दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश से दिल्ली सरकार को बड़ा झटका दिया है. दिल्ली सरकार के जीटीबी अस्पताल में दिल्लीवासियों को इलाज में प्राथमिकता देने वाले सर्कुलर को कोर्ट ने खारिज़ कर दिया है. यानी दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में इलाज में किसी भी मरीज के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा.
हाईकोर्ट ने माना कि दिल्ली सरकार का सर्कुलर मनमाना है और मेडिकल सेवाओं में भेदभाव किसी भी लिहाज़ से मरीजों के साथ नाइंसाफी है. हाईकोर्ट ने कहा कि दिल्ली सरकार का आदेश मनमाना और तर्कहीन है. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि दिल्ली पैन इंडिया है यानी दिल्ली देश की राजधानी है और देश के किसी भी मरीज को इलाज के लिए मना नहीं किया जा सकता. यह सर्कुलर समानता के अधिकार और जीने के हक के खिलाफ है. इसीलिए हम इसे रद्द कर रहे हैं.
कोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता के इस तर्क को माना कि सरकारी अस्पतालों में इलाज कराने वाले ज्यादातर मरीज गरीब होते हैं और सरकारी अस्पताल इसके लिए इलाज़ का आख़िरी विकल्प होते है. और यहां भी और अगर सरकार इलाज से मना करती है तो ये इलाज कहां कराएंगे.
हाईकोर्ट का यह आदेश दिल्ली सरकार को तुरंत प्रभाव से लागू करना होगा यानी अब जीटीबी अस्पताल से दिल्ली सरकार को तुरंत उन बड़े-बड़े होर्डिंग्स को हटाना होगा जिनमें बाहर से आने वाले लोगों को इलाज की मनाही थी.
अगर अस्पताल का प्रशासन इस आदेश के बाद दिल्ली के बाहर से आए किसी भी मरीज को इलाज से मना करता है तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी. कोर्ट से आया फैसला भले ही दिल्ली सरकार के लिए बड़ा झटका हो लेकिन गरीब मरीजों के लिए एक बहुत बड़ी राहत है.
दिल्ली सरकार ने 1 अक्टूबर को ज़ीटीबी अस्पताल के लिए एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कहा गया था कि दिल्ली के वोटर आईडी कार्ड को दिखाने वाले मरीजों को ही इलाज में प्राथमिकता मिलेगी. दिल्ली के बाहर से आने वाले मरीजों को इस अस्पताल में बिस्तर और मुफ्त दवाइयां देनी भी बंद कर दी थी.
सर्कुलर के जारी होने के बाद इसका विरोध भी शुरू हो गया और हाईकोर्ट में सर्कुलर को चुनौती देने वाली याचिका सोशल जूरिस्ट एनजीओ की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने लगा दी.