गुजरात और हिमाचल प्रदेश के साथ ही जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. गुजरात विधान सभा का कार्यकाल दिसंबर में और हिमाचल विधानसभा का कार्यकाल नवंबर में खत्म हो रहा है. ऐसे में मुमकिन है कि निर्वाचन आयोग जम्मू-कश्मीर में भी इन दोनों राज्यों के साथ चुनाव करा दे.
निर्वाचन आयोग के सूत्रों के मुताबिक, नवंबर मध्य से पहले चुनाव कराए जा सकते हैं क्योंकि तब जम्मू कश्मीर में मौसम उतना ठंडा नहीं होगा. बाद में बर्फबारी होने से कई इलाकों में मतदान पर असर पड़ता है. लिहाजा आयोग तीनों राज्यों के चुनाव एक ही साथ कराने पर गंभीरता से विचार कर रहा है. संभावनाओं पर शुरुआती रिपोर्ट तलब की गई है.
केंद्र सरकार ने भी साफ संकेत दे दिए हैं कि नई परिस्थिति और परिसीमन से जम्मू कश्मीर विधान सभा का चुनाव इसी साल के अंत तक हो जाएगा. परिसीमन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. अब प्रदेश की जनता से किए गए वादे के मुताबिक, जल्द से जल्द विधान सभा चुनाव भी करवाने हैं.
चुनाव में नहीं होगा कोई भेदभाव
इस बार जम्मू कश्मीर विधान सभा लद्दाख के बिना होगी. सीटों में इजाफा होगा. जम्मू कश्मीर संभाग में आबादी और क्षेत्रफल के अनुपात में भेदभाव नहीं होगा. दशकों और पीढ़ियों से जम्मू कश्मीर में रह रहे अनुसूचित जाति के लोगों को 'प्रवासी' कह कर मतदान से वंचित किए जाने वाले कश्मीरियों को भी इस बार से मतदान का अधिकार होगा. अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण वाली सीटें होंगी.
लद्दाख को पूर्ण राज्य बनाने की मांग
हालांकि लद्दाख में शेड्यूल छह के तहत पूर्ण राज्य की मांग को लेकर माहौल गरमाता दिख रहा है. सरकार ने ऐलान किया है कि चीनी सीमावर्ती लद्दाख का दर्जा शेड्यूल छह जैसा ही होगा. बस जैसा शब्द से आपत्ति जताते हुए कुछ जन प्रतिनिधियों और स्थानीय नेताओं ने कहा है कि जैसा नहीं बल्कि लद्दाख की जनता के शेड्यूल छह के प्रावधानों के तहत पूर्ण राज्य से कम कुछ भी मंजूर नहीं है क्योंकि जब सिक्किम को राज्य बनाया था तो वहां की आबादी महज ढाई लाख थी. लद्दाख में तो फिर भी तीन लाख से ज्यादा आबादी बसती है.