एक तरफ दिल्ली के कई बाजार सीलिंग की कगार पर हैं तो वही दूसरी तरफ पिछले छ महीने पहले सील हुई दिल्ली की अमर कॉलोनी मार्किट के दुकानदार और कामगार भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं.
अमर कॉलोनी कपड़ा मार्किट के लोग 8 मार्च 2019 की वो सुबह आज तक नहीं भूले हैं जिसने उनकी जिंदगी उजाड़ दी थी. कभी जो लोग करोड़ों की एयर कंडीशन दुकान के मालिक हुआ करते थे आज वो पटरी पर कपड़े बेच रहे हैं. 1000 से लेकर 1200 रुपये की खरीद के रेडीमेट सूट ये लोग पटरी पर 300 से 400 रुपये की कीमत में बेचने को मजबूर हैं लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोई खरीदार नहीं मिलता.
कामगार हों या दुकानदार सभी यहां पिछले 6 महीनों से परेशानी और तनाव भरी जिंदगी जी रहे हैं. दुकानें पूरी तरह से बंद होने से आमदनी ना के बराबर रह गई है जबकि खर्चे बहुत ज्यादा हैं.

स्ट्रेस के चलते इसी बाजार में पिछले 35 सालों से दुकान चला रहे मनदीप को ब्रेन स्ट्रोक आ गया. उनके परिवार में बूढ़ी मां, दो बच्चे और पत्नी हैं. डॉक्टरों ने इलाज के नाम पर मोटी रकम भी ले ली लेकिन उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. मनदीप की पत्नी नम आंखों से बताती हैं, 'हम ईमानदारी से पिछले 35 सालों से अपना टैक्स भर रहे थे. अगर हम दोषी हैं तो वो भी दोषी हैं जिन्होंने इतने सालों से हमसे टैक्स लिया. इतना ही नहीं इसी बाजार में 450 दुकानें सील कर दी गईं लेकिन 250 दुकानों को छोड़ दिया, वो दुकान आज भी चल रही हैं. अगर हम गलत हैं तो वो लोग वो क्यों सही हैं?'
मनदीप इन दिनों बिस्तर पर लेटे चिंता में डूबे रहते हैं. दुकान सील होने के 10 दिन बाद से ही वो अपनी दुकान के आगे पटरी लगा कर कपड़े बेच रहे थे, दिन के 1000 से 1500 की कमाई जैसे तैसे हो रही थी लेकिन मनदीप को ब्रेन स्ट्रोक आ गया और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. मनदीप के बीमार होने पर अब उनकी पत्नी पटरी पर दुकान लगा रही हैं. बच्चों की स्कूल की साल भर की करीब डेढ़ लाख रुपये की फीस बकाया है.
मनदीप की पत्नी ने बताया, 'मेरे बेटे के स्कूल से रोज फोन आ रहे हैं, स्कूल वालों ने नाम काटने तक की धमकी दे दी है. स्कूल के नए सेशन की एक लाख 25 हजार फीस बकाया है. मेरे पति की ऐसी हालात है, मैं बच्चों के लिए कहा से फीस लाऊं समझ नहीं आ रहा, सरकार से मेरी गुजारिश है कि वो हम पर रहम करे.'
छ महीने पहले तक गुलज़ार रहने वाला बाजार अब उजाड़ और सुना पड़ा है. दुकानदार बीच का रास्ता निकालने के लिए भी तैयार है. उनको बार यही दुख सता रहा है कि अगर जल्द ही दुकानें नहीं खुलीं तो क्या होगा.