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जब नफरत पर भारी पड़ी दोस्ती... पुंछ में मदरसा छात्रों को बचाने वाले 'हिंदू दोस्त' ने पेश की मिसाल

राजनीति, धर्म और विचारधारा से परे प्रदीप शर्मा स्थानीय मदरसा जामिया ज़िया उल उलूम के घायल बच्चों की मदद के लिए आगे आए. उनके कार्यों ने सभी समुदाय के नागरिकों को गहराई से प्रभावित किया.

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नफरत पर भाड़ी पर दोस्ती!
नफरत पर भाड़ी पर दोस्ती!

जम्मू-कश्मीर में भारत-पाकिस्तान बॉर्डर के क़रीब स्थित शहर पुंछ में एक हफ़्ते पहले हुई भीषण गोलाबारी के बाद, जो बात सबसे ज़्यादा उभर कर सामने आई, वह सिर्फ़ तबाही या नुकसान नहीं था, बल्कि खंडहरों के बीच से निकली उभरी मानवता भी थी. नागरिकों पर मुसीबत आ पड़ने के बाद सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वालों में प्रदीप शर्मा (51) थे, जो बीजेपी के पूर्व विधायक हैं.

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राजनीति, धर्म और विचारधारा से परे प्रदीप शर्मा स्थानीय मदरसा जामिया ज़िया उल उलूम के घायल बच्चों की मदद के लिए आगे आए. उनके कार्यों ने सभी समुदाय के नागरिकों को गहराई से प्रभावित किया.

पाकिस्तान ने मदरसे पर किया था अटैक

सोशल मीडिया पर उनसे से जुड़ा एक वीडियो भी वायरल हो रहा है, जिसमें प्रदीप शर्मा को देखा जा सकता है कि वे घायल छात्रों को अपनी बाहों में उठाकर सेफ जगह पर ले जा रहे हैं. ये तस्वीरें सुर्खियों से परे थीं. उन्होंने साहस और करुणा की कहानी बयां की. पुंछ में कई लोग उन्हें खुदा का फरिश्ता कहने लगे.

1,200 से ज़्यादा छात्रों वाले मदरसे पर मोर्टार शेल से हमला हुआ, इसमें एक मौलवी की जान चली गई और तीन बच्चे घायल हो गए. दहशत और चीख-पुकार के बीच, मदरसे के हेड सैय्यद हबीब ने सहज रूप से मदद की, किसी मौलवी या राजनेता से नहीं, बल्कि एक ऐसे दोस्त से जिस पर वे 15 साल की उम्र से भरोसा करते थे.

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सदियों पुरानी है दोस्ती...

सैयद और प्रदीप की पहली मुलाकात पुंछ के सरकारी स्कूल में हुई थी, जब वे क्लास 9 में थे. दशकों बाद, बहुत अलग-अलग जिंदगी गुजारने के बावजूद (एक धार्मिक नेतृत्व में, दूसरा राजनीति में) उनकी दोस्ती और गहरी होती गई. पिछले कुछ साल में, उन्होंने कई संकटों के दौरान हाथ मिलाया, अपने समुदाय की मदद के लिए धार्मिक और सामाजिक सीमाओं को पार किया. इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ. सैय्यद ने एक कॉल किया और प्रदीप दौड़ते हुए आए. 

प्रदीप ने बताते हैं कि उन्होंने मौलवी को मेरी बाहों में ही मार दिया. मैंने उनके गाल पर कपड़ा रखकर राहत देने की कोशिश की लेकिन बचाया नहीं जा सका. इसके बाद मैं तीन बच्चों को बचाने के लिए दौड़ा. अस्पताल खचाखच भरा हुआ था, इसलिए मैं तब तक बच्चों को पकड़े रहा, जब तक कि स्ट्रेचर खाली नहीं हो गया. 

उन्होंने बताया, "किसी ने मुझसे कहा कि अपनी जान बचाओ और मैंने उनसे कहा कि शेल्स मेरे लिए नहीं बने हैं. कम से कम आज तो नहीं. उसने कहा कि उसके साथ हिंदू, मुस्लिम, सिखों का ग्रुप था, जो राहत देने के लिए इकट्ठा हुआ था. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. हमें एक-दूसरे के लिए खड़ा होना है."

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पाकिस्तान के हमले में सिर्फ मदरसे को नहीं नष्ट किया गया, इस दौरान एक गुरुद्वारा, ईसाई स्कूल और हिंदू प्रार्थना कक्ष को भी नुकसान पहुंचाया गया. ऐसा लग रहा था कि हमले समुदायों को बांटने के लिए ही किए गए थे लेकिन पुंछ ने एकजुट होकर जवाब दिया.

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'मैंने प्रदीप भाई को फोन किया...'

प्रदीप शर्मा ने कहा कि उस पल कुछ और मायने नहीं रखता था, सिर्फ उन बच्चों की जिंदगी मायने रखती थी. सैयद हबीब ने बताया, "मैंने प्रदीप भाई को फ़ोन किया, मुझे पता था कि वे आएंगे और वे आए. उन्होंने घायलों को ले लिया और मैंने हज़ार से ज़्यादा बच्चों को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया."

कोविड के वक्त में भी दोनों मदद के लिए आए थे लेकिन इस बार संकट ने पुंछ को बहुत गहराई से प्रभावित किया है. सैय्यद हबीब कहते हैं, "यह हमारा देश है, हमें गर्व है कि हम एकजुट हैं. हमारे देश को भी ऐसा ही होना चाहिए." 
 

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