
स्प्रिंग लगी विचित्र पहियों वाली एक बेहद पुरानी साइकिल की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इस साइकिल पर एक राइफल भी बंधी दिख रही है. दावा किया जा रहा है कि ये साइकिल अंग्रेजों के जमाने की है और अंग्रेजी शासन के दौरान भारत में पुलिस थानों में यही साइकिलें होती थीं.
कई फेसबुक यूजर्स लिख रहे हैं, “अंग्रेजों के समय का साईकल जो पुलिस स्टेशन में होता था”. पोस्ट में अंग्रेजों के समय का मतलब आजादी के पहले के दौर से है जब भारत में ब्रिटिश शासन था.
इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि ये जर्मन साइकिल है जो पहले विश्वयुद्ध के दौर में इस्तेमाल होती थी. यह 1905 की हेरेनरेड विक्टोरिया मॉडल 12 साइकिल है जिसमें मॉसर GEW 88 राइफल बंधी होती थी. साइकिल का ये मॉडल भारत में कभी इस्तेमाल नहीं हुआ.
ये दावा करने वाली कुछ पोस्ट के आर्काइव यहां, यहां और यहां देखे जा सकते हैं.
क्या है इस साइकिल की कहानी
रिवर्स इमेज सर्च की मदद से हमें यही तस्वीर रेडिट पर मिली. कुछ वेबसाइट्स ने यही तस्वीर पिछले साल भी पोस्ट की थी. ज्यादातर ने दावा किया था कि स्प्रिंग लगे पहियों वाली ये जर्मन साइकिल है जो प्रथम विश्वयुद्ध के दौर में इस्तेमाल होती थी.
इस सुराग के आधार पर हमें कुछ कीवर्ड्स सर्च किए तो हमें onlinebicyclemuseum.co.uk नाम की एक वेबसाइट मिली. इस वेबसाइट पर छपे एक आर्टिकल में स्प्रिंग के पहियों वाली इस पुरानी साइकिल के बारे में विस्तार से बताया गया है.
इस वेबसाइट पर हमें इसी साइकिल की एक तस्वीर मिली. साथ में यहां पर स्प्रिंग के पहियों वाली इसी तरह की कुछ और साइकिलों की तस्वीरें मौजूद हैं.


ये वेबसाइट पुरानी साइकिलों के बारे में जानकारी देती है और इसे साइकिलों के इतिहास को लेकर सार्वजनिक डेटाबेस के रूप में जाना जाता है. ऑनलाइन बाइसाइकिल पर ये म्यूजियम वेबसाइट बनाने वाले कोलिन किर्शे ने एक किताब भी लिखी है. इस किताब का नाम “Bad Teeth No Bar” है.
लेखक के अनुसार, वायरल तस्वीर में दिख रही साइकिल 1905 की हेरेनरेड विक्टोरिया मॉडल 12 है जो कि एक जर्मन साइकिल है. इस साइकिल के साथ मॉसर GEW 88 राइफल बंधी होती थी. इनका इस्तेमाल पहले विश्व युद्ध में किया गया था. विक्टोरिया जर्मनी के नूर्नबर्ग में एक साइकिल बनाने वाली कंपनी थी.
कोलिन किर्शे के मुताबिक, पहले विश्वयुद्ध के दौरान रबर की कमी थी. ऐसे में रबर के पहियों की जगह कभी कभी स्प्रिंग के पहियों वाली साइकिल इस्तेमाल की जाती थी.
किर्शे ने साइकिल पर एक फेसबुक पेज भी बनाया है जहां पर कोई भी पुराने जमाने की साइकिलें खरीद सकता है. पड़ताल से साफ है कि वायरल तस्वीर के साथ किया जा रहा ये दावा भ्रामक है कि ये साइकिल अंग्रेजों के जमाने में भारत के पुलिस थानों में इस्तेमाल की जाती थी.