
कृषि कानून के खिलाफ सिंधु बॉर्डर पर डटे किसानों ने ट्रैक्टर ट्राली को ही अपना अस्थाई घर बना रखा है और सड़कों को ही अपना बिस्तर. खुले आसमान के तले सड़कों पर चटाई बिछाकर और कंबल रजाई लेकर सोते हैं और सुबह जल्दी उठकर कृषि संबंधी कानूनों के बारे में केंद्र सरकार को कोसना शुरू कर देते हैं.
किसान ट्रैक्टर ट्राली में राशन-पानी लेकर लंबी लड़ाई के लिए पहुंचे हैं. घर वालों को भी आश्वस्त करके आए हैं कि हमारी चिंता मत करना, जब भी जरूरत होगी हम खुद आपको फोन करेंगे. इसके अलावा दिल्ली के सामाजिक संगठन और एनजीओ आंदोलनकारी किसानों की राशन से लेकर खाने-पीने और दवाइयों तक सब तरह की मदद कर रहे हैं.

इन संगठनों में सठखंड सेवा सोसायटी और यूनाइटेड सिख ऑर्गेनाइजेशन जैसे एनजीओ शामिल है. इसके अलावा भी अलग-अलग लोग स्थानीय स्तर पर अपनी सेवाएं इन आंदोलनकारी किसानों को दे रहे हैं. कोई बिस्किट भिजवा रहा है, तो कोई पानी दे रहा है, तो कोई फल सब्जियां पहुंचा रहा है.
सठखंड सोसाइटी के चेयरमैन इकबाल सिंह का कहना है कि हम लोग तीनों समय किसानों के लिए कुछ ना कुछ जरूर लाते हैं. चाहे चाय-नाश्ता लाए, लंच लाए या रात का खाना लाए. किसान मजदूर संघर्ष समिति पंजाब के ज्वाइंट सेक्रेट्री सुखबीर सिंह समरा का कहना है कि हमको खाने पीने की या किसी प्रकार की कोई दिक्कत नहीं है.

सुखबीर सिंह ने कहा कि हम यहां संघर्ष करने के लिए आए हैं, अपनी मांगे मनवाने के लिए आए हैं. हम 6 महीने का राशन अपने ट्रैक्टर ट्राली में भरकर लाए हैं. सूखा राशन चाहे दाले हो, आटा हो, चावल हो, प्याज हो. सब व्यवस्था हमारे पास है. गैस सिलेंडर चूल्हा हम लोग लेकर आए हैं. यहां पर हम लोग लंगर भी बनाते हैं और स्थानीय लोग भी खाने में मदद करते हैं .
सुखबीर सिंह बताते हैं कि हम लोग सुबह चाय बनाते हैं. चाय में बिस्किट पराठे वगैरह होते हैं और दोपहर के खाने में हलवा खीर दाल चावल कभी-कभी छोले भटूरे कुलचे. इसके अलावा रात के खाने में प्रसाद हलवा दाल. रात को सोते वक्त दूध सब हम को दिया जाता है. सुखबीर सिंह का यह भी कहना है कि जरूरत पड़ने पर लोग चंदा भी देते हैं.

एक और किसान नेता जसवीर सिंह का कहना है कि खाने-पीने और किसी प्रकार की हमको कोई दिक्कत नहीं होगी. इसकी वजह से न हीं हमारा आंदोलन रुकेगा, क्योंकि लोग सेवा करने के लिए बहुत आगे आ रहे हैं. दिल्ली के लोकल लोग भी और आसपास के लोग भी आंदोलनकारियों को खाने से लेकर हर सुविधा चाहे, वह दवाइयां हो, पानी हो सब कुछ व्यवस्था कर रहे हैं.
कानून की पढ़ाई कर रहे तरनतारन के एक छात्र जसविंदर का कहना है कि हम बेशक छात्र हैं, लेकिन किसान के बेटे हैं. खेती से हमारी पढ़ाई का पैसा चुकाया जाता है, इसलिए मैं भी यहां पर इस आंदोलन में भाग लेने के लिए आया हूं.

कुछ संस्थाओं ने सिंघु बॉर्डर पर फर्स्ट एड देने के लिए अपनी मेडिकल टीमें भी भेजी हैं, चाहे वह दिल्ली सरकार हो या फिर गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी हो. लोगों को प्रोस्टेट सुविधाएं दी जा रही हैं. आंदोलनकारी किसान भी अपने साथ मेडिसन लेकर आए हैं.