मिट्टी के खूबसूरत दीये दिवाली की खुशियों को रोशन करने के लिए बाजार में सज चुके हैं. सरोजिनी नगर के कुम्हार बाजार में दिवाली की सजावट का सारा सामान हैं. फर्क इतना हैं कि ये सारा सामान कुम्हारों के हाथों से बना हैं.
चाक घुमाकर मिट्टी की सुंदर कलाकारी कर ये कुम्हार दिवाली का बाजार इसी उम्मीद से सजाते हैं कि इन दीयों की बिक्री से अपनी दीवाली भी रोशन कर लेंगे, लेकिन अफसोस दिवाली के इतने नजदीक भी ये बाजार खामोश हैं और दुकानदारों की सेल मंदी है.
कुम्हार बाजार के प्रधान सदस्य और दुकानदार अनिल की माने तो हर साल सेल गिरती ही जा रही है. लोग मिट्टी के सामान को महंगा बोलकर छोड़ देते हैं, लेकिन मिट्टी के काम में मेहनत बहुत हैं और हाथ का काम होने की वजह से टाइम भी बहुत लगता हैं. इसीलिए इनका दाम थोड़ा ज्यादा होता हैं.
मिट्टी के दीयों के इस बाजार में वैराइटी की कोई कमी नहीं हैं. एक से बढ़कर एक सुंदर सजीले दिए और दूसरी साज सज्जा का सामान भी यहाँ मौजूद है. लेकिन इसके बावजूद मिट्टी के इन दीयों को इक्का दुक्का खरीददार ही मिल पाते हैं, जबकि कुम्हारों ने यहाँ भी चीनी माल की तर्ज पर वैक्स वाले दिए बना रखे हैं. लेकिन इसके बावजूद ये दुकानदार यहाँ दिन-दिन भर बैठ कर भी अपना खर्चा नहीं निकाल पाते.
अन्य दुकानदार गीता के मुताबिक पहले खूब बिक्री होती थी, लेकिन कुछ 5 से 6 सालों में सेल 30 से 40 प्रतिशत गिर चुकी हैं और लगातार गिरती जा रही है.
ये मिट्टी के दीये और दूसरा सामान चीनी आइटम की तुलना में महँगा होता हैं. क्योंकि इन सामानों को कुम्हार अपने हाथ से बनाता हैं. उसके बाद इन आइटम्स पर एक एक डेकोरेशन का काम भी कारीगर दिन रात की मेहनत से खुद अपने हाथ से करता है. ऐसे में जो खरीददार इस मेहनत को समझता है. वही ग्राहक यहाँ इन दीयों की खरीददारी के लिए ऐसे देसी बाजार में पहुंचता है.
यूं तो भारतीय संस्कृति में मिट्टी के दीये में घी का दीपक जला कर ही दीवाली मनानी चाहिए लेकिन सालों से भारतीय घरों में दिवाली के दीयों की जगह चाइनीज लड़ियों ने ली है. सस्ती चमचमाती चीनी लड़ियों की वजह से ही देसी बाजार साल दर साल मंदा होता जा रहा है.