दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर विवाद शुरू हो गया है. दिल्ली सरकार के सर्विसेज विभाग के सचिव के नाराज होकर सचिवालय छोड़ने की खबरें हैं. AAP सरकार ने सेवा सचिव आशीष मोरे पर कोर्ट की अवमानना का आरोप लगाया है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का अनुपालन नहीं किया जा रहा है. एक दिन पहले गुरुवार को ही मंत्री सौरभ भारद्वाज ने बड़े पैमाने पर प्रशासनिक फेरबदल की तैयारी में सर्विसेज सचिव आशीष मोरे को सेवा विभाग के सचिव के पद पर नये अधिकारी के तबादले की फाइल पेश करने के निर्देश दिए थे, लेकिन आशीष मोरे ने अचानक मंत्री कार्यालय को सूचित किए बिना सचिवालय छोड़ दिया और उनका फोन भी स्विच ऑफ है.
बता दें कि एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की लड़ाई को लेकर फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से ये फैसला दिया है कि दिल्ली में अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार केजरीवाल सरकार के पास ही रहेगा. उसके बाद केजरीवाल सरकार एक्शन में आ गई है. AAP सरकार के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद सीएम अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में प्रशासनिक फेरबदल की घोषणा की है.
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 11 मई को प्रमुख योजनाओं को तेजी से पूरा करने के लिए सक्षम और ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति की जरूरत पर बल दिया. साथ ही उन अधिकारियों को हटाने की बात कही, जो योजनाओं की प्रगति को बाधित कर रहे हैं.
'चुपचाप सचिवालय भवन से निकल गए मोरे'
दिल्ली सरकार का कहना है कि 'संभवत: केंद्र सरकार के प्रभाव में सेवा विभाग के विशेष सचिव ने मंत्री सौरभ भारद्वाज को एक पत्र भेजा है, इसमें गृह मंत्रालय (एमएचए) की 21 मई 2015 की अधिसूचना का हवाला देकर बताया है कि अभी तक उसको बदला नहीं गया है. इसके साथ ही सेवा सचिव ने नए अधिकारी को लाने के लिए फाइल भी शुरू नहीं की है. 'AAP सरकार के मुताबिक, इसके बाद सेवा सचिव के ध्यान में लाया गया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन नहीं करने पर इसे संभावित रूप से अदालत की अवमानना माना जाएगा.
AAP सरकार में मंत्री सौरभ भारद्वाज ने आशीष मोरे को सेवा सचिव के पद पर नया अधिकारी नियुक्त करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश दिया था. AAP सरकार के अनुसार, मंत्री के आदेश का पालन करने के बजाय आशीष मोरे ने चुपचाप सचिवालय भवन से निकल गए और अपना फोन बंद कर दिया.
AAP सरकार ने अधिकारिक बयान जारी कर कहा है कि 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केंद्र सरकार और उपराज्यपाल देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देशों का पालन करने को तैयार नहीं दिख रहे हैं. दिल्ली सरकार पारदर्शिता, दक्षता और सुशासन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है. यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएगी.
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दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से CM पावरफुल
दिल्ली में मुख्यमंत्री VS उपराज्यपाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार को होना चाहिए. यानी उपराज्यपाल नहीं मुख्यमंत्री ही दिल्ली का असली बॉस होगा.
दरअसल, केंद्र सरकार ने 2021 में गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD Act) में संशोधन किया था. इसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को कुछ और अधिकार दे दिए गए थे. आम आदमी पार्टी ने इसी कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें...
- अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा.
- चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक सेवा का अधिकार होना चाहिए. अगर चुनी हुई सरकार के पास प्रशासनिक व्यस्था का अधिकार नहीं होगा, तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही पूरी नहीं होती.
- उपराज्यपाल को सरकार की सलाह माननी होगी. - पुलिस, पब्लिक आर्डर और लैंड का अधिकार केंद्र के पास रहेगा.
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क्या है GNCTD अधिनियम?
- दरअसल, दिल्ली में विधान सभा और सरकार के कामकाज के लिए एक रूपरेखा प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) अधिनियम, 1991 लागू है. 2021 में केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया था.
- संसोधन के तहत दिल्ली में सरकार के संचालन, कामकाज को लेकर कुछ बदलाव किए गए थे. इसमें उपराज्यपाल को कुछ अतिरिक्त अधिकार दिए गए थे. संशोधन के मुताबिक, चुनी हुई सरकार के लिए किसी भी फैसले के लिए एलजी की राय लेनी अनिवार्य किया गया था.
- अधिनियम में कहा गया था, ‘राज्य की विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा.’ इसी वाक्य पर मूल रूप से दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को आपत्ति थी. इसी को आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या क्या कहा?
चीफ जस्टिस ने संवैधानिक बेंच का फैसला सुनाते हुए कहा, दिल्ली सरकार की शक्तियों को सीमित करने को लिए केंद्र की दलीलों से निपटना जरूरी है. एनसीटीडी एक्ट का अनुच्छेद 239 aa काफी विस्तृत अधिकार परिभाषित करता है. 239aa विधानसभा की शक्तियों की भी समुचित व्याख्या करता है. इसमें तीन विषयों को सरकार के अधिकार क्षेत्र से बाहर रखा गया है.
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- सीजेआई ने कहा, यह सब जजों की सहमति से बहुमत का फैसला है. यह मामला सिर्फ सर्विसेज पर नियंत्रण का है. अधिकारियों की सेवाओं पर किसका अधिकार है? CJI ने कहा, हमारे सामने सीमित मुद्दा यह है कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली में सेवाओं पर किसका नियंत्रण होगा?
-2018 का फैसला इस मुद्दे पर स्पष्टता प्रदान करता है लेकिन केंद्र द्वारा उठाए गए तर्कों से निपटना आवश्यक है. अनुच्छेद 239AA व्यापक सुरक्षा प्रदान करता है.
- सीजेआई ने कहा, NCT एक पूर्ण राज्य नहीं है. ऐसे में राज्य पहली सूची में नहीं आता. NCT दिल्ली के अधिकार दूसरे राज्यों की तुलना में कम हैं. - सीजेआई ने कहा, प्रशासन को GNCTD के संपूर्ण प्रशासन के रूप में नहीं समझा जा सकता है. नहीं तो निर्वाचित सरकार की शक्ति कमजोर हो जाएगी.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- एलजी के पास दिल्ली से जुड़े सभी मुद्दों पर व्यापक प्रशासनिक अधिकार नहीं हो सकते.
- ''एलजी की शक्तियां उन्हें दिल्ली विधानसभा और निर्वाचित सरकार की विधायी शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देती.''