एक कहावत है जब रोम जल रहा था नीरो बंसी बजा रहा था कुछ यही स्थिति राजधानी दिल्ली की है राजधानी दिल्ली इस समय एक बड़े संकट से गुजर रही है लेकिन हमारे नेता हैं कि उन्हें इस स्थिति से कोई लेना देना ही नहीं है इस समय दिल्ली में जिस तरह का वायु प्रदूषण है और जिस तरह के आंकड़े मिल रहे हैं उनसे यही कहा जा सकता है कि दिल्ली इस समय दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है पिछले दिनों की बात करें तो यहां पर सबसे महीन कण यानी पीएम 2.5 का लेवल सामान्य के मुकाबले 12 से 14 गुना तक पहुंच गए इसी तरह पीएम 10 की मात्रा दिल्ली की हवा में सुरक्षित स्तर के मुकाबले 8 गुना से ज्यादा दर्ज किए गए. यह स्थिति 1 दिन में नहीं बनी है 12 दिन हो चुके हैं जब से राजधानी की हवा इतनी जहरीली हुई है.
जिम्मेदार कौन, केन्द्र या दिल्ली ?
अब सवाल उठता है क्या इस स्थिति के बारे में केंद्र और राज्य सरकार को पता नहीं था या उनके पास इस बात को जानने का कोई जरिया नहीं था कि दिल्ली की हवा इतनी
जहरीली होने जा रही है. इसका सीधा जवाब यह है कि मोदी सरकार और केजरीवाल की सरकार को इस बात की जानकारी सरकारी एजेंसियां लगातार दे रही थी. केंद्र सरकार की
बात करें तो उनके पास मौसम विभाग से आने वाली जानकारी के साथ ही सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से मिलने वाले पूर्वानुमान भी थे. इसके अलावा मौसम विभाग के
एनवायरनमेंट डिवीजन के सफ़र प्रोग्राम के तहत इस स्थिति के लिए लगातार पूर्वानुमान जारी किए जाते रहे हैं जो एक हद तक सटीक बैठे हैं. तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली की
केजरीवाल सरकार के पास दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से मिलने वाले पूर्वानुमान और मौसम विभाग से मिलने वाले पूर्वानुमान मौजूद थे लेकिन इन पूर्वानुमानों को कोई तवज्जो
नहीं दी गई.
मौसम विभाग की चेतावनी को समझनें में नाकाम रही सरकारें
26 अक्टूबर को अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा ने भारत के मैदानी इलाको में धान के खेतों में लगाई जा रही आग को लेकर एक तस्वीर जारी की और इससे यह स्पष्ट हुआ कि
इस बार भी पिछले हर साल की तरह पंजाब से उठने वाला धूआं उत्तर भारत में अपना रंग दिखाएगा. मौसम विभाग के वैज्ञानिकों को इस बात का अंदाजा था कि आने वाले
दिनों में दिल्ली समेत उत्तर भारत के तमाम इलाकों में कैसा मौसम होने जा रहा है. मौसम विभाग को आमतौर पर 15 दिनों के बारे में सटीक जानकारी होती है और इस बात
को केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी जानती है. लेकिन मौसम की गंभीरता को हर बार की तरह इस बार भी सरकार समझने में नाकाम रही है. मौसम के हर पैरामीटर
इस बात की तरफ इशारा कर रहे थे की दीपावली के आसपास राजधानी में वायु प्रदूषण में जबरदस्त इजाफा होने जा रहा है. इन सबके बावजूद केंद्र सरकार की इस एजेंसी ने
लोगों को एहतियात बरतने की कोई चेतावनी जारी नहीं की, मौसम विभाग ने अपने एनवायरमेंट डिवीजन के सफ़र प्रोग्राम के तहत सफर की वेबसाइट पर 3 दिनों की चेतावनी
को लगाए रखा. मौसम विभाग ने इस बात की जरूरत ही नहीं समझी कि इतनी खतरनाक स्थिति को अखबारों और टीवी में विज्ञापन देकर लोगों को आगाह किया जाए. यानी
उन लोगों को जिनको इस बात का मैंडेट है कि वह देश के लोगों को मौसम से जुड़े हुए खतरों के बारे में लोगों को पहले से जानकारी दें उन्होंने इस जिम्मेदारी को सही तरीके से
नहीं निभाया.
सोती रहे पंजाब व केन्द्र सरकारें
केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए सैटेलाइट से मिल रही खेत जलाने की तस्वीरों के बावजूद दिल्ली में बैठी मोदी सरकार और पंजाब में बैठी बादल सरकार सोती रही. बात बात में
केंद्र सरकार को कोसने वाले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल मोदी और बादल सरकार की तरह इस मामले की गंभीरता को समझने में नाकाम रहे. दीपावली के बाद जब दिल्ली
एनसीआर के तमाम इलाकों में स्मॉग कंडीशन बन गई तो सबको यही लगा की कुछ दिनों की बात है दीपावली का प्रदूषण है जल्द चला जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ ऐसा नहीं
होगा इस बात की पूरी जानकारी मौसम विभाग को थी. लेकिन ना किसी सरकारी महकमे ने उनसे पूछा ना ही उन्होंने इस बात की जहमत उठाई कि वह किसी प्रशासनिक अमले
को अलर्ट करते, सब कुछ राम भरोसे चलता रहा.
