खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू लंबे समय से अमेरिका में रहते हुए भारत-विरोधी गतिविधियों को हवा दे रहा है. इसमें भड़काऊ बयानबाजियां भी शामिल हैं. हाल ही में उसने दीपावली के समय पंजाब में हिंदू प्रवासियों को धमकी दी कि वे राज्य छोड़ दें, या त्योहार मनाना बंद कर दें. खुलेआम भारत-विरोधी बयानों के बाद भी अमेरिका ने उसे संरक्षण दे रखा है,वो भी तब, जबकि पन्नू के संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) को भी भारत सरकार आतंकी संगठन बताते हुए सालों पहले प्रतिबंध लगा चुकी.
अमेरिका अपने खिलाफ अपराध करने वालों को कड़ी सजा देता है, तो फिर क्यों वह दूसरे देशों के खिलाफ काम करने वालों को सुरक्षा और आश्रय देता रहा?
ये समझने के लिए पहले अमेरिका में पन्नू की स्थिति समझते चलें. नब्बे के दशक के आखिर में लॉ की पढ़ाई करने के बाद से पन्नू वहीं बस गया. वहीं रहते हुए उसने सिख फॉर जस्टिस की नींव डाली, जिसे भारत ने जुलाई 2019 में आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. दरअसल इस गुट ने पंजाब रिफरेंडम 2020 नाम से अभियान चलाया था, जिसका मकसद पंजाब को भारत से अलग करके खालिस्तान बनाने पर वोट करना था. इसे उन्होंने सोशल मीडिया पर खूब फैलाया. अलगाववाद का ये एक्सट्रीम चेहरा देखते हुए भारत सरकार ने संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया.
चूंकि पन्नू के पास यूएस की स्थाई नागरिकता है, लिहाजा भारत के लिए उसे खदेड़कर ला पाना मुश्किल है, जब तक कि अमेरिकी सरकार हां न करे.

यूएस उसे निकाल-बाहर क्यों नहीं कर रहा
इस कहानी के तीन हिस्से हैं. पन्नू को नागरिकता उस वक्त मिली जब उसने अमेरिका जाकर पढ़ाई की और वहां लॉ प्रैक्टिस शुरू की. तब तक भारत ने उसे आतंकी घोषित नहीं किया था. वो खुद को एक वकील और एक्टिविस्ट दिखाता, जो मानवाधिकार और सिख रेफरेंडम से मुद्दों पर काम कर रहा था. अमेरिका के इमिग्रेशन कानून के तहत नागरिकता का आवेदन करते वक्त अगर शख्स के खिलाफ क्रिमिनल रिकॉर्ड न हो तो उसे नागरिकता मिल जाती है.
भारत ने साल 2019 में पन्नू को UAPA के तहत आतंकी घोषित किया. लेकिन अमेरिका उसे अब भी फ्री स्पीच एक्टिविस्ट की तरह देखता है क्योंकि उसने सीधे अमेरिकी जमीन पर हथियारबंद हिंसा नहीं की, या उसकी प्लानिंग का ठोस सबूत नहीं मिला. यूएस में अगर कोई संगठन फॉरेन टैररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन की लिस्ट में आ जाए, तभी उसपर कार्रवाई होती है. फिलहाल तब पन्नू इससे बचा हुआ है क्योंकि उसने यूएस को किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया.
तीसरा हिस्सा ये है कि भारत को खुलेआम धमकी देने के बाद भी पन्नू पर अब एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा. तो अमेरिका किसी की नागरिकता तभी छीन सकता है जब उसने गलत दस्तावेज दिए हों या कोई जानकारी छिपाई हो. पन्नू ने लीगल तरीके से एंट्री और वहां बसा. भारत-विरोधी बयान को वहां की सरकार अलग राजनीतिक सोच मानती है. कुल मिलाकर, अमेरिका ऐसे किसी आतंकी के निर्वासन को तब तक टालता है, जब तक कि उसपर सीधा खतरा न हो.

ये भी सच है कि अमेरिका कई बार दोहरे मापदंड अपनाता रहा.
वो अपने खिलाफ काम करने वालों को कड़ी सजा देता रहा, जैसे कि ओसामा बिन लादेन को दूसरी धरती पर मार गिराना. वहीं दूसरे देशों के खिलाफ काम करने वालों को फ्री स्पीच या मानवाधिकार एक्टिविज्म की आड़ में बचाए रखता है.
अक्सर यूएस पर ये आरोप भी लगता रहा कि वो ऐसे आतंकियों को प्रेशर पॉइंट की तरह इस्तेमाल करता है ताकि जब चाहे भारत पर, या किसी भी देश पर दबाव बनाया जा सके.
वैसे दोनों देशों के बीच प्रत्यर्पण संधि भी है. यानी कानूनी प्रक्रिया के तहत वे एक-दूसरे के आरोपियों को सौंप सकते हैं. लेकिन संधि की भी कुछ शर्तें हैं. जैसे, जिस अपराध में भारत में केस दर्ज है, वही अपराध अमेरिका के कानून में भी क्राइम होना चाहिए. अगर अपराध राजनीतिक माना जाए, तो अमेरिका प्रत्यर्पण से मना कर सकता है. साथ ही भारत को साबित करना होगा कि पन्नू की वजह से हमारी जमीन पर हिंसा भड़की. पन्नू चूंकि सीधे एक्टिव नहीं है, बल्कि अपने मोहरों से काम करवाता है तो यह साबित करना भी कुछ टेढ़ा है.