केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर है, जो सियासी तौर पर काफी अहम माना जा रहा. अमित शाह ने मंगलवार को वैष्णो देवी मंदिर में पूजा-अर्चना की. अमित शाह ने राज्य में पहाड़ी समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा किया है. ये घोषणा आगामी चुनाव में बीजेपी के लिए मास्टर स्ट्रोक साबित हो सकता है. हालांकि, जम्मू-कश्मीर के गुर्जर और बकरवाल समाज के लोग पहाड़ी समुदाय को एसटी में शामिल करने का विरोध कर रहे है. ऐसे में सवाल उठता है कि गुर्जर-बकरवाल क्यों विरोध में है?
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि जस्टिस शर्मा ने पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजातियों का दर्जा देने की सिफारिश की है. पीएम मोदी इस सिफारिश को लागू करने जा रहे हैं.
गृह मंत्री ने कहा कि इससे गुर्जर और बकरवाल को कोई हानि नहीं होगा. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर में अनुसूचित जनजाति समुदाय से सीएम हो सकता है.
जम्मू-कश्मीर में पहाड़ी समुदाय के लोग काफी दिनों से मांग कर रहे हैं कि बारामूला और अनंतनाग जिलों के अलावा पीर पंजाल क्षेत्र के दुर्गम और पिछड़े इलाकों में गुर्जर और बकरवाल की तरह उन्हें भी अनुसूजित जनजाति का दर्जा दिया जाए. हालांकि, गुर्जर और बकरवाल के लोग पहाड़ी समुदाय को एसटी टैग मिलने का विरोध करते हैं. इसका आधार यह है कि पहाड़ी समुदाय कोई एक जातीय समूह नहीं हैं, बल्कि विभिन्न धार्मिक और भाषाई समुदायों का समूह हैं.
बता दें कि सोमवार को देर जम्मू पहुंचने के बाद अमित शाह ने राजभवन में पांच समुदाय के लोगों से मुलाकात की थी. शाह से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में गुर्जर, बकरवाल, पहाड़ी, सिख और राजपूत समुदाय के लोग शामिल थे. सोमवार को ही गुर्जरों और बकरवाल समुदाय ने कश्मीर के शोपियां में प्रदर्शन किया. गुर्जर-बकरवाल समन्वय समिति का आरोप है कि पहाड़ी कम्युनिटी को अगर एसटी में शामिल किया जाता है तो यह गुर्जर और बकरवाल समुदायों की उचित आशाओं और आकांक्षाओं के खिलाफ होगा.
जम्मू-कश्मीर के राजौरी, हंदवाड़ा, पुंछ और बारामूला सहित कई इलाके में पहाड़ी समुदाय की बड़ी आबादी है. पहाड़ी समुदाय के लोग जम्मू कश्मीर की एक दर्जन से ज्याद विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखते हैं.
नेशनल कांफ्रेंस के विधायक रह चुके कफील उर रहमान पहाड़ी समुदाय से आते हैं. वो कहते हैं कि समुदाय पहले आता है जबकि राजनीति बाद में. शाह की रैली में पहाड़ी समुदाय को अपनी सामूहिक ताकत दिखानी चाहिए. अगर हम इस बार एसटी का दर्जा हासिल नहीं करते हैं, तो फिर कभी नहीं मिलेगा. ऐसे ही मुश्ताक बुखारी और मुजफ्फरबेग जैसे नेता भी पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने के मुद्दे पर बीजेपी का खुलकर समर्थन कर रहे हैं.
गुर्जर-बकरवाल मुस्लिम समुदाय से हैं जबकि पहाड़ी समुदाय में हिंदू-मुस्लिम दोनों ही है. सीमावर्ती जिलों में 40 फीसदी आबादी पहाड़ी समुदाय की है. मुजफ्फर बेग जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री रह चुके हैं और एक पहाड़ी नेता हैं. वहीं, अप्रैल 1991 से जम्मू-कश्मीर में गुर्जर और बकरवाल समुदाय को एसटी का दर्जा मिला हुआ है. सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलता है.
पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देने की संभावना ने राज्य में विवाद खड़ा कर दिया है. इस संभावना ने गुर्जरों, बकरवाल आदिवासियों और पहाड़ियों के बीच दरार पड़ती दिख रही. गुर्जर और बकरवाल को पहले से ही एसटी का दर्जा प्राप्त है. अब इन आदिवासियों द्वारा पहाड़ियों को एसटी के रूप में मान्यता देने के मुद्दे पर नाराजगी जताई जा रही है. पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने आरोप लगाया है कि बीजेपी आरक्षण कार्ड का इस्तेमाल कर समुदायों के बीच दरार पैदा कर रही है. सबसे पहले तो उन्होंने हिंदू को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा किया और अब गुर्जर-पहाड़ी को एक दूसरे के खिलाफ लड़ाने की साजिश है.
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में अगर पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा दिया जाता है, तो यह भारत में आरक्षण अर्जित करने वाले भाषाई समूह का पहला उदाहरण होगा. ऐसा होने के लिए केंद्र सरकार को संसद में आरक्षण अधिनियम में संशोधन करने की जरूरत पड़ेगी. पहाड़ी नेताओं को उम्मीद है कि एक बार घोषणा हो जाने के बाद मोदी सरकार संसद के अगले सत्र में एक विधेयक पारित कर उन्हें लाभ दे सकती.
वहीं, जम्मू-कश्मीर में पहले से अनुसूचित जनजाति में शामिल गुर्जर समुदाय को डर सता रहा है कि पाहड़ी समुदाय के शामिल होने से उन्हें मिलने वाला लाभ में बंटवारा हो जाएगा. ऐसे में उन्हें मिलने वाला लाभ नहीं मिल सकेगा. हाल ही में मोदी सरकार ने गुर्जर समुददाय के गुलाम अली खटाना को राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है, जिसे गुर्जर समुदाय को अपने साथ साधकर रखने के रूप में देखा जा रहा.
2011 की जनगणना के अनुसार जम्मू-कश्मीर में करीब 15 लाख की आबादी गुज्जर और बकरवाल की है, जो डोगराओं के बाद जम्मू-कश्मीर में तीसरा सबसे बड़ा जातीय समूह है. गुर्जर नेताओं का कहना है कि पहाड़ी लोग जम्मू-कश्मीर की स्थापना से सही और उचित स्थानों पर है. ऐसे में वो गुर्जर और बकरवाल को मिलने वाले आरक्षण के लाभ को भी उठाना चाहते हैं.
वहीं, दूसरी तरफ राज्य में पीबी गजेंद्रगडकर आयोग से लेकर आनंद आयोग तक सभी ने पहाड़ी समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश कर चुके हैं. गुर्जर और बकरवाल के विरोध के चलते 2002 में अटल बिहारी बाजपेयी सरकार ने पहाड़ी लोगों की एसटी दर्जे की मांग को खारिज कर दिया था. इसके बाद से पहाड़ी समुदाय अपनी मांग को लेकर खामोश हो गए थे, पर राज्य से धारा 370 हटने और परिसीमन के बाद दोबारा से मांग उठी है.
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन प्रक्रिया के बाद 90 सदस्यीय विधानसभा का गठन हुआ है. आदिवासियों के लिए 9 सीटें आरक्षित होने के कारण पहाड़ी समुदाय एसटी दर्जा देने की मांग अब फिर से शुरू हो गई है. पहाड़ी समुदाय को लगता है कि अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिलता है तो आरक्षित सीटों से वो चुनावी मैदान में किस्मत आजमा सकते हैं.
परिसीमन के बाद इस बीजेपी के लिए सियासी लाभ के रूप में देखा जाता है. इसके लिए उसे गुर्जर, बकरवाल और पहाड़ी सहित हिंदू और मुस्लिम दोनों के समर्थन की जरूरत है. पहाड़ी समुदाय के जरिए बीजेपी पीर पंजाल क्षेत्र में प्रवेश करने का मौका देख रही. पहाड़ियों को एसटी का दर्जा देना बीजेपी द्वारा जम्मू-कश्मीर में अधिकतम सीटें जीतने के लिए एक बड़े राजनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन गुर्जर और बकरवाल जिस तरह से विरोध में है. ऐसे में देखना है कि मोदी सरकार क्या कदम उठाती है?