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वैज्ञान‍िकों ने खोजा ऑटिज्म से जुड़ा नया राज, पहचाना जेनेट‍िक कारण, खुल सकता है दवा का रास्ता!

शोधकर्ताओं का दावा है कि ये खोज ऑटिज्म के लिए targeted drug treatments का रास्ता खोल सकती है. इसके बाद आने वाले समय में ऐसी दवाएं भी बनाई जा सकती हैं, जो दिमाग के इस मेन्टेनेंस सिस्टम को ठीक करें और लक्षणों को कम करें. यह स्टडी स्किज़ोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसे अन्य न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से भी जुड़ी है. 

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वैज्ञान‍िकों ने खोजा ऑटिज्म से जुड़ा नया राज
वैज्ञान‍िकों ने खोजा ऑटिज्म से जुड़ा नया राज

ऑटिज्म के पीछे का राज आखिरकार सामने आ गया है. जापान की कोबे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक लैंडमार्क स्टडी के जरिए ऑटिज्म के आनुवंशिक कारण को पहचाना है जो नई दवाओं के विकास की उम्मीद जगा रहा है. ये खबर न सिर्फ मेडिकल साइंस में क्रांति ला सकती है बल्कि भारत जैसे देश में जहां ऑटिज्म से प्रभावित करीब 1.8 करोड़ लोग हैं, उन परिवारों के लिए नई किरण बन सकती है. 

क्या कहती है स्टडी

डेली मेल की रिपोर्ट के मुताबिक इस स्टडी में पता चला है कि ऑटिज्म कुछ खास जीन म्यूटेशन्स की वजह से होता है जो दिमाग के प्राकृतिक 'मेंटेनेंस सिस्टम' को बिगाड़ते हैं. ये सिस्टम दिमाग से अपशिष्ट और क्षतिग्रस्त सामग्री को हटाता है. जब ये सिस्टम फेल होता है तो न्यूरल कोशिकाएं सही से सिग्नल भेजने और प्राप्त करने में असमर्थ हो जाती हैं, जिससे लर्न‍िंग, लैंग्वेज और सोशल कॉन्टैक्ट में दिक्कतें पैदा होती हैं. ये ऑटिज्म के मुख्य लक्षण हैं. 

शोधकर्ताओं का दावा है कि ये खोज ऑटिज्म के लिए लक्षित दवाओं (targeted drug treatments) का रास्ता खोल सकती है. इसके बाद आने वाले समय में ऐसी दवाएं भी बनाई जा सकती हैं, जो दिमाग के इस मेन्टेनेंस सिस्टम को ठीक करें और लक्षणों को कम करें. यह स्टडी स्किज़ोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसऑर्डर जैसे अन्य न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से भी जुड़ी है. 

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भारत के लिए क्या मायने

भारत में ऑटिज्म जागरूकता और इलाज की कमी आज भी बड़ी चुनौती है. Autism India Network के अनुसार, देश में हर 100 बच्चों में से 1 ऑटिज्म से प्रभावित हो सकता है यानी करीब 1.8 करोड़ लोग. लेकिन डायग्नोसिस में देरी और सामाजिक कलंक के कारण कई परिवार मदद नहीं ले पाते. इस स्टडी से नई उम्मीद जगी है क्योंकि इससे सस्ती और प्रभावी दवाओं का रास्ता खुल सकता है जो भारत जैसे विकासशील देशों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकता है. 

हालांकि ये स्टडी अभी प्रारंभिक चरण में है, शोधकर्ता जल्द क्लिनिकल ट्रायल्स शुरू करने की योजना बना रहे हैं. अगर सफलता मिलती है तो अगले 5-10 साल में ऑटिज्म के लिए पहली जीन-आधारित दवा बाजार में आ सकती है. साथ ही यह स्टडी न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर की समझ को बढ़ाने में भी मदद करेगी.

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