केंद्र सरकार ने राज्यसभा में स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट के जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने को लेकर फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एक सवाल के लिखित जवाब में राज्यसभा को बताया कि सरकार हाइकोर्ट में न्यायाधीशों के खाली पदों को जल्दी भरने की हर कोशिश करती है, लेकिन सेवानिवृत्ति, इस्तीफे और पदोन्नति की वजह से हाई कोर्ट में पद खाली रह जाते हैं.
कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है. उनसे पूछा गया था कि क्या सरकार न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की वर्तमान उम्र 62 से बढ़ाकर 65 साल करने पर विचार कर रही है. सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की उम्र 65 वर्ष है. कानून मंत्री ने कहा कि जजों की नियुक्ति एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, इसमें कई स्तरों पर विमर्श होता है और अनुमति लेनी होती है. वर्तमान में देश के 25 हाई कोर्ट में जजों के कुल 1080 पद हैं.
बता दें कि देश की अदालतों पर मुकदमों के लगातार बढ़ते बोझ से निपटने को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई ने 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी भी लिखी थी. इस चिट्ठी में सीजेआई गोगोई ने बढ़ते लंबित मुकदमों का जिक्र करते हुए लिखा था कि अदालतों में कई सालों से हजारों मामले लंबित पड़े हैं, जिनके निपटारे के लिए जजों की संख्या बढ़नी चाहिए. साथ ही चीफ जस्टिस गोगोई ने हाई कोर्ट के जजों की रिटायरमेंट आयु सीमा को बढ़ाने का सुझाव दिया. अभी हाई कोर्ट में जजों की सेवानिवृत्ति की उम्र 62 साल है. सीजेआई गोगोई ने इसे 65 साल करने को कहा था.
सीजेआई गोगोई का सुझाव था कि लंबित मामलों के निपटारे के लिए सरकार सेवानिवृत्त जजों को फिक्स कार्यकाल के लिए नियुक्त करने की व्यवस्था लागू कर सकती है. सुप्रीम कोर्ट के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए सीजेआई गोगोई ने लिखा था कि लंबित मुकदमों का ये हाल है कि यहां 26 मुकदमे 25 साल, 100 से ज्यादा मुकदमे 20 साल, करीब 600 मुकदमे 15 साल और 4980 मुकदमे पिछले दस साल से चल ही रहे हैं.