झारखंड विधानसभा चुनाव खत्म होने के साथ ही अब दिल्ली के दंगल के लिए बिगुल बज चुका है. माना जा रहा है कि फरवरी के पहले सप्ताह में दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं, जिसके लिए जनवरी में पहले सप्ताह में ही आचार संहिता लग जाएगी. जाहिर है दिल्ली की तीनों पार्टियां इंद्रप्रस्थ की सत्ता के लिए दमखम से एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं. झारखंड के नतीजे भले ही बीजेपी के पक्ष में ना रहे हों लेकिन दिल्ली की गद्दी के लिए बीजेपी की ओर से प्रधानमंत्री मोदी ने रामलीला मैदान से चुनावी बिगुल बजा दिया है.
दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी 5 साल बेमिसाल के नारे के साथ चुनावी प्रचार का आगाज कर दिया है. इस बार तो अरविंद केजरीवाल की मदद के लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी मैदान में कूद चुके हैं.
बीजेपी ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के ऐन वक्त पर 1731 अवैध कॉलोनियों में रहने वालों को मालिकाना हक देने के फैसला किया तो वहीं अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार ने चुनावी मौसम में दिल्ली को एक के बाद एक मुफ्त सौगातों का सिलसिला शुरू कर दिया.
बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य के अलावा केजरीवाल ने बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा, 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली, सभी बसों में मार्शल, सीसीटीवी कैमरे और मुफ्त वाई-फाई के तोहफे दिए हैं. आम आदमी पार्टी को लगता है कि जनता के लिए 5 साल में उसकी सरकार द्वारा किए गए काम उसे एक बार फिर इंद्रप्रस्थ की गद्दी पर काबिज करेंगे.
आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह का कहना है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा किए गए काम की बदौलत जनता उन्हें एक बार फिर मौका देगी. साथ ही संजय सिंह का मानना है कि झारखंड में भाजपा अपनी नीतियों की वजह से हारी, जिसका असर दिल्ली में भी भाजपा के चुनाव पर पड़ेगा.

'हर राज्य के चुनाव के मसले अलग होते हैं'
आम आदमी पार्टी को लगता है कि झारखंड के नतीजों का असर दिल्ली में भी होगा. लेकिन दिल्ली बीजेपी के नेता मानते हैं कि हर राज्य के चुनाव के मसले अलग होते हैं, इसलिए झारखंड के नतीजे दिल्ली में असर नहीं डाल पाएंगे.
दिल्ली में बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा ने आजतक से कहा कि झारखंड के चुनाव नतीजों का असर दिल्ली पर नहीं होगा क्योंकि हर राज्य में चुनाव के अलग मुद्दे होते हैं और उनकी एक अलग परिधि होती है.
दंगल दिल्ली का है इसलिए बीजेपी अरविंद केजरीवाल पर हमलावर है. प्रधानमंत्री मोदी ने भी रामलीला मैदान से अनधिकृत कॉलोनियों में देरी के लिए केजरीवाल सरकार को घेरा. साथ ही पानी के मसले पर भी आम आदमी पार्टी की सरकार पर जमकर हमले किए.

बीजेपी सांसद की केजरीवाल को खुली चुनौती
इतना ही नहीं बीजेपी के सांसद तो अरविंद केजरीवाल को दिल्ली में आम आदमी पार्टी के दावों पर बहस की खुली चुनौती दे रहे हैं. दिल्ली के सांसद प्रवेश वर्मा कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर जो भी दावे कर रहे हैं, मैं चाहता हूं कि वह जितना भी चाहे उतना समय लें और मुझसे खुली बहस करें.
लेकिन झारखंड के नतीजों के बाद दिल्ली में भी बीजेपी की राह क्या इतनी आसान होगी? 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल पर बीजेपी आक्रामक थी लेकिन चुनावी तारीख तक आते-आते अरविंद केजरीवाल ने अपनी छवि में काफी सुधार कर लिया और नतीजा सबके सामने है.
इस विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी अपने सबसे बड़े ब्रांड अरविंद केजरीवाल के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ रही है. इतना ही नहीं आम आदमी पार्टी लगातार बीजेपी से कह रही है कि उसके पास केजरीवाल है बीजेपी बताए उसके पास कौन है?

कौन होगा बीजेपी का सीएम उम्मीदवार?
कुछ दिनों पहले केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बीजेपी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी का नाम बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार ले तो लिया लेकिन कुछ ही देर में वह अपने बयान से पलट गए. हाल ही में एजेंडा आज तक में आए गृह मंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी यह साफ कर दिया कि दिल्ली में उसके पास कोई चेहरा बतौर मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं है.दिल्ली बीजेपी के सांसद प्रवेश वर्मा का कहना है कि बीजेपी के पास कई सांसद और ऐसे कई चेहरे हैं जो नेतृत्व दे सकते हैं. लेकिन सही समय पर फैसला पार्टी का आलाकमान तय करेगा. यानी मौजूदा समय में बीजेपी दिल्ली में नेतृत्व विहीन है.
2015 के चुनाव में बीजेपी ने आखिरी समय पर किरण बेदी को बतौर मुख्यमंत्री पद का दावेदार खड़ा किया था लेकिन इस बार के चुनाव में ऐसा लगता है कि वह बिना किसी चेहरे पर यानी सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव लड़ना चाहती है.
2015 के चुनावों को सामने रखते हुए यह स्थिति भी दिखाई पड़ती है कि दिल्ली की राजनीति में मतदाताओं को राष्ट्रीय और राज्य के चुनाव का फर्क पता है और अगर ऐसी स्थिति होती है तो आम आदमी पार्टी का पलड़ा बीजेपी से कहीं ज्यादा भारी दिखाई पड़ता है.
अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसे में कांग्रेस की स्थिति कहां है. 2015 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीरो पर सिमट गई थी लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव में उसने अपना मत प्रतिशत काफी बढ़ाया. तो क्या कांग्रेस इस चुनाव में खुद को एक बार फिर मजबूत कर पाएगी?

कांग्रेस की बढ़त बढ़ा सकती है AAP की परेशानी
कांग्रेस के सामने चुनौती है कि वह खुद को शून्य से आगे ले जाकर सम्मानजनक संख्या में सीटें हासिल करें जिसका सीधा सीधा नुकसान आम आदमी पार्टी को हो सकता है.
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन की चर्चा भले हुई हो लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस से किसी भी तरह का गठबंधन करने के मूड में नहीं है. ना ही कांग्रेस पार्टी की ओर से ऐसा कोई प्रस्ताव सामने आ रहा है. यानी तीनों पार्टियां तीन अलग रास्ते पर चलेंगे लेकिन लक्ष्य सबका एक ही है.
चुनाव में अब बेहद कम वक्त बचा है और वक्त कई बार बहुत कुछ बदल भी देता है, इलिए दिल्ली का दंगल दिलचस्प होने वाला है.