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लोकसभा स्पीकर का पद कितना ताकतवर, कैसे होता है चुनाव, क्या रहा इतिहास... जानें सबकुछ

आइए जान लेते हैं कि आखिर जिस पद के लिए कांग्रेस परंपरा तोड़ने को तैयार है उसकी पॉवर कितनी है. साथ ही उसे चुनने के लिए क्या प्रक्रिया है. सिलसिलेवार तरीके से संसद के निचले सदन में स्पीकर के पद की अहमियत और उससे जुड़े रिकॉर्ड्स पर नजर डालते हैं. 

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लोकसभा स्पीकर पद का चुनाव आज
लोकसभा स्पीकर पद का चुनाव आज

देश में कुछ ही दिनों पहले संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के बाद अब संसद सत्र शुरू हो चुका है. इन दिनों सांसदों की शपथ प्रक्रिया जारी है. साथ ही लोकसभा के स्पीकर पद को लेकर भी NDA और INDI गठबंधन के बीच सियासी घमासान जारी है. जहां एक ओर NDA ने एक बार फिर कोटा से सांसद ओम बिड़ला को ही स्पीकर पद का उम्मीदवार बनाया है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेल के नेतृत्व वाले INDIA ब्लॉक ने के. सुरेश को स्पीकर पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है. अब कल यानी बुधवार को दोनों उम्मीदवारों में से किसी एक के चयन के लिए वोटिंग होगी. 

ऐसे में आइए जान लेते हैं कि आखिर जिस पद के लिए कांग्रेस परंपरा तोड़ने को तैयार है उसकी पॉवर कितनी है. साथ ही उसे चुनने के लिए क्या प्रक्रिया है. सिलसिलेवार तरीके से संसद के निचले सदन में स्पीकर के पद की अहमियत और उससे जुड़े रिकॉर्ड्स पर नजर डालते हैं.

स्पीकर का चुनाव कैसे होता है? 

लोकसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों को सदन में मौजूद और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से चुना जाता है. साधारण बहुमत से मतलब ये है कि सदन में उस वक्त जितने सांसद मौजूद होंगे उनमें 50 फीसदी से ज्यादा वोट जिसे मिलेंगे वो लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर चुन लिया जाता है. मौजूदा परिस्थिति में लोकसभा में 542 सांसद हैं. एक सीट वायनाड से राहुल गांधी इस्तीफा दे चुके हैं तो उसपर उपचुनाव बाकी है. ऐसे में 542 सीटों में से 293 सीटें एनडीए के पास हैं. वहीं 542 का आधा 271 होता है. इस तरह भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पास सदन में बहुमत है और उसे अपनी पसंद का अध्यक्ष चुनने में कोई कठिनाई नहीं होने की संभावना है.

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क्या होता है लोकसभा अध्यक्ष का काम?

आइए अब जान लेते हैं कि स्पीकर का काम क्या होता है. लोकसभा अध्यक्ष सदन में कामकाज का संचालन करता है और वह फैसला लेता है कि कोई बिल मनी बिल है या नहीं. सदन में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने की जिम्मेदारी स्पीकर की ही होती है. साथ ही स्पीकर के पास यह अधिकार होता है कि वो अनियंत्रित व्यवहार के लिए किसी सदस्य को दंड स्वरूप निलंबित कर सकता है. साथ ही अगर सदन में कोई प्रस्ताव लाया जाना हो तो उसमें भी स्पीकर की मंजूरी चाहिए होती है. जैसे कोई अविश्वास प्रस्ताव, स्थगन प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव लाना चाहे तो इसके लिए स्पीकर की अनुमति जरूरी होती है. लोकसभा अध्यक्ष यानी स्पीकर बैठक के दौरान चर्चा के लिए उठाए जाने वाले एजेंडे पर फैसले लेता है. 

बताते चलें कि अध्यक्ष के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति द्वारा तय की जाती है. इसके अलावा, सदन के सदस्यों द्वारा की गई सभी टिप्पणियां और भाषण अध्यक्ष को ही संबोधित किए जाते हैं. लोकसभा अध्यक्ष भारत की संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता भी करता है. सदन में ये राज्यसभा से सभापति के समकक्ष होते हैं. जैसे राज्यसभा का कार्यवाही सभापति को संबोधित करके की जाती है, वैसे ही लोकसभा में अध्यक्ष का पद अहम होता है. 