पर्यावरण मंत्री ने बुलाई सचिवों की बैठक
जब यह स्थिति कंट्रोल से बाहर होती दिखी मीडिया में खबरें आने लगी तो अचानक सोई हुई सरकारी जाग उठी, फिर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने दिल्ली और इसके आस पास के
राज्यों के सचिवों के साथ मीटिंग बुला ली. मीटिंग में ढाई घंटे से ज्यादा विचार किया गया तमाम मुद्दों पर बातचीत की गई बाहर निकलकर पर्यावरण सचिव ए के झा ने
जानकारी दी हर तरीके के मुद्दे पर बातचीत की गई है और इस बातचीत में निकल कर आया है कि पिछले साल स्मॉग के वक्त जिन 42 बिंदुओं पर दिल्ली-एनसीआर
के राज्यों में आपस में सहमति बनी थी उन सबको लागू करवाने में राज्य सरकारों ने ही लाहवाली की है. दिल्ली एनसीआर में बड़े हुए प्रदूषण के चलते केंद्र सरकार ने सेंट्रल
पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को 17 सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले उघोगों के कारखानों को चेक करने की बात कही. इसके अलावा बदरपुर थर्मल पावर प्लांट से फैलने वाले प्रदूषण
पर दिल्ली सरकार से बात की राज्य सरकारों से यह भी कहा गया कि वह पर्यावरण से संबंधित तमाम नियमों और कानूनों को सख्ती से पालन करवाएं. यानी कुल मिलाकर यह
कहा जा सकता है कि एक गंभीर समस्या के लिए सिर्फ सरकारी मीटिंग की तरह लगी.
NGT के दबाव में उठाए गए कदम
उधर एनजीटी के दबाव और प्रदूषण पर मच रहे हो हल्ले के बीच दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने अंततः कई कदम आनंद फानन में उठा लिए. स्थिति यहां तक हो गई केंद्र
सरकार को हर मामले में कोसने के लिए बदनाम केजरीवाल ने इस बार भी कसर नहीं छोड़ी पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने राजधानी दिल्ली के ऊपर कृत्रिम बारिश करने
की संभावना का भी जिक्र कर डाला और कहा इसके लिए केंद्र सरकार से बात करेंगे. समझ में नहीं आता है यह कैसी सरकार है और इनको सलाह देने वाले कैसे लोग हैं कॉमन
सेंस यह कहता है की कृत्रिम बारिश कराने के लिए कम से कम बादलों की जरूरत पड़ेगी ही लेकिन बिन बादल बरसात कराने के लिए केजरीवाल योजना बनाने लगे हैं उनको
कौन समझाए कि यह मानसून के बाद का सीजन है और इसमें बारिश वेस्टर्न डिस्टरबेंस के चलते ही होती है और ऐसे में जब दिल्ली के ऊपर एंटी साइक्लोन सरकुलेशन बना
हुआ हो तो उस जगह पर बादल ही नहीं बनते हैं, केजरीवाल सरकार भी स्थिति की गंभीरता का अंदाजा लगाने में नाकाम रही है. सरकारों का हाल तो बहुत बुरा है, लेकिन इस
बात की चेतावनी कौन जारी करेगा कि इतने ऊंचे प्रदूषण लेवल मेडिकल इमरजेंसी है.
पंजाब चुनाव भी है सामने
पंजाब में आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब में अपने वोटों की फसल काटने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे में
वह भला पंजाब के किसानों को दिल्ली के प्रदूषण के लिए कैसे जिम्मेदार ठहरा सकते हैं. लिहाजा तमाम ऐसे कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे दिल्ली का बढ़ा हुआ प्रदूषण जल्दी
कम नहीं हो सकता है उधर केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्री दिल्ली एनसीआर के राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मिले और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए तमाम कदमों पर चर्चा
की. लेकिन इस बैठक में भी पंजाब के ऊपर कोई दबाव नहीं डाला गया कि वह अपने किसानों को खेतों में आग लगाने से रोकें. मामला यहां भी पंजाब के अगले विधानसभा
चुनावों में वोटों की फसल का है. ऐसे में मौसमी परिस्थितियां बदलने के अलावा और दूसरा कोई विकल्प नहीं है. हवाओं का रुख बदल रहा है और प्रदूषण में कमी आ रही है
लेकिन ये अभी भी सेफ लेवल से काफी ऊपर हैं.