उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच फिर से अधिकारों की जंग तेज हो सकती है. मंगलवार को दिल्ली सरकार की कैबिनेट मीटिंग में एलजी द्वारा बनाई गई तीन सदस्यीय समिति पर चर्चा हुई. ये कमिटी आम आदमी पार्टी के सत्ता में आने से लेकर अगस्त 2016 तक लिए गए तमाम फैसलों की फाइल जांचने के लिए बनाई गयी थी. उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने एलजी की कमिटी को अवैध बताते हुए कहा कि ऐसी समिति बनाने का अधिकार उपराज्यपाल को नहीं है.
मनीष सिसोदिया ने कहा कि "केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारों का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जिसका फैसला नवंबर के महीने आना है. हमने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक कोई कदम न उठाये. मुझे उम्मीद है इसका सम्मान होगा." कैबिनेट नोट में इस बात का ज़िक्र किया गया है कि एलजी की कमिटी किस तरह अधिकारियों में डर पैदा कर रही है. कमिटी द्वारा फाइलों की जाँच को मंत्रियों से पूरी तरह दूर रखा जा रहा है जिससे कई बड़े काम रुके हुए हैं. जिसके चलते मनीष सिसोदिया एलजी की कमिटी को एक चिट्ठी भी लिख सकते हैं.
आपको बता दें कि 4 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट का एक फैसला आया था, इसमें कहा गया कि दिल्ली केंद्र शासित है, यहां उपराज्यपाल ही प्रशासक हैं. इसके बाद एलजी ने सभी विभागों को आदेश दिए थे कि ऐसे सभी फैसले जिनकी अनुमति एलजी से ली जानी चाहिए थी, लेकिन नहीं ली गई, उनकी सभी फाइलें उपराज्यपाल कार्यालय भेजी जाएं.
एलजी दफ़्तर के मुताबिक, इस तरह की करीब 400 फाइलें हैं. एलजी ने दिल्ली सरकार के फैसलों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति भी बनाई थी. इसमें पूर्व सीएजी वीके शुंगलू, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन. गोपालस्वामी व पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त प्रदीप कुमार को जगह दी गई. इस समिति को 6 सप्ताह में अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है.
एलजी की कमिटी फाइल की जांच करते वक़्त इन बातों का ध्यान रखती है-