दिल्ली में आम आदमी पार्टी को 3 बार, कांग्रेस को 2 बार तो बीजेपी को दिल्ली में 1 बार सरकार बनाने का मौका मिला. 2 दशक से ज्यादा का समय हो गया फिर भी बीजेपी का वनवास दिल्ली से खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 को होने में 6 महीने से कम का वक्त बचा है, लिहाजा बीजेपी ने संगठन को मजबूती देने का काम शुरू कर दिया है. मौजूदा दिल्ली बीजेपी पूर्वांचल मोर्चे के अध्यक्ष नीरज तिवारी को हटाकर और मोर्चे में उपाध्यक्ष रहे संतोष ओझा को पूर्वांचल मोर्चे का नया अध्यक्ष मनोनीत किया गया तो नीरज तिवारी को दिल्ली बीजेपी मीडिया विभाग का प्रवक्ता बना दिया गया.
खींचतान की ये थी वजह
लगभग 1 साल तक मोर्चा अध्यक्ष के पद पर रहे नीरज तिवारी की नियुक्ति के समय से ही आपसी तालमेल की कमी और कई मौकों पर तनातनी चल रही थी. लेकिन चुनाव में जब कुछ ही महीने हो, ऐसे में ये फैसला कई लोगों कौ चौंकाता है.
पार्टी सूत्रों के हवाले से खबर है कि नीरज तिवारी से प्रदेश संगठन और पार्टी नाराज थी. पूर्वांचल मोर्चे की अपेक्षित सक्रियता नहीं मिली, लिहाजा दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष ने तत्काल प्रभाव से एक्शन लिया. पूर्वांचल समाज के लोगों को ज्यादा से ज्यादा जोड़ना हो या उससे संबंधित गतिविधियां मोर्चे का प्रदर्शन, आदि चीजों में मोर्चा खरा नहीं उतरा, यही वजह है कि अध्यक्ष को नया अध्यक्ष बनने पर फैसला लेना पड़ा.
मेरे साथ गलत हुआ: नीरज तिवारी
हालांकि, नीरज तिवारी ने मीडिया को बताया कि यह सब कुछ गलत हुआ. पूर्वांचल की लड़ाई जारी रखेंगे और इसके लिए शीर्ष नेतृत्व से बात भी करेंगे. नीरज ने कहा कि उदाहरण के लिए शाहदरा और बुराड़ी के इलाके जहां पूर्वांचलियों की संख्या 80 फीसदी है, बावजूद इसके मंडलों में पूर्वांचल समाज को तवज्जो नहीं दी जा रही थी और भी कई ऐसे विषयों पर मतभेद रहा. मीडिया विभाग में प्रवक्ता के पद मिलने पर उन्होंने कहा, अभी सोचेंगे क्या करना है?
बिहार को दबदबा तो यूपी को जगह नहीं
दिल्ली बीजेपी के पूर्वांचल संगठन में इस बार बिहार का दबदबा है, तो वहीं यूपी को नेतृत्व नहीं मिलने पर अंदरखाने सवाल भी उठ रहे हैं. बता दें कि पूर्वांचल मोर्चे के अध्यक्ष के तौर पर संतोष ओझा (बिहार), प्रभारी बिपिन बिहारी सिंह (बिहार) और सह प्रभारी मनीष सिंह (बिहार ) को नई तैनाती मिली है.
पूर्वांचल की सबसे बड़ी आबादी दिल्ली में रहती है. तकरीबन 40 से 45 फीसदी के बीच ये वोटर दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर बड़े डिसाइडिंग फैक्टर होते हैं.