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नॉर्मल डिलीवरी को पीछे छोड़ गया C-Section, पहली बार सामने आए चौंकाने वाले आंकड़े, बदल रहा मां बनने का तरीका

पहली बार सी-सेक्शन डिलीवरी की संख्या नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा हुई है. नए आंकड़े बताते हैं कि 30 साल के बाद महिलाओं में सर्जिकल डिलीवरी का चलन तेजी से बढ़ रहा है.

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इंग्लैंड में पहली बार सी-Section डिलीवरी की संख्या नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा हो गई है. (Photo: ITG)
इंग्लैंड में पहली बार सी-Section डिलीवरी की संख्या नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा हो गई है. (Photo: ITG)

डिलीवरी का नाम सुनते ही ज्यादातर लोग आज भी नॉर्मल डिलीवरी की कल्पना करते हैं, लेकिन अब तस्वीर तेजी से बदल रही है. हाल ही में सामने आए नए आंकड़ों ने सभी को चौंका दिया है. पहली बार ऐसा हुआ है जब किसी देश में नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा बच्चे सी-सेक्शन (C-Section) के जरिए पैदा हुए हैं. इंग्लैंड में सी-सेक्शन (ऑपरेशन से डिलीवरी) की संख्या सामान्य यानी नेचुरल डिलीवरी से ज्यादा हो गई है. एनएचएस (NHS) के नए आंकड़ों के मुताबिक अब ज्यादा महिलाएं बच्चे को ऑपरेशन के जरिए जन्म दे रही हैं, ना कि नॉर्मल तरीके से. इंग्लैंड में पिछले साल करीब 45% बच्चों का जन्म सी-सेक्शन से हुआ, जबकि लगभग 44% डिलीवरी सामान्य तरीके से हुईं. वहीं करीब 11% मामलों में फोर्सेप्स या वेंटूज जैसे उपकरणों की मदद से डिलीवरी कराई गई. ये आंकड़े दिखाते हैं कि डिलीवरी का तरीका तेजी से बदल रहा है.

ये ट्रेंड सिर्फ इंग्लैंड तक सीमित नहीं है. भारत में भी सी-सेक्शन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. नेशनल हेल्थ सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग हर 5 में से 1 डिलीवरी (करीब 21.5%) सी-सेक्शन से हो रही है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तय की गई सिफारिशों से ज्यादा मानी जाती है. इस बढ़ते चलन ने एक अहम सवाल खड़ा कर दिया है क्या वाकई इतनी ज्यादा ऑपरेशन डिलीवरी जरूरी हैं, या फिर सुविधा और डर की वजह से इसका चलन बढ़ रहा है. ये मुद्दा मां और बच्चे दोनों की सेहत से जुड़ा है, इसलिए इस पर सही जानकारी और समझ बेहद जरूरी है.

इंग्लैंड में पहली बार नॉर्मल डिलीवरी से आगे निकला सी-सेक्शन
इंग्लैंड में पहली बार सी-सेक्शन डिलीवरी की संख्या नॉर्मल डिलीवरी से ज्यादा हो गई है. NHS (नेशनल हेल्थ सर्विस) के नए आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल इंग्लैंड में 45% डिलीवरी सी-सेक्शन से, 44% नॉर्मल तरीके से और 11% डिलीवरी में फोर्सेप्स या वैक्यूम जैसे उपकरणों की मदद ली गई. यानी ये पहली बार है जब सी-सेक्शन डिलीवरी ने नॉर्मल डिलीवरी को पीछे छोड़ दिया है.

हर 10 में से 4 सी-सेक्शन पहले से की गई थीं प्लान
डेटा में ये भी पता चला है कि हर 10 में से 4 से ज्यादा सी-सेक्शन पहले से ही प्लान की गई थीं. मेडिकल भाषा में इन्हें इलेक्टिव सी-सेक्शन कहा जाता है. यानी ये डिलीवरी किसी इमरजेंसी की वजह से नहीं, बल्कि पहले से तय की गई सर्जरी के रूप में की गई थीं.

उम्र बढ़ने के साथ बढ़ रहा सी-सेक्शन का चलन
उम्र बढ़ने के साथ सी-सेक्शन डिलीवरी का चलन भी बढ़ता दिख रहा है. आंकड़ों के मुताबिक 30 साल से कम उम्र की महिलाओं में नॉर्मल डिलीवरी ज्यादा हुई, जबकि 30 साल से ऊपर की महिलाओं में सी-सेक्शन के मामले ज्यादा सामने आए. वहीं 40 साल से ज्यादा उम्र की महिलाओं में करीब 59% डिलीवरी सी-सेक्शन से हुई. बता दें, अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के बीच 5 लाख 42 हजार से ज्यादा (5,42,235) डिलीवरी NHS इंग्लैंड के अस्पतालों में दर्ज की गईं.

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भारत में क्या हाल है?  
भारत में भी सी-सेक्शन डिलीवरी के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-5) के मुताबिक, देश में करीब 21.5% डिलीवरी सी-सेक्शन से होती हैं. यानी हर 5 में से 1 बच्चा ऑपरेशन के जरिए पैदा हो रहा है. यह आंकड़ा भले ही इंग्लैंड से कम हो, लेकिन WHO की तय सीमा (10–15%) से काफी ज्यादा है.

कुछ राज्यों में स्थिति ज्यादा गंभीर
सी-सेक्शन का आंकड़ा भारत में हर राज्य में अलग-अलग है. तेलंगाना जैसे राज्यों में 60% से ज्यादा डिलीवरी सी-सेक्शन से हो रही हैं, जबकि कुछ पूर्वोत्तर राज्यों में यह आंकड़ा सिर्फ 5–6% के आसपास है. इसके अलावा, प्राइवेट अस्पतालों में सी-सेक्शन की दर सरकारी अस्पतालों के मुकाबले काफी ज्यादा पाई गई है.

सी-सेक्शन डिलीवरी क्यों बढ़ रही है?
एक्सपर्ट्स के मुताबिक सी-सेक्शन के बढ़ते मामलों के पीछे कई वजहें हैं. इनमें मां की बढ़ती उम्र, हाई-रिस्क प्रेग्नेंसी, पहले से मौजूद बीमारियां और कुछ मामलों में सुविधा या समय को ध्यान में रखकर सी-सेक्शन चुनना शामिल है. साथ ही, अस्पतालों की अपनी नीतियां भी इस बढ़ते ट्रेंड की एक अहम वजह मानी जा रही हैं.

डॉक्टर्स मानते हैं कि जब जरूरत हो, तब सी-सेक्शन जान बचाने वाला कदम होता है. लेकिन बिना मेडिकल जरूरत के इसका बढ़ता चलन चिंता की बात है. WHO भी साफ कह चुका है कि जरूरत से ज्यादा सी-सेक्शन करने से मां और बच्चे की सेहत बेहतर नहीं होती.

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