
ठीक एक साल पहले जब कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए देश में लॉकडाउन लागू हुआ था, तब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली से हजारों की तादाद में प्रवासी मजदूर अपने घरों को चल दिए थे. सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय कर जैसे-तैसे अपने गांव पहुंचे मजदूरों में से ज्यादातर अब लौट कर वापस आ चुके हैं. हालांकि, उनको काम मिलने में अभी काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है.
बिल्डरों के पास पैसों की कमी है और ठेकेदार सस्ती दर पर मजदूर चाहते हैं. इससे इन मजदूरों का गुजारा मुश्किल से चल पा रहा है. नोएडा और गाजियाबाद के बीच का लेबर चौक जो लॉक डाउन के दौरान बिल्कुल खाली था, अब फिर से गुलजार है. कई मज़दूर ऐसे भी हैं जो सुबह से शाम तक का वक्त काम की आस में ही गुजार दे रहे लेकिन काम नहीं मिल पा रहा.
बिहार के सीतामढ़ी से आए एक मजदूर हरिहर यादव ने बताया कि कोरोना के पहले जैसे हालात अभी बहाल नहीं हो पाए हैं. बड़ी मुश्किल से काम मिल पा रहा है. वह कहते हैं कि लॉकडाउन से पहले वे अपने परिवार के साथ खोड़ा इलाके में किराये के कमरे में रहते थे. लॉकडाउन में जब घर गए तो परिवार को वहीं छोड़ आए क्योंकि गुजारा चलाना मुश्किल हो गया है.

हरिहर की तरह दर्जन भर से ज्यादा ऐसे मजदूर लेबर चौक पर दिखे, जिन्हें पूरा दिन गुजर जाने के बाद भी काम नहीं मिला. इनमें से ज्यादातर बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड के हैं. सीतामढ़ी के ही मोहम्मद इमरान करीब दो महीने पहले ही वापस गाजियाबाद लौटे हैं. उनका भी कहना है कि दिन-दिन भर खड़े रहने के बावजूद कई बार काम नहीं मिल पा रहा है. पहले ऐसी स्थिति नहीं थी लेकिन अब गुजारा मुश्किल होता जा रहा है.
पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है कंस्ट्रक्शन
ग्रेटर नोएडा वेस्ट जहां एनसीआर में सबसे ज्यादा फ्लैट बन रहे हैं, वहां की लेबर बस्ती में भी लगभग 70-80 प्रतिशत लेबर लौट कर आ चुके हैं, लॉकडाउन के दौरान ये बस्ती पूरी तरह से खाली हो चुकी थी. यहां रह रहे बंगाल के मोहम्मद बाबुल ने कहा कि ठेकेदार अब मजदूरों को कम पैसे दे रहे हैं. कंस्ट्रक्शन का कार्य पूरी तरह से शुरू नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि पहले जहां रोजाना 550 रुपये कमा लेते थे वहां अब 450 रुपये ही कमा पा रहे. मजदूर अधिक हैं और काम कम, इसका फायदा ठेकेदार उठा रहे हैं.

स्किल्ड मजदूरों के भी वैसे ही हालात हैं. इसी बस्ती के पास रहने वाले चिल्लू ने बताया कि वे पेंटर हैं और लॉकडाउन से पहले महीने के 15-20 हजार रुपये कमा लिया करते थे, लेकिन अब काम बहुत कम मिलता है और बमुश्किल 10 हजार कमा पाते हैं जिसमें से तमाम खर्च के बाद कुछ पैसे घर भी भेजने होते हैं.
क्या कहते हैं बिल्डर्स
वहीं दूसरी तरफ बिल्डर्स का कहना है कि ज्यादातर मजदूर लौट आए हैं लेकिन अब समस्या लिक्विडिटी की है. बिल्डर्स कहते हैं कि लॉकडाउन के दौरान बहुत ही कम फ्लैट और अन्य प्रॉपर्टी बिकी. सुपरटेक के चेयरमैन और नारेडको के अध्यक्ष आरके अरोड़ा का कहना है कि बिल्डर लास्ट माइल फंडिंग की कोशिश कर रहे हैं जिससे लिक्विडिटी क्राइसिस से निकला जा सके.