सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है, जिसमें एक चहारदीवारी पर सेब से भरे थैले लटक रहे हैं. दावा किया जा रहा है कि नार्वे में यह आम बात है कि लोग अपने घरों में जरूरत से ज्यादा सेब को इस दीवार पर टांग जाते हैं ताकि गरीब, भूखे और बेघर लोग मुफ्त में इन फलों का उपयोग कर सकें.

इंडिया टुडे के एंटी फेक न्यूज वॉर रूम (AFWA) ने पाया कि वायरल तस्वीर के साथ किया जा रहा दावा गलत है. नार्वे में ऐसा पूरे देश में नहीं होता बल्कि वहां की एक महिला ने ऐसा किया था जिसने अपने सेब बागान के फालतू सेब लोगों में बांट दिए थे.
वायरल हो रही पोस्ट का आर्काइव्ड वर्जन यहां देखा जा सकता है.
फेसबुक पर कई अन्य यूजर्स की तरह “DrShriram Chopra ” ने इस फोटो को अपलोड किया है. फोटो के ऊपर ही अंग्रेजी में कैप्शन लिखा है जिसका हिंदी अनुवाद कुछ यूं होगा: “नार्वे में, लोगों ने अपने सेबों को एकत्र किया और उन्हें अपनी चहारदीवारी में लटका दिया, ताकि गरीब, भूखे और बेघर लोग इन्हें मुफ्त में प्राप्त कर सकें. बजाय इसके कि सेबों को बर्बाद होने देते. शेयर करना ही देखभाल करना है.”
इस फोटो को शेयर करते हुए “DrShriram Chopra” ने लिखा है, “नार्वे के अमीर लोगों की इस आदत के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे.(दोस्तों का शुक्रिया).”
यह पोस्ट फेसबुक पर वायरल हो रही है. इस दावे की पड़ताल करने के लिए हमने इस तस्वीर को रिवर्स सर्च किया और पाया कि यह तस्वीर नार्वे में साल 2018 में खींची गई थी. घर मालकिन इंगर गेरास ने पिछले साल 200 से ज्यादा बैग भरे सेबों को दान कर दिया था.
हमें वहां के स्थानीय अखबार 'Drammens Tidende' में इससे संबंधित एक रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट के मुताबिक, गेरास ने कहा, “आज ही हमने सेब से भरे 30 बैग टांग दिए थे, हर एक बैग में एक किलो सेब थे और वे एक या दो घंटे में चले गए. इस साल सेब काफी ज्यादा हैं. अच्छे, साफ और बड़े. मुझे सारे का उपयोग नहीं करना है और फेंकने के लिए भी यह बहुत ज्यादा है. इससे अच्छा है कि उन्हें किसी को दे दिया जाए जिनको जरूरत है.”
इंगर गेरास ने एक हफ्ते तक हर दिन अपनी चहारदीवारी पर सेब से भरे बैग लटकाए और इस तरह उन्होंने एक एक किलो सेब से भरे 200 बैग बांट दिए. गेरास के मुताबिक, उनके पास काफी जमीन है और बहुत सारे सेब के पेड़ हैं, उनमें से कुछ 1850 के दशक में लगाए गए थे.
यह पोस्ट सोशल मीडिया पर पहले भी वायरल हो चुकी है. फैक्ट चेक करने वाली वेबसाइट Snopes पहले ही इस दावे को खारिज कर चुकी है.
इस तरह पड़ताल से साफ हुआ कि नार्वे में गरीबों और जरूरतमंद लोगों के लिए दीवार पर फल टांगना कोई आम बात नहीं है.