किश्तवाड़ में हुई सांप्रदायिक हिंसा को पेश किए जाने के तरीके से नाराज जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने गुरुवार को कहा कि राज्य की जनता के साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाता है, जिसके कारण उन्हें खुद को अलग महसूस करना पड़ता है.
उमर ने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में कहा, ‘मुझसे अकसर पूछा जाता है कि जम्मू-कश्मीर के लोग बाकी देश की जनता से अलग क्यों महसूस करते हैं. हम अलग महसूस नहीं करते बल्कि हमारे प्रति अलग तरह का रवैया अपनाकर हमसे ऐसा कराया जाता है. आज मैं इस बारे में स्पष्टीकरण दूंगा.’
उन्होंने कहा कि जब भी उनसे यह सवाल पूछा जाता है तो वह निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाते लेकिन किश्तवाड़ के सांप्रदायिक संघर्षों को जिस तरह से बाकी देश के सामने पेश किया गया, उससे जवाब मिल गया. किश्तवाड़ में हुई हिंसा में तीन लोग मारे गए. इस घटना के चलते विपक्ष ने राज्य सरकार पर तीखा हमला बोला और प्रदेश के गृह राज्यमंत्री सज्जाद किचलू को इस्तीफा देना पड़ा.
उमर ने पिछले साल और इस साल मार्च तक देश में सांप्रदायिक दंगों में मौत के मामलों पर केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला दिया जिनमें उत्तर प्रदेश में 34 लोग मारे गए और महाराष्ट्र में 2012 में 13 लोग दंगों का शिकार हुए लोग शामिल हैं. उन्होंने जाहिर तौर पर बीजेपी नेता अरुण जेटली और सुषमा स्वराज का जिक्र करते हुए कहा, ‘क्या इन घटनाओं पर संसद में चर्चा हुई? इन स्थानों पर नेताओं के जाने की बात तो छोड़ दें, लेकिन क्या उन्होंने ट्विटर पर भी इसका जिक्र किया.’
उमर ने कहा, ‘किश्तवाड़ में जो हुआ उसकी निंदा होनी चाहिए. ऐसा इसलिए भी क्योंकि यह मुख्यमंत्री के तौर पर मेरे कार्यकाल में हुआ. हमने न्यायिक आयोग की घोषणा की है और उसके निष्कर्षों को सार्वजनिक किया जाएगा.’ एक तरह से बीजेरी और समान विचारों वाले दलों का संदर्भ देते हुए उमर ने किश्तवाड़ दंगों को लेकर हुए शोर-शराबे पर सवाल खड़ा किया.
उन्होंने कहा, ‘क्या पहली बार देश में ऐसा हुआ है? क्या केवल किश्तवाड़ ऐसी जगह है जहां यह हुआ?’ मुख्यमंत्री के मुताबिक वह किश्तवाड़ के दंगों की तुलना अन्य छोटी घटनाओं से नहीं करेंगे और अन्य राज्यों में हुई गल्तियों की ओर इशारा करके इसे उचित नहीं ठहराएंगे.
अप्रत्यक्ष रूप से मीडिया पर निशाना साधते हुए उमर ने पूछा कि देश के अन्य स्थानों पर हुए सांप्रदायिक दंगों के बारे में समाचार चैनलों के कार्यक्रमों और अखबारों में चर्चा क्यों नहीं होती. उन्होंने कहा, ‘इन घटनाओं पर कितने टीवी कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए और कितने स्तंभ लिखे गये?’