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वैष्णो देवी यात्रा: क्या हैं ताजा हालात? तीर्थ यात्रियों के कम होने से स्थानीय रोजगार-धंधे बदहाल

मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के अन्य मंदिरों और धार्मिक स्थलों के बंद होने के साथ ही वैष्णोदेवी यात्रा को भी रोक दिया गया. जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और तीर्थ पर्यटन का बहुत बड़ा योगदान है.

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घोड़े-टट्टू वालों को कमाई पर असर
घोड़े-टट्टू वालों को कमाई पर असर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोरोना वायरस के कारण कई क्षेत्रों पर असर
  • घोड़े-टट्टू वालों की कमाई पर पड़ा असर
  • तीर्थयात्रियों की कमी से रोजगार-धंधे बदहाल

कोरोना वायरस ने आम आदमी की जिंदगी को तो प्रभावित किया ही, देवी-देवताओं के तीर्थ स्थलों पर पहले हर वक्त लगी रहने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ पर भी ब्रेक लगा दिए हैं. इससे देश के बड़े तीर्थस्थल या मंदिर भी अछूते नहीं रहे. जम्मू और कश्मीर में त्रिकूटा की पहाड़ियों पर स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर के लिए भी यही बात की जा सकती है. यहां हर साल बड़ी संख्या में आने वाले श्रद्धालओं की वजह से ही यहां स्थानीय लोगों का रोजगार चलता है. इसमें जम्मू और कटरा के होटल-व्यापारियों के अलावा बड़ी संख्या में पिट्ठू, खच्चर वालों, पालकी वालों, टैक्सी, ऑटो ड्राइवर्स आदि की गुजर-बसर भी इस तीर्थ पर्यटन पर निर्भर रहती है. 

मार्च में लॉकडाउन शुरू होने के बाद देश के अन्य मंदिरों और धार्मिक स्थलों के बंद होने के साथ ही वैष्णोदेवी यात्रा को भी रोक दिया गया. जम्मू और कश्मीर की अर्थव्यवस्था में पर्यटन और तीर्थ पर्यटन का बहुत योगदान रहा है. कोरोना काल में इस पर फुल स्टाप लग जाने से इस केंद्र शासित प्रदेश की वित्तीय रीढ़ को नुकसान पहुंचा.  

कोरोना महामारी की दस्तक से पहले हर साल लाखों की संख्या में श्रद्धालु माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आते थे. 18 मार्च को यात्रा रूकने के बाद 5 महीने तक ये निलंबित रही. यह यात्रा 16 अगस्त को सीमित संख्या में यात्रियों को अनुमति देते हुए कोविड-19 के कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल के साथ फिर से शुरू हुई. शुरू में, केवल 2000 तीर्थयात्रियों को प्रति दिन यात्रा करने की अनुमति दी गई थी, बाद में इसे बढ़ाकर पहले 5000, फिर नवरात्रि उत्सव में 7000 कर दिया गया था. 

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पहली नवंबर से, हर दिन श्रद्धालुओं की सीमा 15000 तक बढ़ा दी गई. हालांकि, यात्रा को फिर से शुरू करने से यात्रा के बेस कैम्प वाले कस्बे कटरा में कुछ आर्थिक गतिविधियां शुरू तो हुई हैं, लेकिन स्थानीय दुकानदारों और अन्य का कहना है कि स्थिति पूरी तरह सामान्य होने में अभी लंबा वक्त लग सकता है. 

कटरा शहर में ड्राई फ्रूट और प्रसाद की दुकान चलाने वाले 45 वर्षीय कपिल गुप्ता ने आजतक/इंडिया टुडे को बताया, "यात्रा फिर से शुरू बताई जा सकती है, लेकिन जम्मू और कश्मीर के बाहर से आने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या नगण्य है. एक समय था जब हम अच्छा व्यवसाय करते थे. हमारी कमाई अच्छी थी. लेकिन चीजें अब वैसी नहीं हैं. हमारी आय का स्रोत पूरी तरह से अन्य राज्यों से आने वाले तीर्थयात्रियों पर निर्भर है.लेकिन पिछले कई महीनों से हमारी कमाई शून्य है. हम अपनी पहले की बचत के जरिए घर का गुजारा चला रहे हैं. लेकिन यह इस तरह हमेशा नहीं चल सकता है. हम इस तरह से कब तक गाड़ी खींच सकते हैं?” 

