रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा, एक ऐसी बीमारी जिसमें रेटिना में मौजूद सेल्स अपने आप मरने लगती हैं. इसे आम भाषा में रतौंधी कहा जाता है. इस बीमारी से ग्रसित रोगी को रात में दिखना बंद होने लगता है. फिर धीरे धीरे इसका असर दिन में भी पड़ता है, और आंख की रोशनी ही धीरे-धीरे जाने लगती है.
इस रोग के इलाज में दुनिया में कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं. इसी क्रम में दुनिया में पहली बार विशेष पेटेंट डिवाइस से कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के नेत्ररोग विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान ने स्टेम सेल थेरेपी के विशेषज्ञ डॉ. बीएस राजपूत के साथ ऐसे मरीज को स्टेम सेल थेरेपी दी है. रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा मर्ज के नेत्ररोगी को ये स्टेम सेल थेरेपी दी गई है. डॉ परवेज का दावा है कि इसी मंगलवार को दी गई ये थेरेपी सफल साबित हुई है.
अमेरिका में हुआ है प्रयोग लेकिन...
डॉ परवेज ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि मैं अब तक प्लेटलेट रिच प्लाज़्मा (पीआरपी थेरेपी) के माध्यम से रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा रोगियों का इलाज कर रहा था और इससे मुझे अच्छे परिणाम प्राप्त हुए. लेकिन इस सप्ताह हमने बिना किसी जटिलता के सफलतापूर्वक इस बीमारी में पहली बार स्टेम सेल थेरेपी दी है. इससे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ केंद्रों ने यह कोशिश की है, लेकिन उनका अनुभव बुरा था क्योंकि उन्हें इस थेरेपी के इस्तेमाल में सीवियर रिएक्शन मिले, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आंख की रोशनी चली गई. उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी में यह दुनिया में इस बीमारी के लिए पहली सफल स्टेम सेल थेरेपी है.
क्यों है दुनिया का पहला केस
रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा के रोगी को इस थेरेपी में विशेष तकनीक का इस्तेमाल होने के कारण यह दुनिया का पहला केस माना जा रहा है. इसके लिए डॉक्टरों ने ये विशेष डिवाइस सुप्रा कोराइडिल नीडल नेत्ररोग विभागाध्यक्ष डॉ. खान के नाम पेटेंट हैं. हैलट में शुक्लागंज के रहने वाले 30 साल के नेत्ररोगी को स्टेम सेल थेरेपी दी गई. वो पांच साल की उम्र से इस बीमारी की गिरफ्त में था. इसके बाद उसकी आंख की रोशनी चली गई थी. जांचों के बाद उसे स्टेम सेल थेरेपी के लिए चुना गया.
मंगलवार को विभागाध्यक्ष डॉ. परवेज खान और मुंबई के स्टेम सेल थेरेपी विशेषज्ञ व जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के विजिटिंग प्रोफेसर डॉ. बीएस राजपूत ने रोगी को थेरेपी दी. उसकी आंख में रेटिना की ऊपरी सतह सुप्रा कोराइडल स्पेस में स्टेम सेल दी गईं. उम्मीद की जा रही है कि इससे रिकवरी तेज होगी.
क्या है थेरेपी की खासियत
डॉ परवेज ने बताया कि रेटिना की सतह के ऊपर 800 माइक्रॉन की झिल्ली भेदकर पहुंचाई जाती है, दवा आंख की रेटिना की सतह के ऊपर आठ सौ माइक्रॉन की झिल्ली होती है. अभी तक इसे भेदकर दवा डालने की कोई डिवाइस नहीं थी. इसके लिए हमने विशेष निडिल ईजाद की. इस निडिल की मदद से सुप्रा कोराइडल लेयर में दवा पहुंचाई जा सकती है. डॉ. खान ने बताया कि झिल्ली इतनी बारीक है कि जरा सा अधिक भेदने पर दवा उस पार आंख के हिस्से में चली जाएगी.