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अध्यक्ष को हटाने के लिए क्या है प्रक्रिया?

वरीयता क्रम के हिसाब से देखें तो लोकसभा अध्यक्ष भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ छठे स्थान पर हैं. अध्यक्ष सदन के प्रति जवाबदेह होता है. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों को सदस्यों के बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव के जरिए हटाया जा सकता है. लोकसभा अध्यक्ष को नामांकन के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा चुना जाता है.

उल्लेखनीय है कि लोकसभा से पारित सभी विधेयकों पर विचार के लिए राज्यसभा में जाने से पहले स्पीकर के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं. साथ ही स्पीकर के पास यह अधिकार भी होता है कि अगर सदन में किसी बिल को बराबर वोट मिले हों तो ऐसे में स्पीकर का वोट निर्णायक वोट होता है. 

जानें लोकसभा स्पीकर पद की अहमियत कितनी.

पहली बार नहीं हो रहा अध्यक्ष के लिए चुनाव

इस बार कांग्रेस द्वारा उम्मीदवार उतारने से वर्षों से चली आ रही परंपरा टूटी है. दरअसल, पहले लोकसभा सत्र को छोड़ दें तो अब तक निचले सदन में अध्यक्ष सर्वसम्मति से ही चुना जाता रहा है. मोदी सरकार के भी बीते 10 वर्षों में लोकसभा अध्यक्ष चुनने की प्रक्रिया सर्वसम्मति से हुई है. यानी अब से पहले मात्र एक बार ऐसा हुआ है कि स्पीकर के लिए देश में चुनाव कराना पड़े. 

अब से पहले 15 मई 1952 को पहली लोकसभा के लिए अध्यक्ष का चुनाव हुआ था. इस चुनाव में सत्ता पक्ष के जीवी मावलंकर उमीदवार थे. उनके सामने विपक्ष ने शंकर शांतराम मोरे को उतार दिया था. मावलंकर के पक्ष में 394 वोट, जबकि 55 वोट उनके खिलाफ पड़े थे. इस तरह मावलंकर देश के पहले लोकसभा स्पीकर चुने गए थे.

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स्पीकर चुने गए तो पार्टी से दे दिया इस्तीफा

देश के लोकतांत्रिक इतिहास में कई अनोखे पल भी आए हैं. ऐसे में एक मौका वो भी आया जब एक नेता को लोकसभा अध्यक्ष चुना गया तो उन्होंने पार्टी से ही इस्तीफा दे दिया. बता दें कि नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र अध्यक्ष रहे जिन्होंने स्पीकर बनने के बाद अपने दल से औपचारिक रूप से त्यागपत्र दे दिया था. नीलम संजीव रेड्डी का यह मानना था कि अध्यक्ष पूरे सदन का होता है, वह किसी एक दल का नहीं होना चाहिए. ये मानते हुए उन्होंने राजनीतिक पार्टी छोड़ दी.

इकलौते स्पीकर जो बने राष्ट्रपति

दिलचस्प बात यह रही कि नीलम संजीव रेड्डी ऐसे एकमात्र लोकसभा स्पीकर रहे हैं जिन्हें सर्वसम्मति से राष्ट्रपति चुना गया हो. 26 मार्च, 1977 को नीलम संजीव रेड्डी को सर्वसम्मति से लोकसभा का स्पीकर चुन लिया गया था. लेकिन 13 जुलाई, 1977 को उन्होने यह पद छोड़ दिया क्योंकि इन्हें राष्ट्रपति पद हेतु नामांकित किया जा रहा था, जिसमें नीलम संजीव रेड्डी सर्वसम्मति से निर्विरोध छठवें राष्ट्रपति चुन लिए गए.

वहीं अगर देश की पहली महिला लोकसभा स्पीकर की बात करें तो कांग्रेस ने 2009 में सासाराम से सांसद मीरा कुमार को लोकसभा स्पीकर बनाया. वे 4 जून 2009 से 11 जून 2014 तक स्पीकर रहीं. उनके ठीक बाद भाजपा सरकार बनी तो भाजपा ने भी देश को दूसरी महिला स्पीकर दीं. भाजपा ने सुमित्रा महाजन को लोकसभा स्पीकर बनाया.

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