमत चुका रहे हैं.
लंबे समय से कश्मीर में रह रहे पंडित राजनीतिक समर्थन के लिए संघर्ष करते रहे हैं. बीजेपी के नेता और पूर्व सांसद मनोज सिन्हा की नियुक्ति से कश्मीरी पंडितों में आस जगी है, लेकिन वास्तविक कार्रवाई का अभी भी इंतजार है.