दिल्ली हाई कोर्ट ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों से संबंधित 'साजिश' मामले में 9 आरोपियों की जमानत याचिका खारिज कर दी है. इन आरोपियों में उमर खालिद और शर्जील इमाम भी शामिल हैं. इन सभी पर IPC, UAPA और आर्म्स एक्ट के तहत आरोप लगाए गए हैं. ये सभी आरोपी जनवरी-अगस्त 2020 में अपनी गिरफ्तारी के बाद से पांच साल से ज्यादा वक्त से जेल में हैं.
पुलिस के मुताबिक, आरोपियों पर 2019-20 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का आयोजन करके 'आतंकवादी गतिविधि' करने और दंगे भड़काने की 'बड़ी साजिश' का आरोप है.
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि ये प्रदर्शन 'शांतिपूर्ण प्रदर्शन' नहीं थे, बल्कि 'पूर्व-नियोजित और सुनियोजित दंगे' थे, जिन्हें राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को कमजोर करने के इरादे से योजनाबद्ध किया गया था.
जमानत खारिज किए जाने क्या वजहें?
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि "साजिश के हर सदस्य, विशेष रूप से वर्तमान अपीलकर्ताओं को, साजिश को आगे बढ़ाने के लिए एक विशिष्ट भूमिका सौंपी गई थी." कोर्ट ने यह भी कहा कि मामला अभी शुरुआती चरण में है और अभी गवाहों की जांच होनी बाकी है, इसलिए गवाहों के साथ छेड़छाड़ की संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
बेंच ने यह भी कहा कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-UAPA खुद ही जमानत देने के लिए कोर्ट के विवेक को प्रतिबंधित करता है. धारा 43डी(5) के तहत, अगर अदालत को लगता है कि आरोपी के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सही हैं, तो जमानत नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने प्रत्येक आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूतों का विस्तार से विश्लेषण किया.
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शर्जील इमाम और उमर खालिद पर आरोप
कोर्ट ने शर्जील इमाम और उमर खालिद द्वारा कथित रूप से दिए गए 'भड़काऊ भाषणों' पर जोर दिया. कोर्ट ने कहा कि साजिश में अपीलकर्ताओं-शर्जील इमाम और उमर खालिद की भूमिका प्रथम दृष्टया गंभीर है. बेंच ने अभियोजन पक्ष के इन आरोपों को स्वीकार किया कि उन्होंने जानबूझकर सामूहिक लामबंदी की.
अथर खान, शादाब अहमद, अब्दुल खालिद सैफी और मोहम्मद सलीम खान के खिलाफ भी सबूतों को व्हाट्सएप ग्रुपों में केवल उपस्थिति पर आधारित होने के तर्क को खारिज कर दिया गया. कोर्ट ने कहा कि ये सभी आरोपी कथित तौर पर हिंसा भड़काने और पुलिसकर्मियों पर हमला करने की साजिश से जुड़ी बैठकों में शामिल थे.
शिफा-उर-रहमान और मीरान हैदर पर आरोप...
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, शिफा-उर-रहमान और मीरान हैदर पर विरोध प्रदर्शनों के लिए फंड जुटाने का आरोप है. उन पर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र संघ (AAJMI) के कार्यालय और नेटवर्क का उपयोग करने का भी आरोप है. बेंच ने कहा कि इस लेवल पर फंड के दुरुपयोग की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
अभियोजन पक्ष ने गुलफिशा फातिमा पर सीलमपुर-जाफराबाद में प्रोटेस्ट वाली जगहों को संभालने और मार्गदर्शन करने का आरोप लगाया है. बेंच ने कहा कि यह जरूरी नहीं है कि सभी आरोपी अपराध के सभी पहलुओं में शामिल हों. व्हाट्सएप ग्रुपों के निर्माण जैसे तथ्यों को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता.
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नताशा नरवाल और देवांगना कलिता के मामले से तुलना
याचिकाकर्ताओं ने नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को मिली जमानत के आधार पर समानता की मांग की, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि इन अपीलकर्ताओं की भूमिका अन्य सह-आरोपियों की तुलना में प्रथम दृष्टया गंभीर है. कोर्ट ने कहा कि विरोध प्रदर्शन आतंकवाद नहीं है, वाले तर्क को अब एक मिसाल के रूप में पेश नहीं किया जा सकता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है.
लंबी कैद और ट्रायल में देरी
आरोपियों ने लंबी कैद और धीमी गति से चल रहे ट्रायल को भी जमानत का आधार बनाया. इस पर हाई कोर्ट ने कहा कि लंबी कैद और ट्रायल में देरी के एकमात्र आधार पर जमानत देना सभी मामलों में एक सार्वभौमिक रूप से लागू नियम नहीं है. कोर्ट ने कहा कि मामला गंभीर है और ट्रायल एक प्राकृतिक गति से आगे बढ़ रहा है. अभियोजन पक्ष ने कहा कि 58 गवाहों की जांच की जाएगी, और चार्जशीट 3,000 से ज्यादा पन्नों की है.