छत्तीसगढ़ में वृक्षारोपण के नाम पर हुए करोड़ों के प्लांटेशन घोटाले में वन विभाग की बोलती बंद हो गई है. वन विभाग के एक दर्जन DFO ,पांच CF, चार CCF और दो PCCF कागजों में हुए पौधारोपण घोटाले के दायरे में है.
बिलासपुर स्थित छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान समय पर जवाब नहीं देने को लेकर वन विभाग को जमकर फटकार लगाई.
आप को बता दें कि इससे पहले भी हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए वन विभाग को छह हफ्ते के भीतर अपना जवाब देने का समय दिया था. लेकिन विभाग की ओर से कोई जवाब ना मिलने पर हाईकोर्ट अपना नाराजगी जाहिर कर चूका है.
हालांकि वन विभाग का पक्ष रख रहे वकील ने जवाब प्रस्तुत करने के लिए 6 हप्तों का और वक्त मांगा था. लेकिन अदलात ने कड़ाई बरतते हुए दो हप्ते के भीतर लिखित में जवाब देने का निर्देश जारी कर दिया.
आप को बता दें कि छत्तीसगढ़ सरकार बीते 17 सालों में पौधा रोपण के नाम पर अरबों रुपये खर्च कर चुकी है. वहीं विभाग पिछले 10 सालों में अपनी विभिन्न योजनाओं के तहत हर साल करोंड़ों रुपये खर्च करता आ रहा है. वहीं सरकारी रिपोर्ट में यह बात निकल कर सामने आई है कि इतने वर्षों में सर्वाधिक पौधा रोपण होने के बावजूद भी 3700 वर्ग किलोमीटर जंगल घट गया.
अब घोटालों का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रत्यक वर्ष सरकारी रिकॉड में हरा-भरा जंगल दर्ज किया जा रहा था. दिलचस्प बात यह भी है कि वनों के रख रखाव पर सालाना बड़ी रकम भी खर्च की जा रही थी. इस घोटाले में वन विभाग के आला अफसर सुनियोजित रूप से अपनी तिजोरी भर रहे थे. लेकिन सरकारी रिपोर्ट में ही जंगलों के घटने का रकबा आ जाने से प्रदेश में हुए इस घोटाले की असलियत सामने आ गई.
इस मामले के याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि छत्तीसगढ़ निर्माण के पश्चात् लगातार वृक्षारोपण होने के बावजूद वर्ष 2001 से 2015 तक लगभग 3 प्रतिशत जंगल अर्थात् 3700 वर्ग कि.मी. जंगल कम हो गया है. वर्ष 2017 में 8 करोड़, वर्ष 2016 में 7 करोड़ 60 लाख, वर्ष 2015 में 10 करोड़ पौधे रोपित किये गये थे. इसके बावजूद भी जंगल का रकबा नहीं बढ़ा बजाये जमीन के अफसरों ने सरकारी रजिस्टर में ही पौधे ऊगा दिए.
वहीं राज्य में दर्जन भर से ज्यादा जिलों में मैदान खाली पड़े है, जहां वन विभाग ने सरकारी रिकार्ड में बड़े वृक्षों का जंगल बताया गया है. इन जिलों में धमतरी , महासमुंद , बस्तर , रायगढ़ , कोरबा , चांपा जांजगीर , अंबिकापुर , मुंगेली , राजनांदगांव , बेमेतरा , बालोद और सूरजपुर जैसे जिलों के कई कस्बे शामिल है. जबकी इन इलाकों में जंगलों का दूर-दूर तक नामों निशान नहीं है.
बताया जाता है कि वन विभाग के अफसरों ने राजनैतिक रूप से प्रभावशाली शख्स के इशारे पर हर साल लाखों पेड़ खरीदे. उनका करोड़ों में भुगतान हुआ. लेकिन असलियत में पेड़ आये ही नहीं. खानापूर्ति के लिए पौधे नर्सरी में ला दिये गए, सरकारी पौधरोपण कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के हाथों पौधारोपण भी करा दिया गया. समारोह की तस्वीरें खूब प्रचारित की गई. दूसरी ओर जंगल घटते चले गए.
फिलहाल छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में मामले की अगली सुनवाई 17 जनवरी को होगी.