
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को एक और झटका दे दिया. वो उद्धव के बड़े भाई जयदेव ठाकरे को अपने साथ लेने में कामयाब हो गए. बुधवार को दशहरे के मौके पर शिंदे ने बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में रैली की थी. इस रैली में जयदेव ठाकरे भी पहुंचे.
सिर्फ जयदेव ही नहीं, उनकी पूर्व पत्नी स्मिता ठाकरे भी मौजूद थीं. इनके अलावा, बाल ठाकरे के पोते और उनके बड़े बेटे बिंदुमाधव के बेटे निहार भी यहां मौजूद रहे. बालासाहेब ठाकरे के करीबी रहे चंपा सिंह थापा भी रैली में पहुंचे.
उद्धव ठाकरे के अपने बड़े भाई जयदेव ठाकरे, उनकी पूर्व पत्नी स्मिता और निहार ठाकरे से अच्छे रिश्ते नहीं रहे हैं. उद्धव ठाकरे के सगी संबंधियों को मंच पर लाकर शिंदे ने ये दिखाने की कोशिश की उनका गुट ही 'असली' शिवसेना है. वहीं, शिवाजी पार्क की रैली में पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने शिंदे को 'गद्दार' और 'कटप्पा' बताया.
इस रैली में जयदेव ने बहुत ज्यादा कुछ नहीं कहा. बस उन्होंने कार्यकर्ताओं से शिंदे का साथ नहीं छोड़ने की अपील की. स्मिता ठाकरे ने मीडिया को बताया कि उन्हें एकनाथ शिंदे ने आमंत्रित किया था.
बाल ठाकरे के दूसरे बेटे हैं जयदेव
शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के तीन बेटे थे. सबसे बड़े बेटे बिंदुमाधव ठाकरे की 1996 में एक कार एक्सीडेंट में मौत हो गई थी. दूसरे बेटे जयदेव के साथ अनबन रहती थी. उद्धव तीसरे और सबसे छोटे बेटे थे.
जयदेव ठाकरे के अपने परिवार से अच्छे रिश्ते नहीं रहे हैं. उन्होंने बाल ठाकरे की वसीयत और संपत्ति को लेकर कोर्ट में लंबी लड़ाई भी लड़ी, लेकिन नवंबर 2018 में केस वापस ले लिया. जयदेव ने दावा किया था कि उद्धव ने बालासाहेब की वसीयत से छेड़छाड़ की थी.
जयदेव ने बाल ठाकरे की वसीयत को बॉम्बे हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. बाल ठाकरे ने अपनी वसीयत पर दिसंबर 2011 में साइन किए थे. 17 नवंबर 2012 में उनका निधन हो गया था. जयदेव का दावा था कि जिस समय बाल ठाकरे ने वसीयत पर साइन की थी, उस समय उनकी दिमागी हालत सही नहीं थी और उद्धव ने उन्हें प्रभावित किया था.
बाल ठाकरे ने अपनी वसीयत में ज्यादातर संपत्ति उद्धव ठाकरे के नाम कर दी थी. उद्धव ने दावा किया था कि बाल ठाकरे अपने पीछे जो संपत्ति छोड़ गए हैं, उसकी कीमत 14.85 करोड़ रुपये है. जबकि, जयदेव का दावा था कि मातोश्री बंगला ही 40 करोड़ रुपये का है. बाकी संपत्ति मिलाकर मूल्य 100 करोड़ से ज्यादा है.
बाल ठाकरे ने 'मातोश्री' बंगला भी उद्धव के नाम कर दिया था. बंगले का फर्स्ट फ्लोर ऐश्वर्य ठाकरे के नाम पर था. ऐश्वर्य उनके पोते थे और जयदेव के बेटे थे. हालांकि, हाई कोर्ट में जयदेव ने ऐश्वर्य को अपना बेटा मानने से इनकार कर दिया था.

ऐसे बिगड़ने लगे थे रिश्ते
कहा जाता है कि जयदेव को पॉलिटिक्स में कोई खास इंट्रेस्ट नहीं था, लेकिन उनकी पत्नी स्मिता राजनीति में आना चाहती थीं. जयदेव ने कोर्ट में बताया था कि स्मिता 1994 में राजनीति में आना चाहती थीं.
जयदेव ने बताया था कि स्मिता की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बड़ी थीं. सितंबर 1995 में मां के निधन के बाद वो राजनीति में सक्रिय होने लगी थीं. जयदेव के मुताबिक, उन्होंने स्मिता को समझाया कि वो उन्हें और बेटे राहुल को नजरअंदाज कर रहीं हैं और घर पर आने वाले लोगों से बात करना भी सही नहीं है. यहां तक कि बालासाहेब को स्मिता का राजनीति में आना पसंद नहीं था. लेकिन वो राजनीति में अपना करियर बनाना चाहती थीं.
बाल ठाकरे की पत्नी मीनाताई का 6 सितंबर 1995 को निधन हो गया था. उन्हें हार्ट अटैक आया था. मीनाताई के निधन के बाद स्मिता ने राजनीति में खुद को आगे रखना शुरू कर दिया था.
जयदेव के मुताबिक, उन्होंने 1999 में मातोश्री छोड़ दिया था. लेकिन उनकी पत्नी 2004 तक वहीं रही. 2004 में तलाक के बाद स्मिता भी वहां से चली गईं.
उद्धव ठाकरे ने हाई कोर्ट में जो वसीयत पेश की थी, उसके मुताबिक बाल ठाकरे ने कहा था, 'जयदेव ने विद्रोही जैसी जिंदगी जी. वो कई साल पहले मातोश्री से चले गए थे.'
उद्धव से अच्छे रिश्ते नहीं रहे
जयदेव ठाकरे ने कोर्ट में दावा किया था कि उद्धव ने परिवार के राशन कार्ड से उनका हटाने की साजिश रची थी. इसके बावजूद उन्होंने उद्धव से अच्छे रिश्ते रखने की कोशिश जारी रखी, लेकिन उद्धव ने उनके फोन भी नहीं उठाए.
जयदेव ने कोर्ट में ये बताया था कि 1970 के दशक से वो अपने पिता के करीबी थे. वो उनके सारे मामलों को देखते थे और यात्रा करते थे. इसलिए बाल ठाकरे उन्हें अपनी राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखने लगे थे. जयदेव का दावा था कि वो राजनीति में आने के लिए सहज नहीं थे, क्योंकि एक राजनेता को अपने दोस्त से भी सख्त लहजे में बात करना पड़ता है.
उन्होंने बताया था कि उद्धव भी राजनीति में इंट्रेस्टेड नहीं थे. उस समय उनके भतीजे राज ठाकरे राजनीति में सक्रिय थे और वो बाल ठाकरे की तरह ही बोलते भी थे. इसलिए सब राज ठाकरे को ही बाल ठाकरे का उत्तराधिकारी मानते थे. लेकिन 90 के दशक से उद्धव भी राजनीति में सक्रिय हो गए.
जयदेव के मुताबिक, बड़े भाई बिंदुमाधव को भी राजनीति में रूचि नहीं थे. उन्हें बिजनेस और फिल्म इंडस्ट्री में रूचि थी. मातोश्री में पहले फ्लोर पर बिंदुमाधव फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के साथ मीटिंग्स भी करते थे. अप्रैल 1996 में कार हादसे में उनकी मौत हो गई. इसके बाद उनकी पत्नी माधवी ने बेटी नेहा और बेटे निहार के साथ मातोश्री छोड़ दिया था.