मोदी सरकार कश्मीर मुद्दे पर अपना रुख बदलती नजर आ रही है. अभी तक जहां उसने कश्मीर पर सख्त रुख अपना रखा तो वहीं अब अलगाववादियों से बातचीत में एक्सपर्ट दिनेश्वर शर्मा को बातचीत के जरिए हल निकालने की कमान सौंपी गई है. 2014 में सत्तासीन होने के बाद मोदी सरकार ने पहली बार कश्मीर मुद्दे पर ऐसा नरम रुख अख्तियार किया है. बता दें कि कश्मीर मुद्दे पर इससे पहले 2010 में वार्ताकार नियुक्त किए गए थे. केंद्र सात साल बाद कश्मीर में सभी पक्षों से बातचीत करने की तैयारी कर चुकी है.
हिंसा के बाद शुरू हुई थी बातचीत
गौरतलब है कि सात साल पहले भी ऐसी कोशिश हुई थी. दरअसल, 2010 में घाटी में हिंसा भड़की थी. इसके बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए-2 सरकार ने जर्नलिस्ट दिलीप पड़गांवकर, पूर्व इन्फॉर्मेशन कमिश्नर एमएम अंसारी और एकेडेमिशियन राधा कुमार को कश्मीर के लिए वार्ताकार बनाया था.
तीनों ने 22 जिलों में 600 डेलिगेशंस से मुलाकात की. तीन बार में राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस की. 2011 में इस कमेटी ने यूपीए-2 सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी.
2010 में गठित कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कश्मीर में आर्मी की विजिबिलिटी कम होनी चाहिए. ह्यूमन राइट्स वॉयलेशंस के मुद्दे पर तुरंत ध्यान देना चाहिए. आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट का रिव्यू करना चाहिए और डिस्टर्ब एरियाज एक्ट को हटा देना चाहिए.
2010 से पहले कश्मीर में 2004 और 2007 में भी डायलॉग प्रोसेस हुई. हर बार ये दावे किए गए कि आतंकियों की कमर टूट चुकी है और बातचीत का यह सही माहौल है. लेकिन कुछ महीनों या एक साल बाद घाटी में फिर आतंकवाद बढ़ गया.