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भुखमरी-कुपोषण पर कटघरे में केंद्र, सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- चुनाव के वक्त ही इनकी याद क्यों आती है?

चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सरकार से पूछा कि क्या भुखमरी से हुई मौतों की कोई रिपोर्ट तैयार की गई है? कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि अपने अधिकारियों से कहिए कि 2010 से 2013 के बीच की रिपोर्ट के अलावा भी आंकड़े दें.

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सांकेतिक तस्वीर.
सांकेतिक तस्वीर.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोर्ट ने कहा- हमारे पास कुपोषण-भूख से होने वाली मौतों का आंकड़ा नहीं
  • कोर्ट ने पूछा- लोगों को भुखमरी से बचाने की व्यवस्था क्यों नहीं हो पाई?

भुखमरी और कुपोषण के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा किया है. चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा कि मजबूर-लाचार और भूखे लोगों के लिए अब तक क्षेत्रीय उपलब्धता वाले पौष्टिक भोजन की व्यवस्था क्यों नहीं हो पाई. कोई सामूहिक और सामाजिक रसोई योजना क्यों शुरू नहीं की जा सकी? क्या सिर्फ चुनाव के वक्त ही इसकी याद आती है? हमारे पास अब तक कुपोषण और भूख से होने वाली मौतों का पक्का आंकड़ा भी नहीं है.

चीफ जस्टिस एनवी रमणा, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सरकार से पूछा कि क्या भुखमरी से हुई मौतों की कोई रिपोर्ट तैयार की गई है? कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि अपने अधिकारियों से कहिए कि 2010 से 2013 के बीच की रिपोर्ट के अलावा भी आंकड़े दें. इस पर अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि राज्यों ने तो हलफनामे दिए ही हैं. हम उसी आधार पर योजनाएं लागू कर रहे हैं.

अटॉर्नी जनरल को टोकते हुए सीजेआई ने कहा कि राज्य तो आपसे पैसे मांग रहे हैं. वो कह रहे हैं कि आप पैसे दो तो स्कीम लागू करें. कुछ राज्य अपने स्तर पर या एनजीओ के साथ मिलकर छोटे स्तर सामाजिक रसोई योजना चला रहे हैं. वो भी योजना को विस्तार देने के लिए आपसे धन चाहते हैं. कुछ तो उदासीन ही हैं. वो कहते हैं कि केंद्र की कोई योजना और उसे चलाने का धन मिल जाए तो वो उसे शुरू कर देंगे.

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अटॉर्नी जनरल ने कहा लेकिन हम अब तक ऐसी ही 131 योजनाएं लागू कर चुके हैं. सीजेआई ने बीच में टोकते हुए कहा कि हमने कब कहा कि स्कीम नहीं है, लेकिन पूरे देश के लिए कोई एकसमान आदर्श योजना नहीं है. क्योंकि देश के हर क्षेत्र का खान-पान और खाद्य जरूरतें अलग-अलग हैं. आपको उसे ध्यान में रखते हुए योजनाएं बनानी चाहिए.

वितरण प्रणाली का हिस्सा सामाजिक रसोई में लगे

अटॉर्नी जनरल ने कहा, हम उन 131 योजनाओं पर असरदार अमल के लिए राज्यों को उनकी जरूरत के मुताबिक ही पैसे भी दे रहे हैं. हम उन योजनाओं के पैसे कहीं और नहीं लगा सकते. इस पर सीजेआई ने कहा कि हमने सभी राज्यों के हलफनामे पढ़े हैं. कुछ राज्यों ने कहा है कि आप जन वितरण प्रणाली के जरिए दिए जाने वाले खाद्यान्न का कुछ निश्चित हिस्सा सामाजिक रसोई के लिए पका पकाया खाना बंटवाने की नीति के लिए सुनिश्चित कर सकते हैं. अब जैसे उत्तर प्रदेश ने 2 फीसदी खाद्यान्न इसके लिए सुनिश्चित करने का सुझाव दिया है.

बना बनाया खाना बंटवाने की जिम्मेदारी एनजीओ को दी जा सकती है जिस पर सामाजिक जिम्मेदार लोगों की निगरानी रहे. एजी वेणु गोपाल ने फिर कहा- लेकिन खाना बनवाने और बंटवाने की जिम्मेदारी पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में है. संविधान उनको ही ये अधिकार देता है. इस पर सीजेआई ने फिर कहा कि इसे उल्टा मत लीजिए. इस संकटकाल में आपको ही कुछ करना है. आप भी इसके अंग हैं. अब आप इस्कॉन यानी हरे रामा हरे कृष्णा वालों के अक्षय पात्र मिशन को ही देखिए. ऐसे कई धर्मार्थ समूह हैं, जो सफलता पूर्वक ऐसी योजनाएं चला रहे हैं.

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कोर्ट ने पूछा- 2015 के बाद भुखमरी का डाटा क्यों नहीं दिया

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ढांचागत सुविधाओं के साथ कॉर्पोरेट के सामाजिक दायित्व फंड की मदद से ये संभव हो सकता है. हम तो 131 योजनाओं पर पहले ही धन खर्च कर रहे हैं. इस पर जस्टिस हिमा कोहली ने टिप्पणी की कि तो फिर केंद्र सरकार 2015 के बाद भुखमरी का डाटा क्यों नहीं दे पा रही. आपको भरोसा है कि तब से अब तक भूख और कुपोषण से कोई मौत नहीं हुई? सिर्फ एक ही मौत हुई, जो अखबारों में छप गई थी? और कोई नहीं!

अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राज्य ही इसका ब्योरा रखते हैं. हमारे पास वही आता है. याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि भुखमरी से मौत की पुष्टि तो पोस्टमार्टम से ही होती है. वो कराया नहीं जाता. जबकि राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि देश के परिवारों में कुपोषण बढ़ रहा है. 2019-20 की रिपोर्ट भी इसकी ही तस्दीक करती है.

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