फंक्शन फॉरेंसिंक लैब, फरैंसिंक वर्क स्टेशन, डेटा एक्टिवेशन डिवाइस से अब जिलों की साइबर सेल्स लैस होंगी और राजधानी के साइबर अपराध पर अंकुश लगाएंगी. मोबाइल फोन, लैपटाप का इस्तेमाल अपराधी सिर्फ साइबर जैसे हाईटेक अपराध अंजाम देने के लिए नही करते बल्कि रेप, मर्डर डकैती की कई वारदात में इनका धड़ल्ले से इस्तेमाल बढ़ा है. शायद ही कोई ऐसी वरदात हो जिसमें डिजिटल डिवाइसेज का इस्तेमाल न हुआ हो. इसलिए डिजिटल इनवेस्टीगेशन और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है.
डिजिटल एविडेंस को पुख्ता करने के लिए 3 लेयर सेक्योरिटी बनाई गई है. दिल्ली के द्वारका सेक्टर-16 में साइपैड बनाया गया. हर जिले में डिस्ट्रिक्ट साइबर सेल और थानों में भी साइबर टीम होती है. जिलों में साइबर सेल की स्थापना हुए 2 साल हो गए हैं. साइबर टूल्स अब जिले की साइबर टीम्स को दिए जाने हैं. ये किसी भी मोबाइल की एनालिसिस कर सकते हैं. पुलिस हेडक्वार्टर की तरफ से जिले के साइबर सेल को ये टूल्स दिए गए है.
दिल्ली साइबर क्राइम सेल के डीसीपी अन्येश रॉय ने बताया कि जिला साइबर सेल के ऑफिसर साइबर के साथ ही थानों के साइबर अपराध मामले में जांच कर सकेंगे. इतना ही नहीं, ये ऑफिसर्स खुद के थाने में बैठकर भी ऑनलाइन साइपैड के विदेशी टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं. विदेशी टूल्स ऐसे हैं कि सीसीटीवी में ग्रैब में गाड़ी के नंबर को भी बड़ा करके दिखा देंगे और अपराधी का पता दे देंगे. वहीं जांच अधिकारी को अब ये डिवाइस फारेंसिक साइंस लैब में नहीं भेजने पड़ेगे और तफ्तीश शुरू होते ही अधिकारी को केस के लिए लीड मिल जाएगी.