बता दे कि सामान्य दिनों में वैष्णोदेवी की यात्रा पर आने वाले यात्री वापसी में अखरोट जैसे प्रसाद कटरा और जम्मू से ही खरीदते थे, जिसे वो घर जाकर करीबियों में बांटते थे. कटरा के ही एक और ड्राईफ्रूट दुकानदार गौतम ने कहा, "मार्च में हमारा स्टॉक भरा हुआ था और हम अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे थे. लेकिन कोरोना वायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से हमारा कारोबार ठप हो गया. हम चाहते हैं कि सरकार कारोबारी समुदाय को कुछ मदद प्रदान करे.” कपिल गुप्ता और गौतम जैसी ही कहानी सैकड़ों और स्थानीय लोगों के पास भी सुनाने के लिए है. कटरा में ही गारमेंट्स की दुकान चलाने वाले रविंदर सिंह निराश हैं क्योंकि यात्रा दोबारा शुरू होने के बाद से भी उनका कारोबार ठप ही है. 

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दुकानदार

'तीर्थयात्री बहुत कम हो गए'

सिंह कहते हैं, "नवरात्रि के दौरान, हमने कटरा में यात्रियों को आते देखा तो हमें उम्मीद बंधी कि कारोबार पटरी पर वापस आ जाएगा. लेकिन नवरात्रि के नौ दिनों के बाद फिर तीर्थयात्री बहुत कम हो गए हैं. हम कुछ भी कमाने में सक्षम नहीं हैं. इस स्थिति में गुजारा बहुत मुश्किल हो गया है. मैंने इस दुकान को किराए पर ले लिया है. मैं दुकान मालिक को 25000 रुपये का किराया देता हूं. जिस तरह के हालात रहे मैं मालिक को किराया देने में असमर्थ था. मुझ पर किराए के दो लाख रुपये बकाया हैं." 

इस बीच, कटरा में बेस कैंप से तीर्थयात्रियों को भवन तक घोड़ों, टट्टू (पोनी), पालकी पर ले जाने वाले लोगों और यात्रियों का सामान उठाने वाले पिट्ठुओं को भी तीर्थयात्रियों के न आने से आजीविका का संकट हो गया.  

एक पोनी वाले धर्मचंद (उम्र 29 साल) के मुताबिक उन्हें बहुत खराब दिन देखने पड़े, अब भी कोई अधिक सुधार नहीं हुआ है. धर्मचंद ने कहा, "पिछले कई महीनों से जीवन बहुत कठिन है. हमारे लिए अपने खच्चरों और घोड़ों को बचाना और उन्हें खिलाना बहुत कठिन था. उचित आहार नहीं मिलने के कारण, हमारे घोड़े और खच्चर शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं. नवरात्रि पर्व के दौरान, हमने सैकड़ों यत्रियों को आते देखा, हमने कुछ पैसे भी कमाए, लेकिन फिर से स्थिति बहुत मुश्किल हो गई है. कोरोना महामारी के प्रकोप से पहले, हम दिन 1500-2000 रुपये कमा लेते थे, लेकिन अब कमाई घटकर 200-300 रुपये ही रह गई है.

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दुकानदार

धर्म चंद की तरह, एक और पोनी वाले बोध राज ने अपनी व्यथा में कहा, "आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि हम पिछले कई महीनों से क्या कर रहे हैं. दो छोरों को पूरा करना बहुत मुश्किल है. हमारे पास कोई काम नहीं था. यात्रा अब फिर से शुरू हो गई है, लेकिन चीजें बदल गई हैं. अब भी ज्यादा तीर्थयात्री नहीं आ रहे हैं. मुश्किल से केवल 200-250 रुपये  रोज कमा पा रहा हूं. मैं माता वैष्णो देवी से प्रार्थना करता हूं कि कोरोनो वायरस का संकट दुनिया से खत्म करें और स्थिति पहले जैसी सामान्य हो.”  

यहां यह बताना जरूरी है कि 16 अगस्त को वैष्णो देवी यात्रा के फिर से शुरू होने के बाद भी, पोनी सेवाएं निलंबित रहीं. नवरात्रि से दो दिन पहले 15 अक्टूबर को पोनी और अन्य सेवाओं को बहाल किया गया. 

तीर्थस्थल के संचालन और प्रबंधन की जिम्मेदारी श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (SMVDSB)  के पास है. बोर्ड के सीईओ रमेश कुमार ने आज तक/इंडिया टुडे ने कहा, पोनी वाले श्राइन बोर्ड के कर्मचारी नहीं हैं, लेकिन फिर भी बोर्ड ने उन्हें राहत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, हम उनकी समस्याओं को समझते हैं. इसीलिए, लॉकडाउन के दौरान, हमने उन्हें राशन पहुंचाया और उनके घोड़ों-टट्टुओं के लिए चारे की भी व्यवस्था की.” 

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