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फैक्ट चेक: कोरोना वैक्सीन टेस्ट से जुड़ा नहीं है बंदरों के साथ क्रूरता का ये वीडियो

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि वीडियो के साथ किया जा रहा दावा गलत है. ये वायरल वीडियो करीब एक साल पुराना है और इसका कोविड-19 वैक्सीन से कोई लेना-देना नहीं है. यह एक अंडरकवर वीडियो था जिसमें 2019 में एक जर्मन प्रयोगशाला के अंदर जानवरों के साथ बरती जाने वाली क्रूरता को दिखाया गया था.

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आजतक फैक्ट चेक

दावा
कोविड-19 वैक्सीन टेस्ट के दौरान प्रयोगशाला में बंदरों के साथ की जा रही क्रूरता का वीडियो.
सोशल मीडिया यूजर्स
सच्चाई
वायरल वीडियो 2019 का है, जिसे पशुओं के साथ क्रूरता दिखाने के लिए जर्मनी की एक प्रयोगशाला में शूट किया गया था.

दुनिया भर की प्रयोगशालाएं और संस्थाएं कोरोना वायरस के खात्मे के लिए एक अदद वैक्सीन बनाने में लगी हैं. इसी बीच सोशल मीडिया पर जानवरों के प्रति क्रूरता दिखाने वाला एक वीडियो वायरल हो रहा है, जो विचलित करने वाला है.

इस वीडियो के साथ दावा किया जा रहा है कि कैसे कोविड-19 की वैक्सीन बनाने के लिए बंदरों के साथ क्रूरता से भरा व्यवहार किया जा रहा है. इस वीडियो को फेसबुक पर कई यूजर्स ने पोस्ट किया है. वीडियो में देखा जा सकता है कि कुछ बंदरों को एक फ्रेम में सीधा खड़ा करके गर्दन से बांध दिया गया है. उनके हाथ भी बंधे हुए हैं और वे चिल्ला रहे हैं.

​वीडियो में कुछ और बंदर दिख रहे हैं जो पिंजड़ों में बंद हैं और निकलने के लिए छटपटा रहे हैं. पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट में दिख रहे कुछ लोग इन बंदरों को इंजेक्शन देते हुए दिख रहे हैं.

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इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि वीडियो के साथ किया जा रहा दावा गलत है. ये वायरल वीडियो करीब एक साल पुराना है और इसका कोविड-19 वैक्सीन से कोई लेना-देना नहीं है. यह एक अंडरकवर वीडियो था जिसमें 2019 में एक जर्मन प्रयोगशाला के अंदर जानवरों के साथ बरती जाने वाली क्रूरता को दिखाया गया था. इस वीडियो के सामने आने के बाद पशु अधिकार कार्यकर्ताओं में काफी नाराजगी फैली थी और इस प्रयोगशाला को तत्काल बंद करने की मांग की गई थी.

इन पोस्ट के आर्काइव्ड वर्जन यहां और यहां देखे जा सकते हैं.

AFWA की पड़ताल

इनविड टूल की मदद से रिवर्स सर्च करने पर हमने पाया कि पिछले साल पशुओं के साथ क्रूरता को लेकर कई आर्टिकल छपे हैं जिनमें इससे मिलते-जुलते वीडियो और तस्वीरों का इस्तेमाल किया गया है.

जर्मन न्यूज वेबसाइट “DW Urdu ” ने 20 अकटूबर, 2019 को एक वीडियो स्टोरी प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक है, 'इस प्रयोगशाला से कोई जानवर जिंदा नहीं लौटता.'

इस स्टोरी के मुताबिक, यह वीडियो एक जर्मन रिसर्च लेबोरेटरी में खुफिया कैमरे के जरिए पशुओं के लिए काम करने वाले लोगों ने बनाया था. उनका मकसद यह दिखाना था कि लेबोरेटरी में पशुओं के साथ कैसे क्रूरता बरती जाती है.

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DW की वेबसाइट पर जो वीडियो मौजूद है, वायरल वीडियो उसी का एक हिस्सा है. उनके कुछ फ्रेम से पहचाना जा सकता है.

वायरल वीडियो

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DW की न्यूज क्लिप

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वेबसाइट “Euro News ” ने इसी घटना पर 18 अक्टूबर, 2019 को एक आर्टिकल प्रकाशित किया, जिसमें इसी वीडियो क्लिप से वीडियो और तस्वीरें ली गई थीं.

इस न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, पशु अधिकार के लिए काम करने वाले ग्रुप 'SOKO Tierschutz' और 'क्रुएलिटी-फ्री इंटरनेशनल' ने आठ मिनट की अंडरकवर फुटेज जारी करके दिखाया था कि एक जर्मन प्रयोगशाला में जानवरों को कैसे प्रताड़ित किया जाता है.

आर्टिकल के मुताबिक, यह वीडियो पशुओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक अंडरकवर एजेंट ने हैम्बर्ग में स्थित लेबोरेटरी फॉर फार्माकोलॉजी एंड टॉक्सिकोलॉजी में शूट किया था. इस वीडियो के सामने आने के बाद पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस प्रयोगशाला को तत्काल बंद कर देने की मांग की थी.

निष्कर्ष

यह सही है कि अलग-अलग प्रयोगशालाओं में कोविड-19 वैक्सीन बनाने के जो प्रयास हो रहे हैं, उनमें एनीमल ट्रायल के तहत बंदरों पर प्रयोग किए जाते हैं. मीडिया में इस बारे में भी खबरें छपी हैं. लेकिन जानवरों पर अत्याचार का जो वीडियो वायरल हो रहा है, वह पिछले साल एक जर्मन प्रयोगशाला में शूट किया गया था. इसलिए इस वीडियो का कोविड-19 वैक्सीन टेस्ट से कोई लेना-देना नहीं है.

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